हिंगुला शक्ति पीठ – २

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डॉ सुमित्रा अग्रवाल
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा

हिंगलाज शक्तिपीठ में कोटरी देवी या हिंगलाज माता की पूजा होती है, जो सती का प्रतिनिधित्व करती हैं, और यहां के भैरव को भीमलोचन कहा जाता है। भैरव देवता, शक्तिपीठों के संरक्षणकर्ता माने जाते हैं और हर शक्तिपीठ के साथ एक भैरव की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। यह स्थान शक्ति उपासकों के लिए अत्यंत पवित्र है और पूरे भारत, खासकर राजस्थान और गुजरात के हिंदू श्रद्धालु इस तीर्थस्थल की यात्रा करते हैं।

हिंगुला शक्तिपीठ (जिसे हिंगलाज माता के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है) में हर साल एक बड़ा उत्सव मनाया जाता है, जिसे हिंगलाज यात्रा या हिंगलाज माता का मेला कहा जाता है। यह उत्सव हिंदू श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान के हिंदू समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस उत्सव की कई विशेषताएँ हैं:

साल में एक बार हिंगुला शक्तिपीठ में एक वार्षिक उत्सव का आयोजन होता है। ये आयोजन हर साल चैत्र महीने (मार्च-अप्रैल) में मनाई जाती है। यह नवरात्रि के समय होता है, जब श्रद्धालु देवी की पूजा और उपासना करते हैं।
यह उत्सव आमतौर पर चार दिन तक चलता है, और इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
हिंगलाज शक्तिपीठ बलूचिस्तान के दूरदराज इलाके में स्थित है, और वहाँ तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को कठिन पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों से गुजरना पड़ता है। यह यात्रा भक्ति, साहस और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है।
श्रद्धालु पैदल यात्रा करते हैं और इस दौरान देवी हिंगलाज के नाम का जाप और भजन गाते हैं।


उत्सव के दौरान विशेष हवन, पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। देवी हिंगलाज की विशेष पूजा की जाती है, और मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इकट्ठा होकर दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ज्योति प्रज्वलन और देवी के भव्य श्रृंगार का आयोजन होता है।
मेले के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इनमें स्थानीय लोक संगीत, नृत्य और धार्मिक गीत शामिल होते हैं, जिनका आयोजन भक्तों के मनोरंजन और भक्ति के रूप में होता है।


श्रद्धालु देवी के विभिन्न रूपों की झांकियां और प्रदर्शनियां भी देखते हैं।
यह उत्सव हिंदू समुदाय के बीच एकजुटता का प्रतीक है। खासकर भारत और पाकिस्तान के हिंदू समुदाय एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं, जो सांप्रदायिक सद्भाव का उदाहरण है।
यात्रा के दौरान श्रद्धालु एक साथ भोजन करते हैं, और एक-दूसरे की सेवा में लगे रहते हैं, जिससे भक्तिमय वातावरण बनता है।
उत्सव के अंत में देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, जिसे नदी या समुद्र में प्रवाहित किया जाता है। इससे पहले मूर्ति की विशेष पूजा और आरती की जाती है।
यह उत्सव देवी हिंगलाज के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है और शक्तिपीठ की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को उजागर करता है।