जग बीती- आप बीती!खलनायक और महानायक।।

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         (कहानी)
     -राजीव शर्मन, 

“अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी” समीप अम्बिकानगर-अम्ब रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिज अम्ब-177203 ऊना-हिमाचल प्रदेश।

 *देवभूमि न्यूज 24.इन*    

सात्विक सनातन का पेचीदा गणित स्कूली कक्षा में किसी की भी समझ में नहीं आता था। इसके चलते भी शास्त्री जी विभिन्न कहानियों के माध्यम से सालों साल नई पीढ़ी के लिए सत्त सनातन को संस्कारों का अभिन्न अंग मानकर शंखनाद कर रहे थे। शरारती लड़कों का सताया सुदर्शन शास्त्री जी से शिकायत करने के लिए उनकी शरण में था। सुदर्शन का जोरदार आग्रह था कि अनुशासन के नाम पर कक्षा की कंट्रोल मानिटरिंग करने वाला राजन पाल बेवजह मानसिक व शारीरिक यातनाएं देता है।

आधी छुट्टी के पीरीयड में उसने जबरदस्ती मियां-मिट्ठूके खेल के अन्य प्रकार “लगातार गेंद से पीटो ” का खेल रचाकर बाटा कम्पनी की पुख्ता गेंद से उसकी पेट,पीठ व टांगों पर बहुत प्रहार किए। खेल छोड़कर जाने की एवज में अपने मफलर की गांठ बनाकर मुझे बुरी तरह पीटा है। गुरुजी शास्त्री जी ने सुदर्शन को बड़ी सूझबूझ से समझा कर नियंत्रण करके अपनी कुर्सी के ठीक सामने बैठा दिया था। आज शास्त्री जी ने महाभारत का प्रसंग सुनाना प्रारम्भ कर दिया था। इस कहानी में सभी बच्चे शास्त्री जी से रोचक कहानी बड़ी श्रद्धापूर्वक सुन रहे थे।

कहानी का मुख्य श्रोतागण तो सुदर्शन ही था। शास्त्री जी बार बार मुख्य श्रोतागण सुदर्शन को ही संबोधित कर रहे थे। बीच बीच में शास्त्री जी सभी विद्यार्थियों का विचार मत लेकर ध्यानाकर्षण करते थे कि अंततोगत्वा जीत तो महाभारत में पांडवों की ही हुई थी। श्री सत्त सनातन धर्म की मर्यादा का अवलंबन उन्होनें कदापि नहीं छोड़ा था।इस तरह से शास्त्री जी ने सुदर्शन को मानसिक- शारिरिक तौर पर मजबूत बनाकर उसके भीतर अलौकिक प्रेरणादायक अभिनेता बनने का जोरदार संचार कर दिया था।सुदर्शन को बड़ी कम वय में ही अपने परिवेश का भली-भांति ज्ञान होने लगा था। घर पर पास-पड़ोस का जातिवादी परित्यक्त वातावरण भी सुदर्शन को आकुल कर देता था। सुदर्शन के पिताजी पुश्तैनी तौर पर हज्जाम (बाल काटने वाले) का काम धंधा करके आजीविकोपार्जन करते चले आ रहे थे। सुदर्शन के पिताजी राधालाल किराए की दुकान लेकर अपने सहयोगी जीतराम के साथ काम करते थे। सुदर्शन के स्कूल आते ही सहपाठी मौका मिलते ही व्यंगात्मक कटाक्ष करने लगते थे। गुरुजी शास्त्री जी की सीख के कारण सुदर्शन काफी नियंत्रण में रहता था। खेल का मैदान हो या पास-पड़ोस में खेलने का परिदृश्य, कहीं ना कहीं सुदर्शन को जातिवाचक संबोधन प्राय: मिल ही जाता था।

सुदर्शन की एक बहन मंजू को भी इसी स्थिति का स्कूल में कभी-कभार इसी स्थिति का दुखद सामना करना पड़ जाता था।
सुदर्शन को तो स्कूल के शारीरिक शिक्षा अध्यापक भी जब खेल में चूक होने पर जातिवाचक नाम से पुकारते तो सभी सहपाठियों को हंसने का बल मिल जाता था। नवीं-दसवीं कक्षाओं में पहुंचते-पहुंचते क्रमश: बहन मंजू और भाई सुदर्शन को कापी-किताबों व फीस की दिक्कत सताने लगती थी। यह हेयर ड्रैसर की दुकान संचालित करने वाले राधालाल के लिए अत्यंत कठिनाई का दौर था। बाल काटने का मेहनताना मुश्किल से आठ आना यानि पचास पैसे मात्र था। बड़े बड़े वकील, जज, डी0सी0 ,एस0पी0 के घरों में जाने पर बाल काटने व दाढ़ी-मूंछ मुंडवाने की एवज में एक रूपया मिल पाता था। राधालाल को चाय -विस्कुट नसीब हो जाता था। किसी विवाह शादी में जाने पर भी ज्यादा आमदनी नहीं हो पाती थी। हां मरण पर बाल मुंडवाने पर तो बिल्कुल अतिरिक्त आमदनी का सवाल ही नहीं था।
ऐसे में सुदर्शन को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई देने लगता था। किराए की दुकान के उपर ही एक छोटा सा कच्चा कमरा था। आखिरकार सुदर्शन ने सुबह-शाम स्कूल समय से पहले और बाद में मछलियों को मारने के लिए दरिया और खड्ड का रुख करने की शुरुआत की थी। इससे नित्य प्रति तीन-चार रुपयों की प्रतिपूर्ति से घर को आर्थिक सहयोग तो मिला किंतु सुदर्शन को स्कूल मे सुदर्शन को एक नया नामकरण
” सुदर्शन – मच्छीमार ” मिल चुका था। आर्थिक सुधार के चलते सुदर्शन अब जातिवाचक और इन व्यंगात्मक संबोधनों की कोई परवाह नहीं करता था।” जब जीवन में नाच- नाचने की नौबत हो तो घूंघट कैसा? इसी युक्ति को लेकर सुदर्शन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखने का फैसला कर लिया था। शहर के दोनों सिनेमा घरों में गर्मियों के दिनों में मैटनी शो तीन बजे का मध्यांतर साढ़े चार बजे हो या सर्दियों का रात्रिकालीन शो का इंटरवल ग्यारह बजे सुदर्शन मूंगफली-चने , ठंडे की बोतले चाय लेकर सिनेमाघरों में देखा जा सकता था। येन केन प्रकारेण सुदर्शन मैट्रिक भी पास कर गया था। किसी हितैषी ने सहानुभूतिपूर्वक सलाह दी कि आई टी आई में जो भी ट्रेड मिलता हो ,सुदर्शन को ट्रेनिंग कर लेनी चाहिए थी।आईटीआई के प्रिंसिपल की नजर सुदर्शन पर थी,वह बाल कटवाने राधालाल की दुकान पर अक्सर जाया करते थे। वह उसकी आर्थिक हालात से भी बखूबी वाकिफ थे। उन्होंने सुदर्शन को फ्रिज- रैफरीजरेशन ट्रेड का कोर्स करने के लिए मना लिया था। इतफाकन एक साल बाद उसकी बहन मंजू के मैट्रिक में अच्छे अंक प्राप्त करने के कारण ड्राफ्स मैन ट्रेड में आईटीआई प्रवेश मिल गया था। समय तीव्र गति से सरकता जा रहा था। सुदर्शन और उसकी बहन मंजू को कामयाबी मिल रही थी। उधर सुदर्शन और मंजू का कक्षा में जातिवाचक शब्दों से उपहास उड़ाने वाले मैट्रिक पास करने को हांफकर बहुत बार फेल हो चुके थे। स्कूल में दादागिरी व मोनिटरिंग करने वाले राजन पाल ने तो स्कूल ही छोड़कर पहाड़ों में काला सोना ( भांग-चरस) की तस्करी का काला बाजार अपना लिया था। रातोंरात काले सोने से धनाढ्य बने राजन पाल ने राधालाल हज्जाम ( हेयर ड्रैसर) के पास उनकी बेटी मंजू का विवाह करने का प्रस्ताव भेजा था। राधालाल ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था। सुदर्शन ने फ्रिज-रैफरीजरेशन का कोर्स सफलतापूर्वक करके
प्राइवेट तौर पर फ्रिज रिपेयरिंग शुरू कर दी थी। थोड़े दिनों बाद चंडीगढ में एक फ्रिज डीलर ने सुदर्शन को अपनी फर्म में नौकरी दे दी थी। राधालाल का आर्थिक कायाकल्प का नया सुधार होने लगा था। मंजू को सरकारी तौर पर ड्राफ्स मैन की नौकरी मिल गई थी।
जल्दी ही उसका विवाह बैंक में नौकरी करने वाले यशपाल से सम्पन्न हो गया था।
आजकल सुदर्शन दिल्ली में एयर कंडीशनर का बहुत बड़ा डीलर बन चुका है। यशपाल और मंजू ने चंडीगढ में अपना नया फ्लैट खरीद लिया है।
अब शहर में कहीं भी राधालाल हज्जाम ( हेयर ड्रैसर) नहीं दिखाई देता है। राधालाल तो अपने हुनर के बलबूते दिल्ली में बहुत बड़ा हेयर ड्रैसर सैलून चलाता है जिसमें दर्जनों युवक- युवतियां व्यूटी पार्लर का भी सफलतापूर्वक संचालन करते है।
सुदर्शन का विवाह बड़ी धूमधाम से दिल्ली की समीपवर्ती गुरुग्राम की रेखा फैशन डिजाइनर से हो चुका है। दोनों भाई बहन सुदर्शन और मंजू दिल्ली व चंडीगढ में सुस्थापित हो चुके है।

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