देवभूमि न्यूज 24.इन
भगवान कृष्ण को उनकी शिक्षा और गुणों ने अवश्य महान बनाया, लेकिन उन्हें केवल शिक्षा से भगवान नहीं माना जाता। उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं ने उन्हें भगवान के रूप में स्थापित किया है। वे न केवल ज्ञान, योग, और नीति के प्रतीक थे, बल्कि उनमें दिव्यता और चमत्कारिक शक्तियाँ भी थीं जो उन्हें विशिष्ट बनाती थीं।
कृष्ण की शिक्षा और 64 कलाएँ
भगवान कृष्ण ने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण हिस्से में गुरु संदीपनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वहाँ से 64 कलाओं में महारत हासिल की। ये कलाएँ जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित हैं और इनका अध्ययन एक संपूर्ण व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक माना जाता है।
कुछ प्रमुख कलाएँ जो भगवान कृष्ण ने सीखी थीं, उनमें शामिल हैं:
धनुर्विद्या – तीरंदाजी की कला।
गायन – संगीत और गायन का ज्ञान।
नृत्य – नृत्यकला में दक्षता।
चित्रकला – कला और चित्रकारी में निपुणता।
संगीत वादन – विभिन्न वाद्य यंत्रों का ज्ञान।
अश्वारोहन – घुड़सवारी की कला।
कविता लेखन – कविता और साहित्य में निपुणता।
संवाद कौशल – संवाद और संचार की कला।
ज्योतिष विद्या – खगोल और ज्योतिष का ज्ञान।
राजनीति और कूटनीति – शासन और राजनीति का ज्ञान।
शिक्षा का महत्व:
भगवान कृष्ण की शिक्षा उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जिसने उन्हें एक महान रणनीतिकार, योगी, दार्शनिक, और धर्मप्रवर्तक बनाया। महाभारत, गीता उपदेश, और उनके जीवन की अन्य घटनाएँ दिखाती हैं कि उनकी शिक्षा ने उन्हें कैसे जीवन के हर क्षेत्र में सक्षम और प्रेरणादायक बनाया।
कृष्ण को भगवान मानने का कारण:
हालांकि, केवल शिक्षा और कलाओं की प्राप्ति के कारण कृष्ण को भगवान नहीं माना गया। उन्हें भगवान के रूप में मान्यता उनके:
अवतार के रूप (विष्णु के अवतार माने जाने के कारण),
आध्यात्मिक और नैतिक उपदेशों (जैसे भगवद गीता में दिए गए उपदेश),
और उनके द्वारा किए गए चमत्कारिक कार्यों (जैसे गोवर्धन पर्वत उठाना, कंस का वध) के कारण मिली है।
कृष्ण की शिक्षा, उनके गुण, और उनकी दिव्यता, इन सबने मिलकर उन्हें एक महान व्यक्तित्व और भगवान के रूप में प्रतिष्ठित किया।