श्री शिव महापुराणश्रीवायवीय संहिता (उत्तरार्ध)

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✍️देवभूमि न्यूज 24.इन
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    उन्तीसवां अध्याय

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काम्य कर्म निरूपण…(भाग 1)
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श्रीकृष्ण बोले- हे महर्षे! अब आप मुझसे शिव धर्म के अधिकारी पुरुषों का कर्तव्य कर्म निरूपण करें। उपमन्यु बोले- हे कृष्ण! कर्म ऐहिक और आयुष्मिक दो प्रकार के होते हैं जिनमें आयुष्मिक कर्म, क्रियामय, तपोमय, जनमय ध्यानमय, सर्वमय आदि कुल पांच प्रकार के होते हैं। इन कर्मों की पूर्णता हेतु हवन, दान और पूजन आदि सब कर्म किए जाते हैं। शक्तिमान पुरुष ही इन कर्मों को सफल करते हैं।

भगवान शिव ही अपने भक्तों को आज्ञा और शक्ति प्रदान करने वाले हैं। इसलिए उन्हीं पुरुषों को काम्य कर्म करना चाहिए। यह काम्यकर्म इस लोक और परलोक दोनों में परम फलदायक है। शिव महेश्वर हैं, वे सबके ईश्वर हैं। ज्ञानपूर्वक यज्ञ करने वाले शिवभक्त ही महेश्वर हैं।

इसलिए ही आभ्यंतर कर्म शैव तथा वाहा कर्म महेश्वर हैं। गंध, रस, वर्ण द्वारा भूमि परीक्षा कर पृथ्वी के पृष्ठ पर पूर्व दिशा की उत्पत्ति करें और मंडल की रचना करें। फिर सर्वेश्वर महेश्वर का पूजन करें। तीन तत्वों से युक्त त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की मूर्ति के समक्ष शक्ति का आह्वान करें। तत्पश्चात पांच आवरणों का पूजन शुरू करना चाहिए।

क्रमशः शेष अगले अंक में…

✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान