पतंगवाला (कहानी)-राजीव शर्मन्

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अम्बिकानगर-अम्ब कलौनी रेलवे स्टेशन रोड अम्ब-ऊना हिमाचल प्रदेश।
देवभूमि न्यूज 24.इन

शहर में वह पतंगवाला बहुत सालों से पतंग बेचता चला आ रहा था। शहर में पतंग बेचने वाले दर्जनों पतंगवाले मौजूद थे। वह पतंगवाला बच्चों की पहली पसंद बन चुका था।उसकी बोलवाणी बहुत मिठास घोलती थी।यही कारण था कि दूरदराज के मौहल्ले के शौकीन पतंगबाजी करने वाले बच्चे लालू पतंगवाला के यहां स्कूल से छुट्टी होते ही पतंग खरीदने दौड़ पड़ते थे।
लालू गली की नुक्कड़ पर एक सालों साल बंद रहने वाली दुकान के आगे अपने पतंगों को सजाने लगता था। लालू पतंगवाला पतंग तैयार करने में बहुत माहिर था।वह बच्चों की पसंद के हिसाब से रंग-बिरंगे गुड्डी,परिया, जहाज किस्मों के पतंगों को तैयार रखता था। पतंगवाला की यह भी खासियत थी कि वह पतंग में डोर बांध कर देता था ताकि बच्चे अपनी अपनी सुविधानुसार ऊंची पतंग उड़ा सके।

बसंत पंचमी से पहले अंग्रेजी साल और हिंदी महीने की मकर संक्रान्ति से लालू पतंगवाला की नुक्कड़ पर रौनक बढ़ने लग जाती थी। जब पतंगवाला लालू को फुर्सत मिलती तो वह शीशे की डोर भी स्वयं तैयार करने लगता था।
जब कभी बेमौसमी वर्षा ऋतु दस्तक देती तो वह सामने वाली जोधामल की पुरानी हवेली के मुख्य द्वार पर शरण ले लेता था। जोधामल की धर्म पत्नी बहुत धर्म परायण होने से लालू पतंगवाला को मुख्य द्वार पर आने से कोई रोक टोक नहीं करती थी। किंतु जोधामल की बहुरानी लालू पतंगवाला के मुख्य द्वार पर आने का विरोध करती थी। बहुरानी का कहना था कि उसके बेटा-बेटी अब बड़े हो रहे हैं। यह लालू पतंगवाला लावारिस घुमंतू है। इस पर ज्यादा विश्वास व्यक्त नहीं करना चाहिए।वह सासू अम्मा के नाहक पतंगवाला को ज्यादा तरजीह देने के खिलाफ थी।एक दिन वर्षा में जोधामल की धर्म पत्नी ने लालू पतंगवाला को एक कप चाय पीने को दिया तो घर में सासु-बहुरानी में खूब बाक युद्ध हुआ था। लालू पतंगवाला तो मजबूरी की हालत में वर्षा से अपनी पतंगों को बचाने की गर्ज से हवेली के मुख्य द्वार की शरणागति हो जाता था।


कुछ दिनों से हवेली के मालिक जोधामल बीमार चल रहे थे। जब बहुरानी अपने बेटा-बेटी को स्कूल की बस पर चढ़ाने जाती तो पतंगवाला लालू उनकी कुशलक्षेम पूछने चला जाता था। जोधामल की धर्म पत्नी कुछ ना कुछ फल फ्रूट पतंगवाला को खाने देती थी। जोधामल अपनी बीमार शय्या से मुस्कुरा कर पतंगवाला को देखकर प्रसन्न हो जाते थे।
एक दिन बहुरानी ने लालू पतंगवाला को घर के अंदर आया देखा तो आग बबूला हो गई थी।
ना जाने क्या क्या अनाप शनाप बकती चली गई थी। जोधामल की धर्म पत्नी ने बहुरानी को बहुत समझाया कि वह मुसीबत का मारा है उसके सिर पर छत नहीं है।
वह अभागा है जिन दिनों पतंगों का सीजन नहीं होता वह यहां वहां मेहनत मुशक्कत करके अपना पेट पालता है। बहुरानी को पतंगवाला लालू की हिमायत करना नहीं भाता था।
वह पतंगवाला को अपनी हवेली की पौड़ियां चढ़कर अपने घर में नहीं देखना चाहती थी। ऐसे में वह पतंगवाला लालू के लिए बहुत बड़ी आलोचना की फेहरिस्त तैयार रखती थी। लालू पतंगवाला मवाली है,टपोरी है, लुच्चा लफंगा है,जगह जगह हाथ मार कर अपना पेट भरता है, सोने के लिए कोई छत नसीब नहीं है। निहरा चांडाल है, श्मशानघाट में ही सोया मिलता है।ना जाने इस पतंगवाला पर किस किस की भूत प्रेत छाया है।यह मनहूस कभी सवेरे मिल जाए तो खाने को रोटी भी नसीब नहीं होती है।
जोधामल की धर्म पत्नी ने बहुरानी को बहुत समझाया कि अपनी जुबान गंदी नहीं करनी चाहिए आखिर लालू पतंगवाला भी किसी का बच्चा है।तू भागवान बच्चों वाली होकर उसके पीछे पड़ी रहती है।


जोधामल की बीमारी नासाज़ हो चली तो लखनऊ से बड़े लाट साहब बेटे को बुलाया गया था।
लाट साहब के पहुंचने के दूसरे दिन ही जोधामल ने दम तोड़ दिया था। पतंगवाला लालू सभी मोहल्ले वालों के साथ उनके दाह संस्कार में शामिल हुआ था। घर पर शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का आना जाना लगा था।

उधर वर्षा बड़े जोरों से शुरू हो गई थी। पतंगवाला लालू ने अपनी पतंगों को समेटकर हवेली के मुख्य द्वार पर शरण ली थी। कुछ अंधभक्तों ने लालू पतंगवाला के वहां पर लाल,पीली रंग-विरंगी पतंगों के रखने पर सवाल उठाए थे।उनका कहना था कि यहां मातम पोशी चल रही है और पतंगवाला लालू मुख्य द्वार पर अपनी पतंगें एकत्रित करके बैठा था। कुछ महिलाओं के सवालिया घेरों में आने पर पतंगवाला लालू अपने आखिरी मुकाम श्मशानघाट पतंगों सहित चल दिया था। पतंगों को भीगने से वह बचा नहीं पाया था। पतंगों की बांसनुमा पतली स्टिक पतंगी कागज से अलग हो चुकी थी। पतंगवाला अपनी किस्मत को कोस रहा था। श्मशान घाट में एक चिता जल रही थी। पतंगवाला ने उसी चिता में भीगी हुई पतंगों को स्वाहित कर दिया था। थोड़ी देर पतंगवाला लालू को लगा कि पतंगों को मुक्ति मिल गई है।उसका तो झंझट ही समाप्त हो गया है।अगले ही पल पतंगवाला को अपना अतीत घेरने लगा था। वह कौन है? कहां से आया है ?उसे कहां जाना है?आदि आदि।
वह गहरी सोच में पड़ गया था। बड़ी धुंधली यादों में जाकर अपने को एक रेलवे स्टेशन पर पाया था।तब वह मुश्किल से पांच साल का रहा होगा। रेलवे स्टेशन पर आने से पहले किसी बड़े शहर में लड़ाई झगड़े का परिदृश्य नजर आया था। उसके बापूजी कोई राय बहादुर उसके साथ रेलवे स्टेशन पर मौजूद थे। उन्हें किसी साजिश षड्यंत्र के तहत देश निकाला दिया गया था। उसके बाद वह उनसे बिछुड़ने के बाद दिल्ली की गलियों की खाक छानने लगा था। उसके बाद हालात ऐसे बने कि वह कभी अपने बापू राय बहादुर को ढूंढने में हर जगह नाकामयाब रहा था।अब तो वह बहुत सालों से लालू पतंगवाला के नाम से ही जाना जाने लगा था। कभी कभी वह आंदोलित हो जाता था कि कुछ पैसा इकट्ठा करके बापूजी राय बहादुर को ढूंढने की कोशिश की जाये ?किंतु भाड़ में गई वह कोशिश नाकारात्मक विचार हावी हो जाते थे।
जोधामल के लाट साहब बेटे ने लालू पतंगवाला की सहकारिता से रीझ कर उसे अपने साथ
लखनऊ चलने की पेशकश की थी। लालू पतंगवाला को यह पेशकश और नई तरकीब भाने लगी थी। लालू पतंगवाला ने लाट साहब को पूछा था कि वहां लखनऊ में क्या काम करना होगा?
बस हम आढ़ती बनिया लोग हैं। आलु-प्याज की आढ़त से शुरू होकर काफी चीजों की आढ़त करके पैसा कमाते हैं। लालू पतंगवाला ने कहा कि वह पढ़ नहीं पाया है उसके स्कूली शिक्षा के दिनों में वह घर से विछुड़ गया था। लाट साहब ने लालू पतंगवाला को यकीन दिलाया कि इस काम में वह सामान की देखरेख किया करेगा। आने जाने वालों को जी हजूरी से बिठाया करेगा। लालू पतंगवाला लाट साहब के साथ लखनऊ चल दिया था।
लाट साहब ने लालू पतंगवाला को सब्जी मंडी के आढ़ती एसोसिएशन के यहां रहने का इंतजाम करके देखरेख का काम सपुर्द कर दिया था।
एक महीने के भीतर ही पतंगवाला लालू अपनी जादुई बोल बाणी से अपना यहां भी सिक्का जमाने लगा था। एक दिन एक बड़ी ट्रक लारी सब्जी मंडी के भीतर आई थी। लालू पतंगवाला वहीं देखरेख में तैनात था। लाट साहब ने लारी ड्राईवर से पूछा कि आढ़ती राय बहादुर नहीं आये ?
हां हुजूर साहब वह साथ आये हैं।
लालू पतंगवाला राय बहादुर को देखते ही बोला कि यह तो मेरे बचपन के बापूजी है। बस फिर क्या था?
यह तो एक बहुत बड़ा करिश्मा हो गया था। राय बहादुर ने तो आढ़ती एसोसिएशन मंडी में ही एक बहुत बड़ी दावत का आयोजन कर डाला था।
आज तीस सालों के बाद अपना इकलौता बेटा लालू बहादुर जो मिल गया था।
लालू पतंगवाला अब एक साधारण लालू और श्मशान घाट में सोने वाला नहीं था।वह तो एक बहुत बड़े आढ़ती एसोसिएशन बनिए राय बहादुर का बेटा था।लाट साहब भी उनके आगे कुछ नहीं थे। लाट साहब तो राय बहादुर की नजरों में भगवान बन कर आया था। लाट साहब ने ही तो पिता पुत्र का मिलन करवाया था। लालू पतंगवाला को अपनी औकात अच्छी तरह याद थी।वह सबसे पहले दिल्ली में अपने लालू पतंगवाला की नुक्कड़ को ही दिखाना चाहता था। लाट साहब राय बहादुर को अपने साथ लालू बहादुर के संग अपनी पुरानी हवेली में ले आये थे। लालू सबसे पहले जोधामल की धर्म पत्नी को मिलकर फूट फूट कर रोने लगा था। बहुरानी वहां मौजूद थी। उसके मुंह से तो आवाज ही गायब हो गई थी।हां सासू अम्मा जोधामल की धर्म पत्नी इशारों-इशारों से उसको चपत लगा रही थी।
थोड़े ही दिनों बाद लालू बहादुर की शादी दिल्ली में सम्पन्न करवाई गई। जिस जोधामल की हवेली के बाहर उसने लालू पतंगवाला बनकर पतंगों की विक्री की थी।आज वह हवेली भी लालू बहादुर के पास आ चुकी है।
लालू बहादुर ने पिता जी राय बहादुर को कहकर लखनऊ का सारा कारोबार लाट साहब को सुपुर्द कर दिल्ली में नये सिरे से कारोबार का इंतजाम कर लिया है।
लालू बहादुर धर्मार्थ के ही कार्यों में सपत्नीक संलग्न हो गया है।

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