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उन्नीसवां अध्याय योगपट्ट वर्णन… (भाग 1) भगवान स्कंद बोले-मुनि वामदेव ! अपने शिष्य को पूजा विधि का वर्णन करने के पश्चात गुरु निम्न बातों का उच्चारण करें- मैं ब्रह्म हूं। वह तू है। आत्मा ही ब्रह्म है। सारा संसार ईश्वर से अधिष्ठित होता है। मैं ही प्राण हूं। आत्मा ही ज्ञान का सार है। प्रज्ञान आत्मा ही यहां विदित अवस्थित है। वही तुम्हारा, मेरा अर्थात सबका अंतर्यामी है। वही ज्ञान रूपी अमृत है। वह एक ही पुरुष में और आदित्य में है। वही परब्रह्म में हूं। सबसे परे और सबका ज्ञाता और वेद शास्त्रों का गुरु मैं ही हूं। इस संसार में सारे आनंद का क्षण मैं ही हूं।
सर्वभूतों के हृदय में व्याप्त रहने वाला मैं ही ईश्वर हूं। सारे तत्वों का और पृथ्वी का प्राण मैं ही हूं। मैं ही जल और तेज का प्राण हूं। आकाश और वायु का प्राण मैं हूं। मैं ही त्रिगुण का प्राण हूं। मैं ही अद्वितीय और सर्वात्मक हूं। यह सब ब्रह्मरूप है। मैं ही मुक्त स्वरूप हूं। इसलिए मेरा ध्यान करना चाहिए। इस प्रकार भगवान स्कंद ने वामदेव जी से योगपट्ट का वर्णन किया।
क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान