सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो ऐक्ट में चाइल्ड पोर्न शब्द की जगह CSEAM के इस्तेमाल की दी सलाह
सभी अदालतों को चाइल्ड पोर्न की जगह इस शब्द के इस्तेमाल का दिया निर्देश
सरकार को कानून में संशोधन कर CSEAM शब्द के इस्तेमाल का सुझाव दिया है
देवभूमि न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो (प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज) और आईटी ऐक्ट के तहत अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें इसे अपराध नहीं कहा गया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सिर्फ चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना आईटी ऐक्ट के तहत अपराध नहीं है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ को ‘बच्चों के यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ (CSEAM) के रूप में जाना जाना चाहिए।
कहां से शुरू हुआ मामला?
यह मामला चेन्नई पुलिस की तरफ से 28 वर्ष के एक व्यक्ति के फोन को जब्त करने के बाद शुरू हुआ। पुलिस को उसके फोन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी मटैरियल डाउनलोड मिले थे। इसके बाद पुलिस ने आईटी एक्ट की धारा 67बी और पॉक्सो एक्ट की धारा 14(1) के तहत मामला दर्ज किया।
मद्रास हाई कोर्ट का फैसला
इस साल 11 जनवरी को मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी के खिलाफ एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था। हाई कोर्ट का कहना था कि निजी तौर पर ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ देखना पॉक्सो एक्ट के दायरे में नहीं आता है।
जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की बेंच ने तर्क दिया कि आरोपी ने केवल सामग्री डाउनलोड की थी और इसे निजी तौर पर देखा था। उसने न तो इसे प्रकाशित किया था और न ही दूसरों को प्रसारित किया था। अदालत ने कहा, ‘चूंकि उसने अश्लील उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए इसे आरोपी का नैतिक पतन ही माना जा सकता है, अपराध नहीं।’
एनजीओ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस और बचपन बचाओ आंदोलन ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने उनका प्रतिनिधित्व किया। याचिका में कहा गया है, ‘ये फैसला यह धारणा देती है कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ डाउनलोड करने और रखने वाले व्यक्तियों पर मुकदमा नहीं चलेगा। यह ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ को बढ़ावा देगा और बच्चों की भलाई के खिलाफ काम करेगा। आम जनता को यह धारणा दी जाती है कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ डाउनलोड करना और रखना कोई अपराध नहीं है और इससे ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ की मांग बढ़ेगी और लोगों को अश्लील साहित्य में निर्दोष बच्चों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।’
क्या कहता है कानून?
पॉक्सो ऐक्ट 2012, आईटी ऐक्ट 2000 और अन्य कानूनों के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी का निर्माण, वितरण और उसका पाया जाना अपराध है। आईटी ऐक्ट की धारा 67बी कहती है कि जो कोई भी ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ प्रकाशित या प्रसारित करता है, उसे 5 साल तक की जेल और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है। दूसरे या बार-बार अपराध करने पर जेल की अवधि सात साल तक हो जाती है लेकिन जुर्माने की राशि वही रहती है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा बेंच ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी और उसके कानूनी परिणामों पर दिशानिर्देश जारी किए। बेंच ने कहा, ‘हमने बच्चों के उत्पीड़न और दुर्व्यवहार पर ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ के लंबे प्रभाव के बारे में कहा है… हमने संसद को पॉक्सो में संशोधन लाने का सुझाव दिया है… ताकि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ की परिभाषा को ‘बच्चों के यौन शोषण और शोषणकारी सामग्री’ के रूप में संदर्भित किया जा सके। हमने सुझाव दिया है कि एक अध्यादेश लाया जा सकता है।’
सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के दौरान एक बार फिर से CJI DY
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अदालत ने कहा कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द गलत है क्योंकि यह अपराध की पूरी सीमा को पकड़ने में नाकाम रहता है। उस शब्द के इस्तेमाल से अपराध को तुच्छ बनाया जा सकता है क्योंकि अश्लील साहित्य को अक्सर वयस्कों के बीच सहमति से किया गया कार्य माना जाता है। इसलिए, अदालत ने नया शब्द – सीएसईएएम गढ़ा जो इस वास्तविकता को अधिक सटीक रूप से दर्शाता है कि ये चित्र और वीडियो केवल अश्लील नहीं हैं, बल्कि उन घटनाओं के रिकॉर्ड हैं जहां एक बच्चे का या तो यौन शोषण और दुर्व्यवहार किया गया है या जहां बच्चों के किसी भी दुर्व्यवहार को चित्रित किया गया है।’
अदालत ने कहा कि सीएसईएएम बच्चे के शोषण और दुर्व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करता है। यह कानून की आपराधिक प्रकृति और गंभीर प्रतिक्रिया की जरूरत पर रोशनी डालता है। बेंच ने आगे कहा, ‘हम आगे अदालतों को ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल करने से मना करते हैं और इसके बजाय… (सीएसईएएम) शब्द का इस्तेमाल देश भर की सभी अदालतों के न्यायिक आदेशों और फैसलों में किया जाना चाहिए।’
सरकार को अन्य सुझाव
सरकार को अन्य सुझाव देते हुए अदालत ने कहा कि व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू किए जाएं जिनमें ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ के कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल हो। यह संभावित अपराधियों को रोकने में मदद कर सकता है। पीड़ितों को सहायता सेवाएं प्रदान करें और अपराधियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम हों। जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से सीएसईएएम की वास्तविकताओं और उसके परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाएं। जोखिम वाले व्यक्तियों की जल्दी पहचान करें और समस्याग्रस्त यौन व्यवहार वाले युवाओं के सुधार के लिए हस्तक्षेप रणनीतियां लागू करें।