फिर यह क्यों कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता यदि नहीं तो क्यों नहीं उनको पेट्रोल डालकर जलाते
*देवभूमि न्यूज 24.इन*
आतंकवादियों को पेट्रोल डालकर जब खत्म नहीं करेंगे उनका महिमा मंडन किया जाएगा तो यह देश खत्म हो जाएगा। तुष्टिकरण और वोट के चक्कर में राजनीतिक पार्टियों इंसानियत भूल गई है जिन 58 लोगों कि इस व्यक्ति ने हत्या की थी कभी कोई उसके घर भी कोई गया है कभी उसका भी कोई हाल पूछने गया। आतंकवादियों की भीड़ में जमा होने वाले सभी व्यक्तियों के सरकारी सुविधाएं बंद होनी चाहिए ड्रोन से इनकी फोटो खींचकर इनको राशन कार्ड और सरकारी सुविधा सरकारी नौकरियां सभी बंद होनी चाहिए।कानून द्वारा सजा प्राप्त एक 58 लोगों का कातिल के शव यात्रा में जब लाखों लोगों की भीड़ जुड़ती है तब इस बात को खत्म समझना चाहिए कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता क्योंकि लोगों ने इकट्ठे होकर इस का जो सबूत दिया है उसने साबित कर दिया है कि आतंकवाद का मजहब होता है।एसए बाशा प्रतिबंधित संगठन अल-उम्मा का संस्थापक-अध्यक्ष था। उसने 14 फरवरी 1998 को कोयंबटूर में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों की योजना बनाई थी। इसमें 58 लोगों की जान चली गई थी। जबकि 231 लोग घायल हुए थे। मई 1999 में अपराध शाखा सीआईडी की विशेष जांच टीम ने बाशा के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। उस पर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया। बाशा और उसके संगठन के 16 अन्य लोगों को 1998 के बम धमाकों के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने उसे पैरोल दी थी।