देवभूमि न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली
2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के जरिये आवश्यक रूप से अनाज वितरण के विस्तार से आठ राज्यों में लगभग 18 लाख बच्चों के बौनेपन को रोकने में मदद मिली। यह बात अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन के जर्नल ऑन एप्लाइड इकोनॉमिक्स में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में सामने आई है। स्टडी के लेखकों ने बच्चों के बौनेपन, पोषण और आहार विविधता पर NFSA के प्रभाव का मूल्यांकन किया।
मजदूरों की आय में वृद्धि
आईआईएम बैंगलोर के अर्थशास्त्री आदित्य श्रीनिवास की तरफ से कैलिफोर्निया और कैलगरी विश्वविद्यालयों के भूगोल और अर्थशास्त्र के दो प्रोफेसरों ने मिलकर एनालिसिस किया।

इससे यह भी पता चला कि पीडीएस के माध्यम से फूड ट्रांसफर ने दैनिक मजदूरी और कुल मजदूरी आय में वृद्धि की। इससे गरीब परिवारों के कल्याण में सुधार हुआ। इसके अतिरिक्त, इसने सबसे गरीब लोगों को खराब वर्षा या सूखे जैसे स्थानीय जलवायु झटकों का सामना करने में मदद की।
हर व्यक्ति को 5 किलो अनाज
एनएफएसए ने पात्रता की मात्रा और कीमतों को मानकीकृत किया। इसमें प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम मुख्य अनाज का प्रावधान अनिवार्य किया गया। इसमें चावल के लिए 3 प्रति किलोग्राम और गेहूं के लिए 2 प्रति किलोग्राम की दर से अनाज दिया जाना शामिल है। इससे पहले, राज्यों के पास पीडीएस लाभार्थियों को दी जाने वाली कीमतों और मात्राओं पर विवेकाधिकार था। यह पत्र इस बात का सबूत देता है कि कैसे केवल खाद्य हस्तांतरण से विकासशील देशों में बच्चों के विकास में कमी आ सकती है।

8 राज्यों में हुई स्टडी
स्टडी में आठ राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा के 30 गांवों से रैंडम परिवारों का चयन किया गया। इन राज्यों में भारत की लगभग 41% आबादी रहती है। स्टडी का मुख्य ध्यान राशन कार्ड वाले परिवारों और गैर-पात्र परिवारों, परर था, जिन्हें राशन कार्ड नहीं मिला था। प्रति-परिवार से प्रति-व्यक्ति पात्रता में बदलाव से बड़े परिवारों को फ़ायदा हुआ। इसमें कम उदार पात्रता वाले राज्यों को NFSA के बाद फूड ट्रांसफर का विस्तार करना पड़ा। लेखकों ने NFSA से पहले और बाद में PDS हस्तांतरण के मूल्य को मापने के लिए पात्रता में इन बदलावों का उपयोग किया।
