देवभूमि न्यूज 24.इन
उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️राजा इन्द्रद्युम्न का पुरुषोत्तम क्षेत्र को प्रस्थान और महानदी के तट पर विश्राम…(भाग 3)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️महाराज का यह वचन सुनकर द्वारपाल ने शीघ्र ही राजसभा में उत्कल नरेश का प्रवेश कराया। अपने वैष्णव मन्त्रियोंके साथ राजसभामें प्रवेश करके ओढ्रदेशके राजाने इन्द्रद्युम्नके वन्दनीय चरणोंको सादर नमस्कार किया। तब उन वैष्णव नरेशको उठाकर महाराज इन्द्रद्युम्नने उनका सत्कार किया और अपने आसनपर ही बिठाकर विनययुक्त वाणीमें कहा- ‘राजन् ! आप कुशलसे तो हैं न? ओढूपते !
नीलाचल-शिखरनिवासी भगवान् माधव तो वहाँ विजयपूर्वक विराज रहे हैं न? क्या आपकी निर्मल बुद्धि भगवान्के चरणारविन्दोंमें लगती है? समस्त प्राणियोंमें समान चित्त रखनेवाले आपका मन भगवान्में अनुरक्त तो है न?’
तब उत्कलनरेशने हाथ जोड़, नम्रतापूर्वक कहा- ‘स्वामिन् ! आपके चरणोंकी कृपासे मेरे लिये सर्वत्र कुशल है। दक्षिण समुद्रके तटपर जंगलोंसे घिरा हुआ नीलाचल विद्यमान है, किंतु वहाँ लोगोंका आना-जाना नहीं है। भगवान् नीलमाधव भी वहीं हैं परंतु इस समय प्रचण्ड आँधीके कारण उठी हुई अधिक बालुकाराशिसे छिप गये हैं, ऐसी बात सुनी जाती है।
इसीलिये मेरे राज्यमें भी अकाल और मृत्यु का भय बढ़ गया है, परंतु अब आप पधारे हैं, तो सर्वत्र कुशल ही होगा।’ उत्कलनरेशके ऐसा कहनेपर राजा इन्द्रद्युम्नने उनका आदर करते उन्हें विदा किया और नारदजीकी ओर देखकर उदासीन भावसे कहा- ‘मुने ! यह क्या हो गया?’
नारदजी बोले- राजन् ! इस विषयमें तुम्हें विस्मय नहीं करना चाहिये। श्रेष्ठ वैष्णव भाग्यवान् होता है। वैष्णवोंका मनोरथ कभी निष्फल नहीं होता। जगत्के आदिकारण एवं रोग-शोकसे रहित प्रत्यक्ष शरीर धारण किये हुए भगवान् नारायणको तुम अवश्य देखोगे। वे तुमपर ही अनुग्रह करनेके लिये इस पृथ्वीपर उतरेंगे। सम्पूर्ण चराचर जगत् भगवान् विष्णुके वशमें है। सनातन परमात्मा विष्णु किसीके भी वशमें नहीं हैं; वे भगवान् भक्तवत्सल हैं। अतः केवल भक्तिके वशमें रहते हैं। भगवान् विष्णुकी भक्ति ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूपी चारों पुरुषार्थोंकी जड़ है।
वह भक्ति ही भगवान्को वशमें करनेका उपाय है। एक ही भगवान् विष्णु अपनी मायासे अनेक रूपमें प्रकट हुए हैं। इसलिये उन परमात्माके सिवा और कोई भी सुखका कारण नहीं है। राजेन्द्र ! तुम ब्रह्माजीकी सन्तान- परम्परामें पाँचवें पुरुष हो, साथ ही श्रेष्ठ वैष्णव हो। तुमने अठारह विद्याओंमें पूर्ण विद्वत्ता प्राप्त की है और तुम सदैव सदाचारमें स्थित रहते हो। तुमने इस पृथ्वीका न्यायपूर्वक पालन किया है, विशेषतः तुम ब्राह्मणोंके पूजक हो। अतः पुरुषोत्तमक्षेत्रमें इन चर्मचक्षुओंसे भगवान् पुरुषोत्तमका दर्शन तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा। तुम्हारे इस कार्यमें स्वयं ब्रह्माजीने मुझे नियुक्त किया है। पुरुषोत्तमक्षेत्रमें चलनेपर वह सब बात मैं तुम्हें बताऊँगा। इस समय रातका तीसरा पहर चल रहा है; इन सब राजाओंको अपने-अपने डेरेमें जानेकी आज्ञा दो तुम भी आराम करो।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
*नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान