किस देवता की आराधना करने से कौन सा फल मिलता है ?✍️

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देवभूमि न्यूज 24.इन

सूतजी ने शौनकादिक ऋषिश्वरों से कहा कि जब राजा परीक्षित ने परमेश्वर के ध्यान करने का यह सब हाल सुना तब घबराकर मन में कहा कि किस तरह से नारायणजी का यह स्वरुप मेरे ध्यान में आवेगा ! इसी चिन्ता में राजा का मुख मलीन हो गया !

तब शुकदेवजी ने राजा को उदास देखकर ऐसा विचारा कि कदाचित् राजा के मन में कोई इच्छा रह गई है , इस कारण राजा का मुख उदास हो गया है , सो मैं अपनी बातों से इनके चित्त का हाल मालूम कर लेता हूँ ! हम विचारकर शुकदेवजी बोले -हे राजन् ! जो कोई अपना सत्य बढ़ाना चाहे वह ब्रह्माजी की , जो अपनी इन्द्रियों को पुष्ट करना चाहे वह राजा इन्द्र की , जो अधिक सन्तान होने की इच्छा रक्खे वह दक्षप्रजापति की , जो द्रव्य की इच्छा रक्खे वह देवीजी की , जो अपने रूप का तेज बढ़ाना चाहे वह अग्नि की , जो अन्न व घोड़ा आदि पाने की चाहना रक्खे वह आठ वसु देवता की , जो कामदेव की वृद्धि चाहे वह रूद्र की , जो कोई अपने तनु में अधिक बल होने की इच्छा रखता हो वह इला देवी की , सुन्दरता अधिक चाहे वह गन्धर्वों की , जिसे सुन्दर स्त्री की इच्छा हो वह उर्वशी अप्सरा की पूजा करनी चाहिए।

जो मनुष्य यश की इच्छा रखता हो वह जगत् भगवान् की , जो विद्या चाहे वह महादेव की , जो अपने परिवार की बढ़ती चाहे वह दिव्य पितरों की , जिसको अपने कुल व परिवार की रक्षा करनी हो वह पुण्य जीवों की , जिसको राजगद्दी की इच्छा हो वह मनु की , जो कोई अपने शरीर में वीर्य बढ़ने की इच्छा रखता हो वह चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।

जो कोई अपनी आयु अधिक चाहे वह अशिवनीकुमार की , जो स्त्री सुन्दर पति चाहे वह पार्वतीजी की , जिसको किसी वस्तु की इच्छा न होवे वह परमपुरुष नारायणजी की , जिस किसी को सब वस्तुओं की जिनका ऊपर वर्णन हो चुका है , उनके सिवा और जिस वस्तु की इच्छा हो वह श्रीनारायणजी की पूजा करे , इनकी कृपा से सब मनोरथ पूर्ण होते हैं !

सो हे राजन् ! जो मनुष्य अपना परलोक बनाने के वास्ते परमेश्वर को नहीं याद करता उसे कुत्ता व गधा आदि पशु के समान समझना चाहिए ! जिस तरह शूकर विष्ठा खाता है उसी तरह मदिरापान करनेवाले मनुष्य को समझो ! जिस जीव ने मनुष्य का तनु पाकर अपने कानों से परमेश्वर की कथा , लीला व कीर्तन नहीं सुना और लोगों की निन्दा सुनने में मन लगाया उसके कान बिच्छू व साँप के बिल के समान हैं !

जिसने जिह्वा से परमेश्वर का नाम नहीं जपा उसकी जिह्वा मेढक के समान जानना चाहिए , जो वृथा वर्षाऋतु में चिल्लाया करता है ! जिसका सिर देवस्थान या ब्राह्मण व साधु के आगे दण्डवत् करने के वास्ते नहीं झुका उसका मस्तक बोझ के समान तनु पर समझना उचित है !

जिसने धन पाकर अपने हाथ से दान नहीं दिया , व हाथों से नारायणजी व देवता व साधु व ब्राह्मण की सेवा , पूजा नहीं की वह हाथ काठ की करछी के समान जानना चाहिए ! जिन पैरों से तीर्थयात्रा और देवताओं व साधु व ब्राह्मणों के दर्शन को नहीं गया वे पाँव वृक्षों की डाली के समान हैं ! जिसने आँखों से प्रत्यक्ष या ध्यान में परमेश्वर का दर्शन नहीं किया उन आँखों को मोर पंख के समान समझना चाहिए !

जिस मनुष्य ने परमेश्वर पर चढ़ी हुई तुलसी तथा साधु ब्राह्मणों के चरणों की धूरि अपने शिर पर श्रद्धा प्रेम से नहीं चढ़ाया वह जीता हुआ भी मृतक के समान है ! जिस किसी को हरिकथा व लीला व भजन सुनकर करुणा की जगह रोना न आवे उसका ह्रदय पत्थर के समान समझना चाहिए !!

” जय श्रीकृष्ण “
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान