*देवभूमि न्यूज 24.इन*
🪦इस साल 16 नवंबर 2024 से मार्गशीर्ष माह की शुरुआत हो चुकी है। यह महीना भगवान कृष्ण की पूजा को समर्पित है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग की शुरुआत हुई थी। इस माह में पूजा-पाठ व दान से जुड़े कार्य करने पर साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं। साथ ही भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती हैं। हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष माह को बेहद खास माना जाता है। व्रत-त्योहारों की दृष्टि से भी यह माह बेहद शुभ है। इस माह में काल भैरव जयंती, विवाह पंचमी, भानु सप्तमी, प्रदोष और धनु संक्रांति जैसे व्रत भी रखे जाते हैं।
इस साल मार्गशीर्ष माह में प्रदोष व्रत 28 नवंबर 2024 को रखा जाएगा। इस दिन सौभाग्य योग का निर्माण हो रहा है, जो शाम 4 बजकर 1 मिनट तक रहेगा। इस दौरान चित्रा नक्षत्र का संयोग भी बनेगा। इस संयोग में शिव परिवार की आराधना करने से वैवाहिक जीवन में खुशियों का वास होता है। ऐसे में आइए इस दिन की पूजा विधि के बारे में जानते हैं।
📿कब है प्रदोष व्रत? ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
इस वर्ष मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 28 नवंबर 2024 को सुबह 06:23 पर होगा। इसका समापन 29 नवंबर को सुबह 09:43 पर होगा। उदयातिथि के अनुसार 28 नवंबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दिन गुरुवार होने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
📿प्रदोष व्रत पूजा विधि
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- प्रदोष व्रत के दिन सुबह ही स्नान के बाद साफ वस्त्रों को धारण करें।
- इसके बाद घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
- फिर प्रदोष काल में पूजा के लिए सभी सामग्रियों को एकत्रित कर लें।
- सबसे पहले एक चौकी लगाएं और पर उसपर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाएं।
- चौकी पर शिव-पार्वती की मूर्ति को स्थापित करें।
- इसके बाद शिवलिंग का शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक कर लें।
- अब महादेव को फूल, बेलपत्र और भांग अर्पित करें।
- इस दौरान अर्पित करने की सभी सामग्रियों को भी चढ़ा दें।
- अब दीया और धूप बत्ती जलाकर महादेव की आरती कर लें, और पूजा समाप्त करें।
📿शिव आरोग्य मंत्र
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माम् भयात् सवतो रक्ष श्रियम् सर्वदा।
आरोग्य देही में देव देव, देव नमोस्तुते।।
ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
📿शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मंत्र
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मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । स्नानीयं जलं समर्पयामि।
📿शिव जी की आरती
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
*♿ #जय_महाकाल♿*