श्री शिव महापुराण श्रीवायवीय संहिता (उत्तरार्ध)✍️

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देवभूमि न्यूज 24.इन

〰️बाईसवां अध्याय पूजन का न्यास निरूपण…(भाग 1)उपमन्यु बोले- हे कृष्णजी! न्यास गृहस्थियों के क्रमानुसार तीन प्रकार का होता है। ब्रह्मचारियों के लिए उत्पत्ति न्यास, संन्यासियों के लिए लय न्यास और गृहस्थियों के लिए स्थित न्यास का विधान है। अंगूठे से लेकर कनिष्का उंगली तक स्थित न्यास होता है। लय न्यास वाम अंगुष्ठ से दक्षिण अंगुष्ठ तक है। बिंदु के साथ नकारादि वर्णों का न्यास करना चाहिए। तल और अनामिका में शिवजी का न्यास करें।

दसों दिशाओं में अस्त्र न्यास होना चाहिए। पांच भूतों के स्वामी एवं पांच कलाओं को अपने हृदय के मध्य ब्रह्मरंध्र में धारण करें। पंचाक्षर मंत्र का जाप करें। प्राणवायु को रोककर अस्त्र मुद्राओं से भूत ग्रंथि का छेदन कर सुषुम्ना नाड़ी द्वारा जप करें। फिर वायु द्वारा शरीर शोषण करें। फिर कलाओं का संहार करें। दुग्ध कलाओं का स्पर्श कर अमृत द्वारा सिक्त कर शरीर को उचित स्थान पर स्थापित करें। तत्पश्चात भौतिक शरीर को भस्म द्वारा स्नान कराएं। हृदय में स्थित भगवान शिव का ध्यान करते हुए अमृत वर्षा से विधात्मक देह को सींचें।

अपने शरीर को शुद्ध करके शिव तत्व प्राप्त कर ईश्वर का पूजन करें। मातृ न्यास, ब्रह्म न्यास, प्रणव न्यास और हंस न्यास करें। हकार हृदय से सकार भृकुटि मध्य में पचास वर्ण रुद्र मार्ग के द्वारा न्यास करें। फिर क्रमशः अघोर, वामदेव, प्रणाम, हंस, न्यास, पंचाक्षरी मंत्र का न्यास करें। भगवान शिव का परम भक्त और शिव पूजन और ध्यान करने वाला मनुष्य संसार सागर से पार हो जाता है। इसी के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान