संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण✍️

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देवभूमि न्यूज 24.इन

उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य उत्कल देश के भव्य रूप का परिचय, राजा इन्द्रद्युम्न का एक तीर्थयात्री से पुरुषोत्तम क्षेत्र की महिमा सुनकर पुरोहित के भाई को वहाँ भेजना और उनका नीलाचल के समीप शबर से वार्तालाप…(भाग 2)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️सत्ययुग में इन्द्रद्युम्न नाम से प्रसिद्ध एक श्रेष्ठ राजा हो गये हैं। उनका जन्म सूर्यवंश में हुआ था। वे ब्रह्माजी से पाँचवीं पीढ़ी नीचे थे। राजा इन्द्रद्युम्न सत्यवादी, सदाचारी, शुद्ध तथा सात्त्विक पुरुषों में अग्रगण्य थे। प्रजा को अपनी सन्तान समझकर सदा न्यायपूर्वक उसका पालन करते थे। वे आध्यात्मिक ज्ञान में कुशल, शूर, समरविजयी, सदा उद्यमशील, ब्राह्मणपूजक तथा पितृभक्त थे। अठारह विद्याओं में दूसरे बृहस्पति के समान प्रवीण थे। ऐश्वर्य में देवराज इन्द्र तथा कोष-संग्रह में कुबेर की समानता करते थे।

रूपवान्, सौभाग्यशाली, शीलवान्, दानी, भोगी, प्रिय वक्ता, समस्त यज्ञों का यजन करने वाले तथा सत्यप्रतिज्ञ भी थे। उनमें भगवान् विष्णु की भक्ति थी, सत्यभाषण का गुण था। उन्होंने क्रोध और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। वे श्रेष्ठ राजसूय यज्ञ तथा सहस्रों अश्वमेध यज्ञका अनुष्ठान कर चुके थे। संसार बन्धन से मुक्त होने की इच्छा रखकर सदा धर्माचरण में ही लगे रहते थे। इस प्रकार वे सर्वगुणसम्पन्न राजा इन्द्रद्युम्न समूची पृथ्वी का पालन करते हुए मालव देश में विख्यात और समस्त रत्नों से सम्पन्न द्वितीय अमरावती के समान सुशोभित अवन्ती नामवाली नगरी में निवास करते थे। वहाँ रहते हुए राजा ने भगवान् विष्णु में मन, वाणी और क्रिया द्वारा परम अद्भुत एवं उत्तम भक्ति बढ़ायी।

एक दिन भगवान् लक्ष्मीपति की पूजा के समय देवपूजागृह में बैठे हुए राजा ने अपने पुरोहित से आदरपूर्वक कहा- ‘आप उस उत्तम क्षेत्र का पता लगाइये जहाँ हम इसी नेत्र से साक्षात् भगवान् जगन्नाथ का दर्शन करें।’ वैष्णव राजा के ऐसा कहने पर पुरोहितजी ने तीर्थयात्रियों के एक झुंड को देखकर उनसे प्रेमपूर्वक कहा- ‘तीर्थों में विचरने वाले तथा तीर्थों का ज्ञान रखने वाले धर्मात्मा पुरुषो! हमारे महाराज जो आज्ञा देते हैं उसे तुमलोगों ने सुना है क्या? तुममें से किसी को उत्तम तीर्थ का पता है क्या?’ उनका अभिप्राय समझकर उन यात्रियों में से एक व्यक्ति, जो बहुत तीर्थों में घूम चुका था और अच्छा वक्ता था, राजा के पास आ हाथ जोड़कर बोला- ‘राजन् ! मैंने बचपन से ही अनेक तीर्थों में भ्रमण किया है। भारतवर्ष में ओढू नाम से प्रसिद्ध एक देश है। उस देश में दक्षिण समुद्र के तटपर श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र है, जहाँ नीलाचल नामक एक पर्वत है। वह सब ओर से वनों द्वारा घिरा हुआ है। उसके बीच में कल्पवृक्ष है, जिसके पश्चिम भाग में रौहिण कुण्ड है।

वह भगवान्‌ की करुणारूप जल से भरा हुआ है, जो स्पर्श करने मात्र से ही मोक्ष देने वाला है। उसके पूर्वीय तटपर इन्द्रनीलमणि की बनी हुई भगवान् वासुदेव की प्रतिमा है, जो साक्षात् मोक्ष प्रदान करने वाली है। उस कुण्ड में स्नान करके जो भगवान् पुरुषोत्तम का दर्शन करता है, वह मुक्त हो जाता है। वहाँ शबरदीपक नामक एक श्रेष्ठ आश्रम है, जो भगवद्विग्रह से पश्चिम दिशा में स्थित है। उस आश्रम से एक पगडंडी का रास्ता है, जिससे भगवान् विष्णु के स्थान तक जा सकते हैं। वहाँ शंख चक्र गदा धारी साक्षात् भगवान् जगन्नाथ विराजमान हैं। वे करुणा के समुद्र हैं, दर्शनमात्र से ही सब जीवों को मुक्ति प्रदान करते हैं। राजन् ! देवाधिदेव जगन्नाथजी की प्रसन्नता के लिये मैंने एक वर्ष तक पुरुषोत्तम क्षेत्र में निवास किया। मैं महामूर्ख था परंतु उनकी कृपा से इस समय अठारहों विद्याओं में प्रवीण हो गया हूँ। मेरी बुद्धि भी निर्मल हो गयी है, जिससे भगवान् विष्णु के सिवा और कुछ मैं नहीं देखता। तुम सदैव दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रत का पालन करने वाले विष्णुभक्त हो, इसलिये तुम्हारे पास आया हूँ। मैं तुमसे इस समय धन अथवा भूमि नहीं माँगता। केवल इतना ही कहता हूँ कि मेरी इस बात को झूठ न मानकर वहाँ पुरुषोत्तमक्षेत्र में निवास करने वाले भगवान् लक्ष्मीपति का भजन करो।’

यों कहकर वह जटाधारी यात्री सबके देखते- देखते शीघ्र अन्तर्धान हो गया। इससे राजा को बड़ा विस्मय हुआ। वे व्याकुल होकर पुरोहित से बोले- ‘यह अलौकिक वृत्तान्त अलौकिक पुरुष से ही सुना गया है। अब मेरी बुद्धि जहाँ भगवान् गदाधर विराजमान हैं, वहाँ जाने के लिये उतावली हो रही है। द्विजश्रेष्ठ ! मेरे धर्म, अर्थ और काम एक-दूसरे के अनुकूल रहकर सदा आपके अधीन रहे हैं। आपके प्रसाद से मैंने त्रिवर्ग का साधन तो कर लिया। यदि आप इस भगवद्दर्शन के कार्य में भी मेरे साथ चलेंगे तो मैं आपके सहयोग से चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर लूँगा।’

क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान