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तेईसवां अध्याय〰️मंदराचल पर निवास… (भाग 1)〰️वायुदेव बोले- हे ऋषिगण ! एक बार की बात है, मंदराचल पर्वत ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी पार्वती सहित वहां निवास किया। उस समय मंदराचल पर्वत अनेक मणियों से चमकता हुआ अनेक गुफाओं से शोभायमान हो रहा था। शिवजी पार्वती जी के साथ वहां अनेक लीलाएं रचने लगे। इस तरह बहुत समय बीत गया।
दूसरी ओर संसार में प्रजा का विकास तेजी से हो रहा था। उसी समय शुंभ और निशुंभ नाम के दो दानवों ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या करके उनसे अवध्य रहने का वर मांग लिया था।
ब्रह्माजी ने वर देते हुए कहा कि यदि तुम जगदंबा के अंश से उत्पन्न कन्या को पाने की अभिलाषा करोगे तो निश्चय ही तुम्हारा विनाश हो जाएगा। तब उन्हें वर देकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए। वरदान पाकर शुभ-निशुंभ बलवान होने के साथ-साथ अभिमानी भी हो गए थे। उन्होंने देवताओं पर आक्रमण करके देवताओं को हरा दिया और इंद्र के स्वर्गासन पर
अपना कब्जा कर लिया। दोनों ने धर्म का नाश करना शुरू कर दिया। पूरा संसार उनके अत्याचारों से दुखी हो रहा था।
सब देवता दुखी होकर भगवान शिव की शरण में गए। तब शिवजी ने उन्हें आश्वासन देकर भेज दिया। इस कार्य को करने के लिए देवी पार्वती को क्रुद्ध करना आवश्यक था। इसलिए शिवजी ने स्त्रियों की बुराई करनी शुरू कर दी। तब क्रोधित होकर देवी बोली- हे स्वामी! आपको मेरा सांवला रंग नहीं सुहाता है इसलिए आप ऐसी बातें कर रहे हैं। अब मैं जा रही हूं और ब्रह्माजी की तपस्या करूंगी। यह कहकर क्रोधित देवी पार्वती वहां से चली गईं।
क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान