श्री शिव महापुराणश्रीवायवीय संहिता (उत्तरार्ध)✍️

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देवभूमि न्यूज 24.इन

इकतीसवां अध्याय शिव-स्तोत्र निरूपण…(भाग 1) उपमन्यु बोले- हे श्रीकृष्ण! अब मैं आपको पंचवरण नामक पवित्र स्तोत्र सुनाता हूं। हे जगतनाथ ! प्रकृति से सुंदर नित्य चेतन स्वरूप की सदा जय-जयकार हो। हे सरल स्वभाव वाले पवित्र, चरित्रवान सर्वशक्ति संपन्न! पुरुषोत्तम तुम्हारी सदा ही जय हो। हे मंगलमूर्ति कृपानिधान ! देवाधिदेव! मैं आपको प्रणाम करता हूं। भगवन्! पूरा संसार आपके वश में है। प्रभु आप सब पर कृपा करके अपने भक्तों की कामनाओं को पूरा करें।

हे जगदंबा ! हे मातेश्वरी! आप हम सब भक्तों के मनोरथों को पूरा कीजिए। हे गणनायक ! हे स्कंद देव! आप भगवान शिव की आज्ञा का पालन करने वाले और उनके ज्ञान रूपी अमृत को पीने वाले हैं। भगवन्! आप मेरी रक्षा करें। हे पांच कला के स्वामी आप मेरी अभिलाषा पूरी करें।

हे आठ शक्तियों के स्वामी! आप सर्वेश्वर शिव की आज्ञा से हमारी कामनाएं पूरी करें। हे सात लोकों की माता! आप मेरी प्रार्थना स्वीकार करें। हे विघ्न विनाशक ! आप हमारे शुभ कार्यों में आने वाले सभी विघ्नों को दूर करें। इस प्रकार यह आवरण स्तोत्र अत्यंत शुभ है। प्रतिदिन इस कीर्तन को श्रवण करने वाला पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होता है।

क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान