स्वाद को सेहत पर भारी न पढ़ने दें रेहड़ी पटरी वाले को आता प्रयोग करने को कहें
देवभूमि न्यूज 24.इन
डॉ अर्चिता महाजन न्यूट्रीशन डाइटिशियन एवं चाइल्ड केयर होम्योपैथिक फार्मासिस्ट एवं ट्रेंड योगा टीचर नॉमिनेटेड फॉर पद्मा भूषण राष्ट्रीय पुरस्कार और पंजाब सरकार द्वारा सम्मानित ने बताया कि सर्दियों में तंदूरी नान कुल्चा खाने को बहुत मन करता है वह स्वाद स्वाद में हम दो या दो से ज्यादा भी खा लेते हैं परंतु यदि थोड़ा सा भी हम सजग रहे तो हम सेहत से खिलवाड़ होने से बचा लेंगे।
आप रेहड़ी पटरी वाले को मैदे की जगह आटे वाला नान और कुलचा बनाने को कह सकते हैं।मैदा में फ़ाइबर नहीं होता, इसलिए यह आसानी से पच नहीं पाता. इससे कब्ज़, अपच, एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. मैदे में ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज़्यादा होता है, जिससे शरीर में तेज़ी से शर्करा का स्तर बढ़ सकता है. इससे डायबिटीज़ होने का खतरा बढ़ सकता है. मैदा में प्रोटीन बहुत कम होता है, जिससे यह एसिडिक बन जाता है
. यह एसिड हड्डियों से कैल्शियम सोख लेता है, जिससे हड्डियां कमज़ोर हो सकती हैं. मैदा में भारी मात्रा में ग्लूटन पाया जाता है जो खाने को लचीला बना कर उसको मुलायम टेक्सचर देता है, फूड एलर्जी का कारण बनता है. मैदे में बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है. इससे वज़न बढ़ना, हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं हो सकती हैं. मैदा को बनाने के लिए इसे कई प्रोसेस से होकर गुज़रना पड़ता है, जिसके चलते इसमें किसी भी तरह का कोई पोषक तत्व नहीं होता.