श्री गुरु माता जी।( कहानी)-राजीव शर्मन

Share this post

अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी रेलवे-स्टेशन रोड अम्ब-177203 जिला ऊना-हिमाचल प्रदेश।

    *देवभूमि न्यूज 24.इन*            

सुनील कुमार दूसरी कक्षा का छात्र था। उस समय दूसरी कक्षा के लिए तीन किताबे (तीन पोथियां) हुआ करती थी। पहली हिन्दी भाषा की थी,जिसमें पहला पाठ भारत माता जी से प्रारम्भ होता था। इसके साथ सरल गणित व पहाड़े तीसरी सामान्य ज्ञान की पुस्तक थी। तीन पोथियों के अतिरिक्त काष्ठ की तख्ती पर हिन्दी पाठ-कविता और दस तक पहाड़े लिखना अनिवार्य था। दस तक पहाड़ों को रटंत करने से पहले आधे, पौने-पौंटे के पहाड़े भी याद करना पड़ते थे। स्लेट-स्लेटी लिखावट के लिए स्कूल लाना बहुत आवश्यक था।काली स्याही का कलम-दवात भी स्कूली बस्ते में ले जाना होता था। उस समय घर पर सिले बनाए हुए साधारण बस्ते ही चलते थे। सुनील को तो स्कूल की नीली वर्दी का कुर्ता पाजामा भी उपलब्ध नहीं हो पाता था।

पिताजी सूरज सिंह की इतनी भी सामर्थ्य नहीं थी कि अपने लड़के सुनील को एक रुपये वाला कपड़े का बूट अथवा प्लास्टिक की चप्पल भी नहीं पहना सकते थे। सारा साल नंगे पांव पैदल चलकर स्कूल पहुंचना पड़ता था। आज कक्षा अध्यापिका श्री गुरु माता जी हिंदी पोथी का ” वीर बच्चू सिंह ” का पाठ काष्ठ की तख्ती पर लिखे हुए का निरीक्षण करके अशुद्ध शब्दों को छात्रों से शुद्ध करा रही थी। तख्ती के दूसरी ओर अशुद्ध शब्दों को पांच पांच बार शुद्ध करके लिखवाया जा रहा था। अब अन्तिम पंक्ति में बैठे सुनील कुमार पर क्लास टीचर श्री गुरु माता जी की दृष्टि पड़ चुकी थी। सिर पर सरदार की तरह जटाएं बढ़ी हुई थी। ” कयों रे! अभी तक तेरे मुंडन नहीं करवाये गए?” सुनील निरूतर बैठा था। “अच्छा ला! अपनी तख्ती दिखा!!” अबकी गुरु माता जी,क्लास टीचर ने सुनील को कान से पकड़कर खड़ा कर दिया था।” वह रोकर कहने लगा था कि साध वाले यू ब्लाक स्कूल में उसकी बड़ी बहन भवना तीसरी क्लास में पढ़ाई करती है।

आज स्कूल की तख्ती वह लेकर चली गई है। श्री गुरु माता जी,क्लास टीचर को यह समझने में कोई देर नहीं लगी थी कि सुनील किन परिस्थितिजन्य हालातों से गुजर रहा है। क्लास टीचर ने नानक और मनोहर दो बड़े लड़कों को भेजकर बलदेव स्टेशनरी वाले से एक नई तख्ती, स्लेट, गाजनी मिट्टी, स्लेटी,पेंसिल, कलम,काली स्याही और टीन का दवात मंगवाए थे। अगले क्षण सुनील ने नई तख्ती लेकर हाई स्कूल की पक्की बिल्डिंग के सामने पानी की सीमेंट वाली टंकी के नल पर जाकर तख्ती-पट्टी धोकर गाजनी मिट्टी पोत दी थी। आधी छुट्टी पर तख्ती सूख चुकी थी। श्री गुरु माता जी ने कच्ची पेन्सिल से कच्ची लिखावट की लाईने डाल कर “बीर बच्चू सिंह ” का पाठ का मुख्य अंश लिखा दिया था जिसमें वर्णन था कि चीनी सैनिकों को बीर बच्चू सिंह ने कितनी बहादुरी से भारत-चीन युद्ध में शहादत पाई थी। क्लास टीचर की रहनुमाई व मुकम्मल आशीर्वाद से सुनील की पढ़ाई-लिखाई में कोई रुकावट नहीं थी। वह कक्षा में सबसे सुंदर लिखावट तख्ती पर लिखने लगा था।
प्रोग्रेस रिपोर्ट की कापी त्रैमासिक, छैमासिक व नौ मासिक घर पर पिताजी सूरज सिंह के पास हस्ताक्षर हेतु पहुंची तो सारे पारिवारिक सदस्य हैरत में थे कि सुनील कुमार हर विषय में अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हुआ था। यह क्रम अनवरत पांचवीं श्रेणी तक आगे बढ़ता रहा था। सुनील ने अपनी क्लास टीचर गुरु माता जी को पक्की बचनबद्धता की थी कि वह कभी भी पढ़ाई-लिखाई के मामले में पिछड़ कर फिसड्डी नहीं बनेगा।


सुनील कुमार का अनुशासित क्रम मैट्रिक पास करने तक बरकरार रहा था। वह मैट्रिक में भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर राजकीय पॉलीटेक्निकल कालेज सुन्दरनगर में सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा करने का सुपात्र बन गया था। पिताजी सूरज सिंह ने उसकी आगे की पढ़ाई लिखाई निर्वार्ध चलाने का यथासंभव प्रबंधन कर लिया था।
सुनील कुमार ने आर्थिक मंदी का दौर देखकर पिछड़ेपन को हमेशा हमेशा को विराम लगा दिया था। मेहनत के बलबूते भाग्य ने भी सुनील कुमार पूरा पूरा साथ दिया था। सुनील कुमार की लोक निर्माण विभाग में प्रथम नियुक्ति धर्मशाला कांगड़ा में हो गई थी। स्थानीय रिश्तेदार व पड़ौसी सुनील कुमार की सफलता पर विस्मित हो गए थे। सुनील कुमार को विवाह की पेशकश आने लगी थी। एक दिन सुनील कुमार की क्लास टीचर गुरु माता जी अपनी बेटी ममता जो कि प्रोफेसर नियुक्त थी का रिश्ता करने सुनील कुमार के पिताजी सूरज सिंह से भेंट करने घर पर आई थी। सूरज सिंह ने एकदम सुनील कुमार और ममता का विवाह करने की हामी भर दी थी। सुनील के पिताजी सूरज सिंह का गुरू माताजी से विनम्रतापूर्वक आग्रह था कि आज सुनील कुमार अपनी क्लास टीचर के पूर्ण सहयोग प्रेरणा से ही सफल मुकाम पर पहुंचा है।
परिवर्तन के दौर में आजकल सुनील कुमार और ममता राजधानी दिल्ली में अपने आलीशान मकान में रहते है। सुनील कुमार की सास श्री गुरु माता जी सौ साल की दीर्घायु पूर्ण करने जा रही है। वह पूर्णत: स्वस्थ व सकुशल आजकल दिल्ली में सुनील और ममता के साथ साथ रहती है। सुनील और ममता बहुत आयामी प्रतिभासंपन्न सफलतम सिद्ध हो रहे है। दोनों प्रसिद्ध लेखक बतौर स्थापित हो चुके है। दिल्ली के प्रगति मैदान में विश्व स्तरीय पुस्तक महा-मेले की तैयारियां जोरों पर थी। सुनील और ममता की नई पुस्तक ” श्री गुरु माता जी” प्रकाशित होने वाली है। यह नई पुस्तक सुनील और ममता ने गुरु माताजी को समर्पित कर दी है। जो लोग गुरु माता जी को इकलौती बेटी होने का तंज कसते हुए उपहास उड़ाते थे कि उसकी एक मात्र बेटी ममता पराया धन है। वह अपने ससुराल चली जायेगी। लेकिन आज गुरु माता जी अकेली नहीं है। गुरू माता जी को अपने दामाद सुनील कुमार के रूप में अलौकिक बेटा मिल चुका है। वह अपने बेटा- बेटी के साथ आनन्दित जीवन यापन कर रही है।

  • + +