त्योहारों के सीजन में डेयरी से लाकर बच्चों को दूध ना दें- डॉ अर्चिता महाजन

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डिमांड एंड सप्लाई को कैसे कंट्रोल करना है जापानियों से सीखना चाहिए

जागो भारतीयों जागो

देवभूमि न्यूज नेटवर्क
हिमाचल प्रदेश
चंम्बा

डॉ अर्चिता महाजन न्यूट्रिशन डाइटिशियन और चाइल्ड केयर होम्योपैथिक फार्मासिस्ट और ट्रेंड योगा टीचर नॉमिनेटेड फॉर पद्म भूषण राष्ट्रीय पुरस्कार और पंजाब सरकार द्वारा सम्मानित ने बताया कि जब हम छोटे थे घर से एक दो किलोमीटर दूर जाने से हर घर में गाय और भैंस मिल जाती थी। और तब से जनसंख्या बड़ी है कम नहीं हुई उल्टा अब 10 किलोमीटर तक भी चले जाओ तो आपको कहीं गाय भैंस नजर नहीं आएगी।

जो गांव शेरों से बहुत दूर है वहां पर गाय और भैंस आपको मिलेगी पर अमूल और वेरका प्लांट वाले घर-घर से दूध उठा कर ले जाते हैं दूध गाड़ी में डालने के 3 मिनट के अंदर ही उनके पैसे अकाउंट में आ जाते हैं अब भला वह दूध लेकर शहर में आकर उधर में क्यों बेचेंगे। मतलब मेरे कहने का यह है कि आप समझ ही गए होंगे कि जो दूध आप डेयरी से ले रहे हो वह क्या है। तो इसलिए त्योहारों के सीजन में बच्चों को डेयरी से लेकर दूध ना पिलाए। कैल्शियम के और भी बहुत अल्टरनेटिव है।

उनको ट्राई करना चाहिए। नकली पनीर खाने की बजाय आप टोफू खा सकते हैं बच्चों को सोयाबीन से बना हुआ दूध दे सकते हैं इस दूध का दही बनाकर दे सकते हैं। हमें बहुत सी बातें जापानियों से सीखनी होगी जैसे की डिमांड एंड सप्लाई को कैसे कंट्रोल करना है जापानी लोग जिस चीज की सप्लाई कम हो जाती है उसकी डिमांड खत्म कर देते हैं उसका अल्टरनेटिव अपना लेते हैं कुछ समय बाद जब बैलेंस हो जाता है तो दोबारा उस प्रोडक्ट को खरीदा जा सकता है। त्योहारों के इस सीजन में जबकि दूध पहले से भी अवेलेबल नहीं है फिर भी हर डेरी वाले के पास आपको 50 से 100 लीटर दूध हाजिर मिल जाएगा।