श्री शिव महापुराण श्रीकैलाश संहिता (प्रथम खंड)✍️

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देवभूमि न्यूज 24.इन

बाईसवां अध्याय 〰️एकादशी पद्धति… (भाग 1) भगवान स्कंद बोले-मुनिवर! अब मैं आपको एकादशी विधि बताता हूं। एक वेदी को लीपकर पांच मंडल बनाएं और उसमें पांच देवताओं की पूजा करें। भगवान शिव सर्वेश्वर हैं। उनकी कृपा से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं। इसलिए हमें उनकी कृपा को नहीं भूलना चाहिए। भगवान शिव का स्वरूप मानकर शिवात्म देवताओं का ध्यान करके उनके चरणों में शंख के जल को समर्पित करें। ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ मंत्र का जाप कर धूप दीप से प्रदक्षिणा कर नमस्कार करें। फिर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि भगवन्! आप प्रसन्न होकर यति को शिव चरणों में रक्षित करें।

प्रार्थना के पश्चात प्रसाद को कन्याओं को बांट दें। इसके पश्चात यति का पावन श्राद्ध करें क्योंकि यति का एकादिष्ट श्राद्ध नहीं होता। चार ब्राह्मणों को आमंत्रित करें। उनके चरण धोकर शिवजी की विधि-विधान के अनुसार पूजा कर उनके समक्ष ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। गोबर से लीपे स्थान पर रखे कुश के आसन पर बैठकर कहें कि मैं पिंडों को दान करता हूं। ऐसा संकल्प करके तीन मडलों का अपने परमात्मा, अंतरात्मा और आत्मा के लिए पूजा करें। मन में यह विचार करते हुए कि हमने आत्मा को पिंड दिया है, पिंड दान करें। कुश से जल छिड़ककर प्रदक्षिणा और नमस्कार करें। तत्पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें। ऐसा करने के बाद रक्षा के लिए श्रीहरि विष्णु की महापूजा करें और नारायण को बलि दें। अंत में वेदों और शास्त्रों को जानने वाले बारह ब्राह्मणों का गंध, अक्षत, और पुष्पों से पूजन करें और प्रार्थना करें। कुश आसन पर पायस बलि दें। मुनि वामदेव ! यह मैंने आपको एकादश की विधि बताई है।

क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
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