देवभूमि न्यूज 24.इन
उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य भगवान् पुरुषोत्तम के पार्श्व-परिवर्तन, उत्थापन और प्रावरण आदि उत्सवों का महत्त्व…(भाग 2)इस प्रकार जगदीशजीको जगाकर शंख, धौंसा, ढोल आदि वाद्यों, नृत्य और गीतों, जय-जयकारके शब्दों तथा नाना प्रकारके स्तोत्रोंके साथ नृत्यमण्डपमें ले जाय। वहाँ सुगन्धित तेलसे उबटन करके जगन्नाथजीको पंचामृत, फलोंके रस तथा नारियलके जलसे स्नान करावे। उसके बाद सुगन्धयुक्त आँवले और जौके चूर्णसे भगवान् के शरीर पर लेप करे। तुलसीके चूर्ण से उनके शरीर को मले और सुगन्धित चन्दनका लेप करे।
उस समय जो लोग हर्षपूर्वक श्रीजगदीशजीका दर्शन करते हैं वे अनेक जन्मोंके सुदृढ़ पापपंकको धो डालते हैं। तत्पश्चात् बड़े- बड़े उपचारोंसे भगवान्की विधिवत् पूजा करके उनकी आरती उतारे और हाथ जोड़कर बड़ी प्रसन्नताके साथ प्रार्थना करे- ‘प्रभो! यह सम्पूर्ण चराचर जगत् केवल आपकी ही शरणमें है, जगद्गुरो ! अपनी कृपासुधासे परिपूर्ण दृष्टिद्वारा इसे पवित्र कीजिये।’ तदनन्तर शेष रात्रि भगवत्सम्बन्धी नृत्य- गीतको देखते हुए व्यतीत करे। जो लोग शयनसे उठे हुए भगवान् गदाधरका दर्शन करते हैं वे अपनी मोहमयी निद्राका भेदन करके शान्त ज्योतिः स्वरूप श्रीहरिको प्राप्त होते हैं।
शालग्रामशिलामें स्थित भगवान् श्रीहरिकी चक्रमूर्तिका शुद्धचित्त होकर पूजन करे। पूजाके समय भगवान्का ध्यान इस प्रकार करे- दामोदर- स्वरूपधारी भगवान्के चार भुजाएँ हैं। उन्होंने हाथोंमें शंख और कमल धारण कर रखा है। उनके वामभागमें कमलके आसनपर लक्ष्मीजी बैठी हैं और वे बायें हाथसे उनका स्पर्श करके बैठे हैं। भगवान् अपने दाहिने हाथसे भक्तोंको वर देनेके लिये उद्यत हैं। उनकी नासिका, ललाट, उनके दोनों नेत्र और कान सभी बहुत सुन्दर हैं। उनका वक्षःस्थल विशाल है, वे सम्पूर्ण लावण्यसे सुशोभित हैं, समस्त अलंकारोंको धारण करके वे बड़े ही मनोहर प्रतीत होते हैं। उनके श्रीअंगोंपर दिव्य पीताम्बर शोभा पा रहा है।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान