देवभूमि न्यूज 24.इन
उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️पुरुषोत्तमक्षेत्र के विभिन्न तीर्थों और देवताओं का परिचय, तीर्थ और भगवान् की महिमा तथा पापपरायण पुण्डरीक और अम्बरीष का उस क्षेत्र में आना…(भाग 4)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️कुरुक्षेत्र में उत्पन्न हुए एक ब्राह्मण और एक क्षत्रिय दोनों मित्र थे। दोनों ने प्रेमपूर्वक परदेश की यात्रा की। उनका आहार-विहार एक ही था। दोनों सदाचार के मार्ग से भ्रष्ट हो चुके थे और मोहवश शास्त्रनिषिद्ध आचरण करते थे। स्वाध्याय, वषट्कार, स्वधा (श्राद्ध-तर्पण) और स्वाहा (यज्ञ) इनसे वे कोसों दूर थे। महापातकों से कलंकितहोकर वे मदिरा पीते और वेश्या के सहवास में रहकर आनन्द का अनुभव करते थे। परलोक की चिन्ता तो उन्हें कभी स्वप्न में भी नहीं होती थी। इसी प्रकार मनमाना बर्ताव करते हुए उनकी आधी आयु बीत गयी। एक दिन घूमते हुए वे दोनों यज्ञशाला में जा पहुँचे और दूरसे ही स्तोत्र तथा शास्त्रचर्चा सुनने लगे। वहाँ होने वाली वैदिक क्रियाओं को देखकर उस समय उन अधार्मिकों के मन में भी धर्म के प्रति श्रद्धा हो गयी। उनका नाम पुण्डरीक और अम्बरीष था। वे अपनी उच्च जातिका स्मरण करके अपने दुराचारों की निन्दा करते हुए एक-दूसरे से कहने लगे- ‘हम दोनों पाप के भयंकर समुद्र को कैसे पार करेंगे?’ हमने जो-जो पाप संचित किये हैं, उनको शास्त्र भी नहीं जानता। उन घोर पापों का प्रायश्चित्त अत्यन्त दुर्लभ है तथापि इस यज्ञसभा में जो ये ब्रह्मनिष्ठ पधारे हुए हैं, उन्हें प्रणाम से प्रसन्न करके हम अपने उद्धार का उपाय पूछें।’
ऐसा निश्चय करके उन दोनों ने ब्राह्मणों को प्रणाम किया और अपने-अपने पापों को ठीक ठीक बताकर उनसे प्रायश्चित्त पूछा। उन दोनों की बातें सुनकर उन श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने आँखें बंद कर लीं। किसी ने कुछ भी नहीं कहा। उनके बीच एक श्रेष्ठ वैष्णव थे, जो उस यज्ञसभा में प्रधान थे। भगवान् की भक्ति के माहात्म्य से उन्होंने समस्त पापों का नाश कर दिया था। वक्ताओं में श्रेष्ठ उन वैष्णव ब्राह्मण ने हँसकर वहाँ बैठे हुए उन दोनों से कहा- ‘हे ब्राह्मण ! और हे क्षत्रियकुमार ! यदि तुम दोनों अत्यन्त भयंकर पापराशि से छुटकारा पाना चाहते हो तो शीघ्र पुरुषोत्तम क्षेत्र में चले जाओ। वह सब क्षेत्रों से उत्तम है, जहाँ राजर्षि इन्द्रद्युम्न की भक्ति से उनपर अनुग्रह करने वाले भगवान् पुरुषोत्तम काष्ठमय शरीर धारण करके रहते हैं। शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले उन भगवान् जगन्नाथ की आराधना करके तुम इच्छानुसार पापक्षय और मोक्ष भी पा सकोगे, यह ध्रुव सत्य है। उनका दर्शन करने से सब पाप एक साथ ही नष्ट हो जाते हैं। इसलिये परम पवित्र उत्कलदेश में दक्षिण समुद्र के तटपर नीलाचल के शिखर पर निवास करने वाले सर्वव्यापी भगवान् जगदीश की शरण में जाओ। वे करुणानिधान भगवान् तुम दोनों का मनोरथ अवश्य सिद्ध करेंगे।’
वैष्णव महात्मा के इस प्रकार आदेश देने पर वे ब्राह्मण और क्षत्रिय अत्यन्त हर्षयुक्त हो उसी मार्ग से पुरुषोत्तमक्षेत्र को चल दिये।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
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