देवभूमि न्यूज 24.इन
उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य समुद्र में स्नान की विधि और भगवद् विग्रहों का वर्णन…(भाग 6)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️चमेली, कमल, चम्पा, अशोक, पुन्नाग, नागकेसर तथा अन्य सुगन्धित पुष्पों से बनी हुई माला अथवा माल्य और तुलसीदल की माला पहनावे तथा कुछ छूटे फूल भी भगवान् के मस्तक पर बिखेरे। जो गले से लेकर पैरों तक लंबी हो, उसका नाम माला है और जिसकी लंबाई कण्ठ से लेकर जंघातक हो, उसे माल्य कहते हैं। जो केशों के मध्य में पहनाया जाय, वह गर्भक कहा गया है। उसके बाद मस्तक पर पुष्पांजलि बिखेरनी चाहिये। पुष्पांजलि के पश्चात् गुग्गुल, अगुरु, खस, शक्कर, घी, मधु और चन्दन के द्वारा सुगन्धित धूप तैयार करके दे।
उसके बाद गाय के घी से सुन्दर दीप जलाकर दे अथवा कर्पूरयुक्त बत्ती के साथ तिलके तेल से दीपक जलाकर दे। तदनन्तर घी में तैयार किया हुआ सुगन्धित अन्न, गायका दही, गाय के दूध में पकाकर शक्कर मिलाया हुआ केला, नाना प्रकार के व्यंजनों से युक्त पूआ और भाँति-भाँति के फल- इन सबके सहित मनोरम सुगन्धयुक्त सरस एवं नूतन नैवेद्य तैयार करके भगवान् को समर्पित करे। धूप, दीप, नैवेद्य, स्नान, अर्घ्य, मधुपर्क, वस्त्र तथा यज्ञोपवीत- इनमें से प्रत्येक के अर्पण करने पर भगवान् को आचमन करावे। अन्य कर्मों में आचमन के लिये केवल जल देना चाहिये। परंतु नैवेद्य के अन्त में संस्कार किया हुआ उपचारयुक्त आचमन देना चाहिये।
साथ ही करोद्वर्तन के लिये सुगन्धित चन्दन भी देना चाहिये। उसके बाद कपूर, लवंग, इलायची, जायफल और सुपारीके साथ ताम्बूल अर्पण करे। तत्पश्चात् एक सौ आठ बार मूल मन्त्र का जप करके अनन्य भावसे स्तुतिपाठ करे।
फिर प्रदक्षिणा करके भगवान् पुरुषोत्तम की प्रार्थना करे- ‘समस्त तीर्थों के प्रवर्तक देवाधिदेव जगन्नाथ ! आप सर्वतीर्थमय तथा सर्वदेवमय हैं। पाप की राशि में डूबे हुए मुझ सेवक की रक्षा कीजिये। आपको नमस्कार है।’
इस प्रकार देवेश्वर भगवान् नारायण की पूजा करके तीर्थराज समुद्र में स्नान करने वाला मनुष्य सब तीर्थोंका फल पाता है। कोटि गोदान से, कोटि यज्ञ से, कोटि ब्राह्मण भोजन से तथा कोटि महादानों से कर्म करने वालों के लिये जो पुण्य बताया गया है, वह इस समुद्रस्नान पूर्वक भगवत्- पूजन से प्राप्त हो जाता है।
अन्य तीर्थों में किया हुआ पाप समुद्र के किनारे नष्ट होता है और समुद्र के किनारे किया हुआ पाप समुद्र में स्नान करने से नष्ट होता है। ब्रह्महत्यारा, शराबी, गोघाती आदि पाँच प्रकार के महापातकी मनुष्य भी समुद्रस्नान करने से निःसन्देह उन पापों का प्रायश्चित्त कर लेते हैं। जो मनुष्य अपने जन्म, जीवन और शास्त्राध्ययन को सफल बनाना चाहे वह समुद्रतट पर आकर देवताओं और पितरों का तर्पण अवश्य करे। कृच्छ्र और चान्द्रायण आदि तप सुलभ हैं, बहुत दक्षिणा वाले अग्निष्टोम आदि यज्ञ भी सुलभ हैं, परंतु सिन्धु के जल से पितरों का तर्पण अत्यन्त दुर्लभ है। स्नान के आदि और अन्त में जगन्नाथजी का पूजन और बीच में तीर्थराज के जल में स्नान करके मनुष्य मोक्ष का भागी होता है। तदनन्तर शुद्ध चित्तवाला मनुष्य श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा को नमस्कार करके उनके स्वरूप का चिन्तन करे।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान