जन्नते-कश्मीर।(कहानी)-राजीव शर्मन्

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अम्बिकानगर-अम्ब,ऊना-हिमाचल प्रदेश
देवभूमि न्यूज 24.इन
इस धरती के स्वर्ग जन्नते-कश्मीर को ना जाने किसकी नज़र लगी? सब चौपट हो गया। गोलियों की दनदनाहट और गोला बारूद की भाषा चलती है। आजादी से पहले सब यथावत था। अमृतसर का रघुनंदन अपने अतीत में खो जाता है। कभी वह और उसका दोस्त अल्लादीता कश्मीर की वादियों में घूम घूम कर डल झील पर नौकायन करते रहे। रघुनंदन का जिगर का टुकड़ा उसकी बेटी नीरजा आज भी पाकिस्तान में है। भारत-पाक विभाजन पर सरहदआजादी ने नई वंदिशों की लकीरे खींच ली। लकीरें क्या? तलवारें खींच ली।रघुनंदन का परिवार मूल रूप से अमृतसर का था। अटारी बार्डर समीप पुरखों की जमीन बंटवारे में पाकिस्तान की हदबंदी में चली गई।

अल्लादीता रघुनंदन का बचपन का साथी था। बचपन में अनेकों बार रघुनंदन और अल्लादीता ने अटारी बार्डर समीप इकट्ठा पशु चराये थे।अल्लादीता और रघुनंदन ही नहीं, पिछले कई सालों से दोनों के परिवारों के बीच जन्म-जन्मांतर के संबंध बने हुए थे। अल्लादीता बेझिझक रघुनंदन के पुश्तैनी गांव छहर्टा अमृतसर आता और दुर्गयाणा मंदिर और स्वर्ण मंदिर दर्शन करके इकट्ठा मत्था टेकने जाते। दोनों के घर पर कोई रोक टोक नहीं थी।

रघुनंदन के लड़का-लड़की जब कभी लाहौर के बच्छोवाली , अनारकली बाजार,मीना बाजार जाते तो मस्जिद में अल्लादीता के लड़कों के साथ साथ जाते थे। घर-परिवार में इकट्ठा दावतें परोसी जाती रही। ईद ,बकरीद हो या दशहरा-दीवाली ! सब त्योहारों पर आपस में मिठाईयां बांटी जाती थी।यह क्रम दो परिवारों में कई दशकों तक चला और अल्लादीता और रघुनंदन का परिवार हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गया था।

अल्लादीता का बड़ा लड़का रशीद व रघुनंदन की बेटी तो आपस में पारस्परिक ऐसे घुले-मिले जैसे कि दूध में मलाई होती है। दोनों एक साथ पढ़े। दोनों की उर्दू भाषा पर इतनी बढ़िया पकड़ थी। दोनों का आपसी संवाद सबको लाजबाव कर देता था। रशीद की अम्मी दोनों की निकटता से इत्तफाक रखती थी। विशुद्ध भारतीय सनातन संस्कृति परिवार की रघुनंदन की पत्नी अपनी बेटी नीरजा को कोई प्रतिबंध नहीं लगाती थी। अल्लादीता और रघुनंदन जब कभी चिलम-हुक्का पीते तो मजाक-मजाक में कई सवालों-जबावो को जन्म देते थे। रशीद व नीरजा अब जवानी की दहलीज पर खड़े थे। दोनों का आपसी आकर्षण तथा अन्तर्मन मिले हुए थे। रशीद की अम्मी दोनों को देखकर उनकी नजर उतारती। कभी कभी रघुनंदन की पत्नी भी असमंजस में पड़ जाती थी। कई बार वह रघुनंदन से चिंता व्यक्त करती कि पड़ोस की औरतें रशीद और नीरजा की निकटता को भड़काती है। अल्लादीता की बेगम रघुनंदन को भाईजान कहकर बुलाती तो रघुनंदन भाभी का संबोधन अख्तियार करता था। पुराने राजस्व रिकार्ड की उर्दू भाषा की बंदोबस्ती नकले,मिशल हकीत, जमाबंदी पढ़ाने के लिए पड़ोसियों द्वारा भी रशीद व नीरजा की मदद ली जाती थी। दोनों एक दूसरे से बहुत इत्तफाक से मिलते-जुलते थे। दोनों परिवारों पर यकायक ना जाने कैसी नजर लगी! भारत-पाक विभाजन का दर्द अब सताने लगा था। रशीद और नीरजा दोनों वकालत कर चुके थे। दोनों की वकालत प्रैक्टिस लाहौर और अमृतसर की अदालतों में चलने लगी थी। दोनों एक साथ अपने मुवक्किल के मुकदमे बारी-बारी लड़ते थे। उन दिनों जिन्ना और महात्मा गांधी की भारत-पाक विभाजन पर जोरदार तकरार हुई। मुस्लिम लीग नेता जिन्ना को पाकिस्तान विभाजन की प्रक्रिया के आगे कुछ भी मंजूर नहीं था। अंग्रेजी हुकूमत भारत के टुकड़े करवाने पर आमदा थी। महात्मा गांधी को आखिर भारत विभाजन का दर्द सहन करना पड़ा। जिस समय विभाजन हुआ उस समय नीरजा की कोख में रशीद का चिराग पल रहा था। अल्लादीता की आधी पुश्तैनी जमीन अटारी बॉर्डर से सटे होने से पाकिस्तान और आधी भारत की हदबंदी में चली गई। रघुनंदन और अल्लादीता का आपसी तालमेल समाप्त हो गया। अमृतसर और लाहौर में जमकर मार-काट हुई। रघुनंदन ने एक सप्ताह तक अल्लादीता व उसकी बेगम को छहर्टा अमृतसर के पुराने मकान में छुपाकर रखा। एक दिन सुबह सुबह अटारी बार्डर से पाकिस्तान को गमगीन माहौल में विदा कर दिया। रशीद और नीरजा मार-काट के चलते लाहौर से अमृतसर वापिस नहीं आ सके। नीरजा रशीद के चार बच्चों की मां बन चुकी है। नीरजा भारत-पाक विभाजन के बाद कभी लौटकर अमृतसर नहीं आ पाई। रघुनंदन व उनकी धर्मपत्नी की आंखों को मरते दम तक नीरजा से मिलने का इंतजार रहा। नीरजा के माता-पिता दोनों चल बसे। नब्बे के दशक तक खतोखताब्त होती रही। पाकिस्तान सरकार ने नीरजा को जासूसी आरोप में गिरफ्तारी भी की। कई सालों मुकदमे बाजी चलती रही। बड़ी मुश्किल से इकरारनामा बनवा पाक सरकार ने रशीद की लिखित अपील पर नीरजा की रिहाई की। उसे चेतावनी दी कि अमृतसर से कोई पत्राचार हुआ अथवा पकड़ में आया तो आजीवन रावलपिंडी की जेल में सड़ना होगा। नीरजा आज भी खौफजदा हैं। वह आज भी अमृतसर की गलियों में विचरण करती है।

दुर्गयाणा मंदिर व स्वर्ण मंदिर को याद करती है। रशीद की भी इच्छा करती है कि वह एक बार नीरजा के साथ अमृतसर में पुराने दोस्तों से मिलने पहुंचे। रशीद व नीरजा को आज भी इंतजार है कि पाकिस्तान की हुकूमत भारत विभाजन से उपजे दर्द पर कोई तहेदिल ताकीद पैदा करेगी किंतु जब सरहद पर भारी गोलीबारी होती है। उग्र आंदोलन में पाकिस्तान जलने लगता है तो दोनों सहम जाते है। उग्रवादी गतिविधियों ने तो नीरजा के भारत आने के स्वप्न को सिरे से खारिज कर दिया है। नीरजा का बेटा चिराग और परिंदा क्रिकेट खेलते हैं। नीरजा की सुनी सुनाई बातों से उनका भी मन मचलता है कि मां का पुश्तैनी शहर अमृतसर देखा जाए किंतु उग्रवादी गतिविधियों ने पानी फेर दिया है। सीमावर्ती क्षेत्र में मुजाहिदीन और लश्कर अलकायदा हिंदूस्तान व कश्मीर में आग लगाने में आमदा है। ऐसे में नीरजा सहम जाती है। उम्मीदें पालना कब मना है? नीरजा को पक्का इल्म है कि कभी ना कभी हिंदू मुस्लिम एकता और पड़ोस का पड़ोसी के साथ कोई समझौता हो जाये और लाहौर-अमृतसर की आवा-जाही विना शर्त बहाल हो जाये। मानवतावादी पुनर्वास हो जाते। पलायन रुकजाये। पत्थरबाजी खत्म हो जाये। हिंदूस्तान का शिरोमणि स्वर्ग जन्नते -कश्मीर आबाद हो कर सरसब्ज हो जाते।