गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत आज

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देवभूमि न्यूज 24.इन


हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस शुभ असवर पर भगवान गणेश की उपासना की जाती है। साथ ही जीवन के संकटों को दूर करने के लिए व्रत भी किया जाता है। मान्यता है कि गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से जातक को गणपति बप्पा की कृपा प्राप्त होती है।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त

कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 नवंबर, शाम 06 बजकर 55 मिनट से शुरू हो रही है, जो अगले दिन यानी 19 नवंबर दोपहर को शाम 05 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत 18 नवंबर को किया जाएगा। इस दिन शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसे में चन्द्रोदय शाम 07 बजकर 34 मिनट पर होगा।

ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 05 बजे से 05 बजकर 53 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 01 बजकर 53 मिनट से 02 बजकर 35 मिनट तक

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करने के बाद मंदिर की सफाई करें। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद उन्हें पुष्प, गंध और दीप अर्पित करें। दीपक जलाकर आरती करें और मंत्रों-गणेश चालीसा का पाठ करें। गणेश जी को प्रिय मोदक या तिल का लड्डूओं का भोग लगाएं। संध्या के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें। इस दिन दान करना शुभ माना जाता है।

गणेश मंत्र

  1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
    निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
  2. ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
    ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
    ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

संकष्टी चतुर्थी के अनुष्ठान

संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और भगवान गणेश की पूजा करते हैं। वे अपने देवता के सम्मान में कठोर उपवास रखते हैं। कुछ लोग आंशिक उपवास भी रख सकते हैं। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को केवल फल, सब्जियाँ और पौधों की जड़ें ही खानी होती हैं। इस दिन मुख्य भारतीय आहार में मूंगफली, आलू और साबूदाना खिचड़ी शामिल हैं।
संकष्टी पूजा शाम को चांद देखने के बाद की जाती है। भगवान गणेश की मूर्ति को दूर्वा घास और ताजे फूलों से सजाया जाता है। इस दौरान एक दीपक भी जलाया जाता है। धूपबत्ती जलाने और वैदिक मंत्रों का पाठ करने जैसी अन्य सामान्य पूजा विधियां भी की जाती हैं। इसके बाद भक्त महीने के लिए विशेष ‘व्रत कथा’ पढ़ते हैं। शाम को भगवान गणेश की पूजा करने और चांद देखने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है।
भगवान गणेश को मोदक और अन्य पसंदीदा खाद्य पदार्थों से बना विशेष ‘नैवेद्य’ तैयार किया जाता है।

इसके बाद ‘आरती’ की जाती है और बाद में सभी भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा या चंद्र देव के लिए विशेष पूजा अनुष्ठान भी किया जाता है। इसमें चंद्रमा की दिशा में जल, चंदन, चावल और फूल छिड़के जाते हैं।

इस दिन ‘गणेश अष्टोत्र’, ‘संकष्टनाशन स्तोत्र’ और ‘वक्रतुण्ड महाकाय’ आदि का पाठ करना शुभ होता है। वास्तव में भगवान गणेश को समर्पित किसी भी अन्य वैदिक मंत्र का जाप किया जा सकता है।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

संकष्टी चतुर्थी के पवित्र दिन पर चांद देखने का विशेष महत्व है। भगवान गणेश के भक्त मानते हैं कि अपने देवता की पूजा-अर्चना करने से, खास तौर पर अंगारकी चतुर्थी के दिन, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी और वे समृद्ध जीवन जीएंगे। निःसंतान दंपत्ति भी संतान प्राप्ति के लिए संकष्टी चतुर्थी व्रत रखते हैं।
चूंकि संकष्टी चतुर्थी हर चंद्र महीने में मनाई जाती है, इसलिए प्रत्येक महीने में भगवान गणेश की पूजा अलग-अलग पीठ (कमल की पंखुड़ियों) और नाम से की जाती है। कुल 13 व्रत हैं, जिनमें से प्रत्येक व्रत का एक विशिष्ट उद्देश्य और कहानी है, जिसे ‘व्रत कथा’ के रूप में जाना जाता है। इसलिए कुल 13 ‘व्रत कथा’ हैं, हर महीने के लिए एक और आखिरी कथा ‘आदिका’ के लिए है, जो हिंदू कैलेंडर में हर चार साल में आने वाला एक अतिरिक्त महीना है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175