दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन पर दुष्कर्म का केस दर्ज करने का आदेश

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दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन पर दुष्कर्म का केस दर्ज करने का आदेश

देवभूमि न्यूज डेस्क
नई दिल्ली

बीजेपी के वरिष्ठ नेता शाहनवाज हुसैन की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं. महिला से रेप और उसको जान से मारने की धमकी देने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने शाहनवाज हुसैन के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली शाहनवाज हुसैन की याचिका को निरस्त कर दिया है.दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति आशा मेनन की पीठ ने अपील याचिका काे निराधार बताते हुए आदेश दिया कि मामले में तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए और जांच पूरी करके तीन महीने के अंदर एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल की जाए.

दरअसल बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन पर दिल्ली की एक महिला ने रेप और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया था और एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी. इसके बाद दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सात जुलाई 2018 को शाहनवाज हुसैन के खिलाफ रेप केस दर्ज करने का आदेश दिया था. हालांकि बाद में कोर्ट के इस आदेश को बीजेपी नेता ने विशेष न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी, लेकिन वहां भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली. इसके बाद शाहनवाज हुसैन ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जिसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने 13 जुलाई 2018 को हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी.
दिल्ली की महिला ने केस दर्ज कराने के लिए अदालत से लगाई थी गुहार
दिल्ली की रहने वाली महिला ने जनवरी 2018 में निचली अदालत में याचिका दायर कर हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज करने का गुजारिश की थी। महिला ने आरोप लगाया था कि हुसैन ने छतरपुर फार्म हाउस में उसके साथ दुष्कर्म किया व जान से मारने की धमकी दी। मजिस्ट्रेटी कोर्ट ने 7 जुलाई को हुसैन के खिलाफ धारा 376/328/120/506 के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा था कि महिला की शिकायत में संज्ञेय अपराध का मामला है। हालांकि पुलिस ने पेश रिपोर्ट में तर्क रखा कि हुसैन के खिलाफ मामला नहीं बनता लेकिन अदालत ने पुलिस के तर्क को खारिज कर दिया था।
हाई कोर्ट की जज न्यायमूर्ति आशा मेनन ने फैसले में कहा कि सभी तथ्यों को देखने से स्पष्ट है कि इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने तक पुलिस की ओर से पूरी तरह से अनिच्छा नजर आ रही है। अदालत ने कहा, पुलिस की ओर से निचली अदालत में पेश रिपोर्ट अंतिम रिपोर्ट नहीं थी जबकि अपराध का संज्ञान लेने के लिए अधिकार प्राप्त मजिस्ट्रेट को अंतिम रिपोर्ट अग्रेषित करने की आवश्यकता है।