अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी समीप रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिज अम्ब तहसील अम्ब-177203 जिला ऊना-हिमाचल प्रदेश।
*देवभूमि न्यूज 24.इन*
स्कूल सहपाठी अजय और दिग्विजय की जोड़ी बहुत खूब जमती थी । दिग्विजय बिजणीं से साईकिल पर स्कूल आता था। अजय को भी साईकिल झूटने का चस्का लग चुका था। उन दिनों व्यास सतलुज लिंक का ड्रीम प्रोजेक्ट पुरजोरों पर था। ब्राद्धीवीर-पुलघराट समीप चुंगी-पोस्ट के पास सुकेती खड्ड पर पुल निर्माण हो चुका था ताकि बी0एस0 एल0 की सभी बसे पंडोह-बग्गी सुरंग में कार्यरत इंजिनियर मजदूर स्टाफ अपने अपने गंतव्य पर आसानी से पहुंच सके। सुकेती के नये पुल से पुराने पुल तक का दो किलोमीटर का बाईपास कच्चा व खतरनाक हुआ करता था।
गागल- मोतीपुरधार की कच्ची पगडंडी के शिखर पर्वत से पानी रिसाव से बड़ी बड़ी चट्टाने बाईपास की कच्ची सड़क पर लुढ़कती रहती थी। इसके बावजूद अजय के दिमाग पर अपनी नई खरीदी
साईकिल को सीखने चलाने का भूत सवार था। क्लास में पुलघराट के पवन ने क्लास टीचर खेमचंद जी से शिकायत की थी कि अजय और दिग्विजय कच्चे बाईपास पर रात्रिकालीन समय तक साईकिल चलाते रहते है।मास्टर खेमचंद गुरूजी ने सावधान कर दिया था। ” अगर नहीं मानोगे! तो निश्चित तौर पर गाड़ी के नीचे आकर मरोगे!!”
बाल्यकाल की सबकी गतिविधियां चैन से कहां बैठा करती है? एक लड़कपन की टोली रघुनाथ का पद्धर, दूसरी मैगल-टांडू तीसरी टारणा, जेलरोड, तल्याहड़ और चौथी भ्यूली- शाकम्भरी देवी स्कोर की ओर निकल पड़ती थी।
जब कभी इतफाकन इन चारोॅ टोलियों का जमावड़ा हो जाता तो क्या बात थी? एक बार टारणा की पिकनिक में अजय की उंची-उंची डींगे हांकने सभी के रिकॉर्ड तोड़कर कर नया कीर्तिमान स्थापित कर लिया था।वह मुंह से फिल्म के गानों की सभी धुन बजा लेता था। दिग्विजय ने तो एक छलांग लगाने का अभिनय करके टिम्बर ट्राली को टारणां से मोतीपुरधार पहुंचा दिया था। लुत्फ उठाने वाले सहपाठियों ने पुराणी मंडी से आती बार खज्जर खोप्पे, बेर अंजीर निकाल कर दिग्विजय और अजय को चक्कर में डाल दिया था कि वह तो रेहड़धार से सूक्ष्म रूप से “सेत्ता-पाज्जा” व “गीदड़-सींगी” की माया से तांत्रिक सफलता हासिल कर लेते है।
सारी पलटन ठहाके मार मार कर हंसने लगती थी। रघुनाथ पद्धर, चांदमारी, बाडीगुमाणू, सिद्ध गणपति मंदिर परिसर, सकोड्डी खड्ड-व्यास दरिया संगम तो ताबड़ा-तोड़ भयानक गर्जना स्थल थे। इस स्कूली पलटन के घनश्याम शाह,प्रवीण कुमार, शिवकुमार, सैणीं-भाऊ ,ओंकार, ललित शर्मा ,रवि-बिन्नू, हरीश, महेन्द्र वैद्य भयंकर लहरों से भयाक्रांत करने वाले सकोड्डी खड्ड-व्यास दरिया संगम पर जब तैरने लगते तो आती – जाती महिलाओं व पुरुषों के दिल भी दहलने लग जाते थे। स्कूली लम्बी फेहरिस्त में अजय और दिग्विजय दूरगामी योजनाओं के सूत्रधार व मंत्रीत्व पद धारण करते रहे थे। गर्मियों के दिनों टारणा माता जी मंदिर से इनकी साईकिल की फिल्म कास्टिंग सचमुच लाजबाव होती थी।
इन्होंने अपनी प्रस्तावित योजना-फिल्म का नाम ही मनगढंत रखकर प्रचार-प्रसार करके दोनों फिल्म डायरेक्टर व संगीतकार बन चुके थे। पलटन तफरी के समय तिलकराज शहर की सभी गलियों को चौड़ा करने का तुगलकी फरमान जारी कर देता था। वार्तालाप व कट्टर आलोचनात्मक दौर में गलियों को तोड़ने पर परिवर्तित करने पर जोरदार तकरार हो जाती थी। रघुनाथ पद्धर-चांदमारी गंधेरू पर्वत के नीचे रोहतांग रेलवे लाईन व रेलवे जंक्शन तैयार कर लिया जाता था। इस पलटन के सर्वेसर्वा बलविंदर सिंह ने शहर के बढ़ते यातायात पर नकेल कसने के लिए चारों दिशाओं से फ्लाई ओवर ब्रिज व फोरलेन बाईपास की तजवीज तैयार करवाई थी। यही नहीं चहुंओर से मोतीपुरधार- रेहड़धार, गंधेरू-जंगल -धार-टारणाधार से बहु-आयामी टिम्बर ट्रालियों का स्वप्न साकार करने को बहुत सारे इंजिनियर पलटन ने तैयार कर लिए थे। शहर की गलियों के चौड़ीकरण, फ्लाई ओवर ब्रिज व बाईपास से विस्थापित होने वाले दुकानदार व्यवसायिक लोगों को पुनर्स्थापित करने का जिम्मा भी तिलकराज व हरीश इंजिनियर को सौंप दिया गया था। विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर ली गई थी।
इस स्कूली पलटन के घटनाक्रम के पचपन साल बाद रवि वैद्य-बिन्नू चश्मदीद से अचानक भेंट हुई तो बिस्मित होना लाज़मी था। रवि वैद्य बिन्नू ने बतलाया कि पलटन की फिल्म तैयार हो चुकी है। अजय और दिग्विजय तो समधी बन चुके है। मायानगरी से लौट आये है और पुरानी पलटन को एकत्रित करके शहर का कायाकल्प करने हेतु मुस्तैद होकर जुट गए है।
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