देवभूमि न्यूज 24.इन
चावल को सनातन संस्कृति के अनुष्ठान में पवित्र पदार्थ के हिस्से के रूप में अर्पित व अभिमंत्रित किया जाता है । यह हमारे हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के प्रति सम्मान और भक्ति का संकेत भी है। चावल को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और इसका उपयोग परमात्मा से आशीर्वाद लेने के लिए किया जाता है।
अक्सर कोई त्यौहार, शादी या पूजा का समय होता है, तो इसकी शुभ शुरुआत व्यक्ति को तिलक लगा कर की जाती है। क्यूकि तिलक लगाना शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में, तिलक पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा माथे पर लगाया जाने वाला प्रतीक चिन्ह है।
यह आमतौर पर कुमकुम, तुलसी, चंदन तथा अन्य के तरल रूप साथ बनाया जाता है, और एक साधारण या अधिक विस्तृत धार्मिक प्रतीक चिन्ह होता है। वैदिक क्रियाओं में तिलक को तीसरी आंख का प्रतीक माना जाता है, जो आध्यात्मिक ज्ञान और आंतरिक ज्ञान से जुड़ा हुआ है।
तिलक में चावल का उपयोग भारत के कुछ हिस्सों में आम है, खासकर दक्षिण भारत में। चावल को आमतौर पर कुछ घंटों के लिए पानी में भिगोया जाता है और फिर एक पेस्ट बनाने के लिए कुमकुम के साथ मिलाया जाता है। तरल कुमकुम को तब एक ऊर्ध्वाधर रेखा या एक प्रतीक चिन्ह के आकार में माथे पर लगाया जाता है जो किसी विशेष या कुल देवता का प्रतिनिधित्व करता है।
तिलक हमेशा अनामिका उंगली से लगाना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार अनामिका उंगली सूर्य का प्रतीक होती है। अनामिका उंगली से तिलक लगाने से तेजस्वी और प्रतिष्ठा मिलती है। साथ ही जब भी मान-सम्मान के लिए अंगुष्ठ यानि अंगूठे से तिलक लगया जाता है। अंगुष्ठ से तिलक लगाने से ज्ञान और आभूषण की प्राप्ति होती है। विजय प्राप्ति के लिए तर्जनी उंगली से तिलक लगाया जाता है। इसी के साथ आपको बता दें, तिलक हमेशा मस्तिष्क के केंद्र पर लगाया जाता है। इसका कारण ये है कि मस्तिष्क के बीच में आज्ञाचक्र होता है। जिसे गुरुचक्र भी कहते हैं। ये जगह मानव शरीर का केंद्र स्थान है। इसे से एकाग्रता और ज्ञान से परिपूर्ण हैं।
चावल को आमतौर कुमकुम या किसी भी तरह के तिलक के बाद समृद्धि, उर्वरता और शुभता के प्रतीक के रूप में माथे पर लगाया जाता है। चावल का तिलक के साथ का सबसे पवित्र व सर्वमान्य होता है,
इसके पीछे की उत्कृष्ठ वजह का विस्तार पूर्वक वर्णन किया जा रहा है, अगर वैज्ञानिक दृष्टि की बात करे तो माथे पर तिलक लगाने से दिमाग में शांति और शीतलता बनी रहती है। इसके इलावा चावल को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
वही अगर शास्त्रों की बात करे तो चावल को हविष्य यानि हवन में देवी देवताओ को चढ़ाने वाला शुद्ध अन्न माना जाता है।
चावल का एक अन्य नाम अक्षत भी है इसका अर्थ कभी क्षय ना होने वाला या जिसका कभी नाश नही होता है। तभी तो हम हर खास मौके पर चावल जरूर बनाते है। दरअसल ऐसा माना जाता है कि कच्चे चावल व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते है।
जो लगाया जाता है वह अखंडित चावल (अक्षत) होता है, जिसे कई बार हल्दी और अन्य औषधीय पदार्थों में भिगोया जाता है। अक्षत पहले से ही प्राकृतिक रूप में ऊर्जावान है। टूटा हुआ चावल नहीं. अक्षत को देवी लक्ष्मी का प्रतीक भी माना जाता है जिसका उद्देश्य पवित्र राख (भस्म) के समान है जो अजना और गुरु/अग्नि चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाले माथे से नकारात्मक ऊर्जा और तरल अशुद्धियों को अवशोषित करता है। भस्म को गीली अवस्था में लगाया जाता है।जब पानी वाष्पित हो जाता है, तो माथे और शरीर के अन्य हिस्सों से जहां इसे लगाया जाता है, जिससे गर्मी अवशोषित हो जाती है।
सनातन संस्कृति के हमारे अधिकांश रीति-रिवाज हमारे ऊर्जा शरीर को ही मजबूत करते हैं। मुख्य रूप से मानव शरीर वास्तव में 5 पदार्थों से बना है, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंद। अक्षदा प्राण शरीर और कुछ हद तक मानस शरीर की देखभाल करती है।
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान