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🌼उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य श्रीजगन्नाथजी की रथयात्रा, गुण्डिचा-महोत्सव तथा पुनः मन्दिर प्रवेश सम्बन्धी यात्रा एवं उत्सव की महिमा…(भाग 5)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️मघा नक्षत्र पितरोंका है, अतः वह पितरोंको अधिक प्रीति प्रदान करनेवाला है। उस नक्षत्रमें पुत्रोंद्वारा दिया हुआ श्राद्धका दान पितरोंको विशेष तृप्त करता है। उक्त सर्वतीर्थमय सरोवरके तटपर भगवान् विष्णुके समीप नृसिंह और नीलकण्ठके मध्यवर्ती अतिपवित्र स्थानमें यदि मनुष्य श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करे तो अपनी सौ पीढ़ियोंका उद्धार करता है।
आषाढ़के शुक्ल पक्षमें पंचमी तिथि, मघा नक्षत्र और जगन्नाथजीका महावेदीपर आगमन- ये तीनों योग यदि इन्द्रद्युम्न सरोवरपर प्राप्त हों तो वह पितरोंको अक्षय प्रीति देनेवाला चतुष्पादयोग माना गया है। भाद्रपद मासकी अमावास्याको अथवा चारों युगादि तिथियोंमें जो पितरोंके उद्देश्यसे अश्वमेधांग-सम्भूत इन्द्रद्युम्न सरोवरपर श्राद्ध करता है, उसका किया हुआ वह श्राद्ध सब पापोंका नाश करनेवाला है। सात दिनोंतक मौनभावसे तीनों काल स्नान करे और तीनों संध्याओं में कलशपर भक्तिपूर्वक भगवान्की पूजा करे। गायके घी अथवा तिलके तेलसे दीपक जलावे और उसे भगवान्के आगे रखकर रात-दिन उसकी रक्षा करे। दिनमें मौन रहे और रातमें जागरण करके भगवत्सम्बन्धी मन्त्रका जप करे। इस प्रकार सात दिन बिताकर आठवें दिन प्रातः काल उठकर प्रतिष्ठा करावे। इस व्रतराजका विधिपूर्वक पालन करके मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- चारों पुरुषार्थीको अपनी रुचिके अनुसार प्राप्त करता है।
सात दिनोंतक वहाँ रथकी भलीभाँति रक्षा करके आठवें दिन उन सब रथोंको पुनः दक्षिणाभिमुख कर दे और वस्त्र, माला, पताका तथा चैवर आदिसे उनकी पुनः सजावट करे। आषाढ़ शुक्ला नवमीको प्रातःकाल उन सब भगवद्विग्रहोंको रथपर विराजमान करे। भगवान् विष्णुकी यह दक्षिणाभिमुख यात्रा अत्यन्त दुर्लभ है। भक्ति और श्रद्धासे युक्त मनुष्योंको इस यात्रामें प्रयत्नपूर्वक भाग लेना चाहिये। जैसे पहली यात्रा है उसी प्रकार यह दूसरी भी है। दोनों ही मोक्षदायिनी हैं। यात्रा और मन्दिरप्रवेश- ये दोनों मिलाकर भगवान्का एक ही उत्सव माना गया है। यह पूरी यात्रा नौ दिनकी होती है। जिन लोगोंने तीन अंगोंवाली इस यात्राकी पूर्णतः उपासना की है, उन्हींके लिये यह महावेदी महोत्सव सम्पूर्ण फल देनेवाला होता है।
गुण्डिचामण्डपसे रथपर बैठकर दक्षिण दिशाकी ओर आते हुए श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राका जो दर्शन करते हैं, वे मोक्षके भागी होते हैं, अर्थात् भगवान्के वैकुण्ठधाममें जाते हैं।
मुनिवरो! इस प्रकार मैंने तुमसे महावेदी महोत्सवका वर्णन किया, जिसके कीर्तनमात्रसे मनुष्य निर्मल हो जाता है। जो प्रतिदिन प्रातः काल उठकर इस प्रसंगका पाठ करता है अथवा सावधान होकर सुनता है और भगवत्प्रतिमाका चित्र लेकर भी उसे रथपर बैठाकर भक्तिभाव से इस रथयात्रा को सम्पन्न करता है, वह भी भगवान् विष्णु की कृपासे गुण्डिचामहोत्सव के फलस्वरूप वैकुण्ठधाम में जाता है।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान