राजीव शर्मन्
अम्बिकानगर -अम्ब कॉलोनी समीप रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिजअम्ब
-177203,ऊना-हिमाचल प्रदेश।
*देवभूमि न्यूज नेटवर्क*
सुबह से सांय तक राजधानी दिल्ली में स्कूल चलाने के लिए जीवन लाल एक महीने से दिल्ली की खाक छान रहे थे। सारा पैसा समाप्त हो चुका था। अब तो कई मील पैदल चलकर शीश गंज गुरुद्वारा और जन्तर-मन्तर रोड के सनातन धर्म शिवालयों में लंगर प्रसाद खाकर गुजारा हो रहा था। निराशा में भी आशा की झलक विद्यमान रहती है। पहाड़गंज समीप एक समान विचारों वाले ज्योतिषी पंडित-पुरोहित श्याम लाल ने अपने घर में शरण दे दी थी। एक सप्ताह के भीतर जीवन लाल को स्कूल चलाने का मार्ग प्रशस्त हो गया था। यह सरस्वति माता जी का ही शुभ आशीर्वाद फलित हो रहा था। अमृतसर- लाहौर में पढ़े जीवन लाल ने सुकून मिलने लगा था।
जीवन लाल दिल्ली के अरुण रशिम स्कूल को चलाने के लिए कई पापड़ बेलते आये है। आज भी वह शिक्षा मंत्री गुलजारी लाल नन्दा से स्कूल की जगह मँजूर करवाने के सिलसिले में मिले। अजब जनून है,अपने पहाड़ का गांव-शहर छोड़कर पराये प्रदेश में टक्करें मार रहे है। घर पर माता-पिता ने काफ़ी समझाया था कि जो मामूली जमा-पूँजी थी,वह लाहौर डी0ए0वी0 कालेज में पढ़ाने में लगा दी थी। जीवन लाल की तालीम के लिये मां ने अपने शादी के ज़ेवर भी बेच दिय थे। जीवन लाल कुछ समय लाहौर के बच्छोबाली में एक प्राइवेट कालेज में नौकरी करने लगे। वहां दंगे भड़के तो अमृतसर भागकर नवयुवक महाविद्यालय में पढ़ाने लगे। स्वतंत्र प्रकृति के जीवन लाल की यहाँ भी दाल न गली तो दिल्ली की ओर अपना शिक्षा साम्राज्य स्थापित करने चले आये। दरियागंज में बीस रुपये माहवार किराये पर बड़ा हाल व कमरा मिला है। कमरें में रात को नीचे चटाई बिछाकर सोते है। मुश्किल से पुराना कबाड़ का बेंच फर्नीचर कुर्सी जूटा पाये है। रात को फ़िल्मी गानों की किताबें पढ़ते है। कोशिश करते है कि शायद लेखन के जरिये कोई कुवेर का ख़ज़ाना हाथ आ जाये। एफ0ए0 की कक्षा के लिये बड़े घरों के कुछ बिगड़ैल विद्यार्थियों से नित्य प्रति का सामना है। उन पर ज़्यादा नियन्त्रण करते है तो वह पढ़ाई छोड़कर चले जाते है। रात-दिन जीवनलाल संघर्षरत है। सुबह 9 बजे से साँय 3 बजे तक कालेज की गतिविधियां चलाते है तदुपरान्त हाल में हारमोनियम और तबले उस्तादों से संगीत की तालीम हासिल करते है शायद कोई फ़िल्मी दुनियां का ही सितारा चमक जाये। इस काम में छिटपुट धन्ना सेठों के विद्यार्थियों ने जीवन लाल की पीठ थपथपाई है। इस मंडली में जानीवाकर की मसखरी एक्टिंग करने वाला त्रिविक्रम काफ़ी सक्रियता से जीवन लाल के अंग-संग रहता है। वह कई ड्रामा पार्टियों से जुड़ा है और समय-समय पर जीवन लाल की छत्र-छाया का निर्देशन भी प्राप्त करता है।त्रिविक्रम चालू पीढ़ी का सजीला नौजवान है। उसका बाप कपड़े का बड़ा व्यापारी है। त्रिविक्रम कालेज में आने वाली प्रवेजा हूर पर भी दौरे डालता है। प्रवेजा सँगीत उस्ताद उस्मान भाई की बेटी है। जीवन लाल इन चहल-कदमियों से कोसों दूर है। जीवन लाल का सारा कर्म-तब्ज्जों केवल स्कूल और कालेज को एक साथ कामयाब करना है। त्रिविक्रम इस पावन कार्य में सहभागी है। जीवन लाल को ओवर टाइम में एक अख़बार का सम्पादकीय भी मिल गया है।आजकल हर सप्ताह जीवन लाल के घर पहाड़ से माता-पिता की चिट्ठियाँ आ रही है।”जीवन लाल!” “तुम जल्दी घर वापिस आ जाओ!!” हमें कोई रुपया कमाने की ज़रूरत नहीं है”। जीवन लाल अपनी नवविवाहिता पत्नी हिमाचली को माता-पिता के पास छोड़ आया है। पहले-पहल तो वह अपने मायके जोगीन्द्रनगर रही किन्तु कुछ महीने के उपरांत आख़िर कब तक ससुराल पक्ष से ज़्यादा दूरियाँ समाजिक परिवेश को भी मंजूर नहीं है। इसी लोक लाज के चलते हिमाचली सास-ससुर के संरक्षण में रह रही है। बी0ए0 पास हिमाचली को आर्थिक मंदी के चलते ग़रीब मध्यम वर्गीय माता-पिताजी बी0एड0नहीं करा सके। हिमाचली काफ़ी सुलझी साकारात्मक सोच की स्वामिनी है। जीवन लाल से उसने दिल्ली चलने का काफ़ी आग्रह किया लेकिन हालात अनुकूल न होने के कारण जीवन लाल चाहते बुये भी हिमाचली को दिल्ली में अपने साथ रखने की स्थिति में कदाचित नहीं था। जीवन लाल अब पचास रुपये दो महीने के अन्तराल बाद भेजने लगा था।आज अरुण रश्मि स्कूल/ कालेज में तनाव था।जामा मस्जिद मटिया महल से मुसलमानों की टोली त्रिविक्रम की तलाश में आई थी। त्रिविक्रम ने एक प्रेम-निवेदन का पत्र प्रवेजा की किताब में रखा था जो कि घर पर अम्मी के हाथ आया और चचाजान समेत सबको खबर हो ई कि कोई हिन्दू लड़का प्रवेजा के पीछे पड़ा है। जीवन लाल इस टोली को सात करने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे। वह सभी कड़क कर गर्जे।”प्रोफ़ेसर जीवन लाल”! यह स्कूल/ कालेज यहां नहीं चलेगा? उस्मान उस्ताद भी आ गये,जीवन लाल ने उकी काफ़ी अनुनय-विनय से मामले पर नियन्त्रण करवाया। त्रिविक्रम को कालेज से निकालने की शर्त पर ही मुसलमानों की टोली वहां से जाने को तैयार हुई। जीवन लाल को अपने शागिर्द की बलि चढ़ानी पड़ी। उधर पहाड़ से आज फिर जीवन लाल के नाम चिट्ठी आई थी। लिखा था,जीवन लाल 15 दिन बाद जात बिरादरी के सगे रिश्तेदारी में भाई ब्यास देव की शादी है। आप जल्दी आ जाओ। जीवन लाल को कालेज उस्मान भाई और सहयोगी प्रोफ़ेसर धर्मपाल को सपुर्द कर घर जाना पड़ा।ब्यासदेव की बारात सुन्दरनगर गई। इसमें जीवन लाल सपिवार सम्मिलित हुआ। सुन्दरनगर के कई सहपाठी जीवन लाल के परिचित थे। इनमें देवी शरण,बलदेव,धनदेव,हुक्म सिंह सभी उच्च शिक्षाविद् बनकर इलाक़े को आलोकित करवा रहे थे। सभी ने जीवन लाल को वापिस अपने पैतृक स्थान पर आने की सलाह दी। उन्होंने जीवन लाल को पूर्ण विश्वास दिलवाया कि वह राजा ललित सेन से मिलकर जीवन लाल को कहीं न कहीं अवश्य ही सरकारी अथवा गैर सरकारी शिक्षा संस्थान में एडजस्ट करवायेंगे।जीवन लाल के नाता-पिता की भी यही राय थी कि वह अपने नज़दीक घर में ही रहकर बरसरो -रोजगार हो जाये। जीवन लाल का लक्ष्य बहुत ऊअंचा था जिसके लिये वह सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार था। त्रिविक्रम सर्व गुण सम्पन्न अभिनेता बतौर अपना भाग्य आजमाने मायानगरी मुम्बई आ गया। वह बासुदेव बैनर्जी के बैनर तले बनने वाली “माया का समुद्र” फ़िल्म में ब्रेक मिल गया। उसके होश का ठिकाना नहीं रहा जब चौपाटी बीच जूहु में फ़िल्म का मुहूर्त हुआ तो हीरोइन खूबसूरत प्रवेजा थी। फ़िल्म का संगीत उस्मान उस्ताद ही दे रहे थे। मज़े की बात एक और थी कि फ़िल्म कीं कहानी “माया का समुद्र” जीवन लाल लिखित थी। माया का समुद्र कहानी दिल्ली की उसी पत्रिका में छपी थी,जिसका सम्पादन जीवन लाल ने किया था। माया का समुद्र बाक्स आफिस पर सुपर हिट हुई।माया का समुद्र कहानी शतक में बहुचर्चित रही है। माया का समुद्र पर धारावाहिक सीरीयल बनवाने की तैयारी चल रही है। त्रिविक्रम और प्रवेजा की जोड़ी दर्शकों को काफ़ी भा और छा गई। जीवन लाल की कई कहानियों पर फ़िल्मों का निर्माण हुआ। आज जीवन लाल माया नगरी मुम्बई में अपने बंगले में हिमाचली के साथ सानन्द रह रहें है। त्रिविक्रम और प्रवेजा की हिट जोड़ी ने शादी कर ली है। * * *