देवभूमि न्यूज 24.इन
21 से 27 दिसंबर तक के दिन चार साहिबजादों और सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की माँ की याद में बलिदान सप्ताह के रूप में समर्पित हैं, जिन्होंने सिख धर्म और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया था।
महीनों चली जंग में जब औरंगजेब को जीत हासिल न हुई तो उसने गुरु गोबिंद सिंह जी को पत्र भेजा कि मैं कुरान की कसम खाता हूँ कि अगर आनन्दपुर किले को खाली कर दो तो मैं बिना रोकटोक आप सभी को यहाँ से जाने दूँगा।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने किले को छोड़ना बेहतर समझा,लेकिन औरंगजेब ने धाेखा दिया और उनकी सेना पर हमला कर दिया सरसा नदी के किनारे लम्बा युद्ध चला और उनका परिवार बिछड़ गया।
1705 में 21, 22, और 23 दिसम्बर को गुरु गोविंद सिंह और मुगलों की सेना के बीच एक युद्ध पंजाब के चमकौर में लड़ा गया। वजीर खां गुरु गोबिंद सिंह को जीवित या मृत पकड़ना चाहता था इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह की सेना में उनके दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह एवं जुझार सिंह और 40 अन्य थे इन 43 लोगों ने मिलकर ही वजीर खां की पूरी सेना का विनाश कर दिया।वजीर खान गुरु गोविंद सिंह को पकड़ने में असफल रहा, लेकिन इस युद्ध में गुरु जी के दो पुत्रों साहिब ज़ादा अजीत सिंह व साहिबज़ादा जुझार सिंह और 34 सिक्ख भी शहीद हो गए और मात्र 6 सिक्ख बचे।

इधर गुरुगोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और साहिबजादे फतेह सिंह दादीमाँ गुजरी देवी संग जंगल से गुजरते हुए एक गुफा में ठहर गए उनके पहुंचने की खबर लंगर की सेवा करने वाले गंगू को मिली और वो उन्हें अपने घर ले आया और अशर्फियों के लालच में उनकी मौजूदगी की जानकारी कोतवाल को दे दी। कोतवाल ने सिपाही भेजकर माताजी और साहिबजादों को कैदी बना लिया।अगली सुबह इन्हें सरहंद के बसी थाने ले जाया गया और इनके साथ इनके समर्थन में सैकड़ों लोग साथ चल रहे थे।
सरहंद में माताजी और साहिबजादों को ऐसी ठंडी जगह पर रखा गया, जहाँ बड़े बड़े लोग हार मान जाएँ इन्हें डराया गया, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी।
पूस का 13वां दिन…. नवाब वजीर खां ने फिर पूछा…. बोलो इस्लाम कबूल करते हो
6 साल के छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह ने नवाब से पूछा…. अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न ?
वजीर खां अवाक रह गया मुँह से जवाब न फूटा।
साहिबजादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है, तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें……
तभी दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ…

दीवार चिनी जाने लगी ।
जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा…..
फ़तेह ने पूछा, जोरावर रोता क्यों है डर गया क्या……
जोरावर बोला, रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर धर्म के लिए शहीद तू पहले हो रहा है……
इस तरह गुरुसाहब का पूरा परिवार 6 पूस से 13 पूस तक एक सप्ताह में धर्म के लिए राष्ट्र के लिए शहीद हो गया ।
पहले पंजाब में इस सप्ताह में सब लोग ज़मीन पर सोते थे क्योंकि माता गूजरी ने 25 दिसम्बर की वो रात दोनों छोटे साहिबजादों के साथ सरहिन्द के किले में ठंडी बुर्ज़ में गुजारी थी और 26 दिसम्बर को दोनो बच्चे शहीद हो गये थे 27 तारीख को माता ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे।
लेकिन हम भारतीयों ने गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को मात्र 300 साल में भुला दिया।