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कार्तिक मास-महात्म्य〰️एकादशी को भगवान् के जगाने की विधि, कार्तिकव्रत का उद्यापन और अन्तिम तीन तिथियों की महिमा के साथ ग्रन्थ का उपसंहार…(भाग 1)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ब्रह्माजी कहते हैं जो पुरुष कार्तिकमासमें प्रतिदिन पुरुषसूक्तके मन्त्रोंद्वारा अथवा पांचरात्र आगममें बतायी हुई विधिके अनुसार भगवान् विष्णुका पूजन करता है, वह मोक्षका भागी होता है। जो कार्तिकमें ‘ॐ नमो नारायणाय- इस मन्त्रसे श्रीहरिकी आराधना करता है, वह नरकके दुःखोंसे मुक्त हो, रोग-शोकसे रहित वैकुण्ठधामको प्राप्त होता है। कार्तिकमासमें जो मनुष्य विष्णुसहस्रनाम तथा गजेन्द्रमोक्षका पाठ करता है, उसका फिर संसारमें जन्म नहीं होता। सुव्रत ! जो कार्तिकमास में रात्रिके पिछले पहरमें भगवान् की स्तुति का गान करता है, वह पितरोंसहित श्वेतद्वीप में निवास करता है। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया है। अतः उसी दिन से आरम्भ करके भगवान् चार मासतक क्षीरसमुद्रमें शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ला एकादशीको जागते हैं। इस कारण वैष्णवोंको एकादशीमें निम्नांकित मन्त्रका उच्चारण करके भगवान्को जगाना चाहिये।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज । उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमङ्गलं कुरु ॥ ‘हे गोविन्द ! उठिये, उठिये, हे गरुड़ध्वज ! उठिये, हे कमलाकान्त ! निद्राका त्याग कर तीनों लोकोंका मंगल कीजिये।’
ऐसा कहकर प्रातः काल शंख और नगाड़े आदि बजवावे। वीणा, वेणु और मृदंग आदिकी मधुर ध्वनिके साथ नृत्य-गीत और कीर्तन आदि करे। देवेश्वर श्रीविष्णु को उठाकर उनकी पूजा करे और सायंकाल में तुलसी की वैवाहिक विधि को सम्पन्न करे। एकादशी सदा ही पवित्र है, विशेषतः कार्तिककी एकादशी परम पुण्यमयी मानी गयी है। उत्तम बुद्धिवाला मनुष्य वृद्ध माता-पिताका विधिपूर्वक पूजन करके अपनी स्त्रियोंके साथ भगवान् विष्णुके प्रसादको भक्षण करे। जो इस प्रकार विधिसे द्वादशी व्रतका अनुष्ठान करता है, वह मनुष्य उत्तम सुखोंका उपभोग करके अन्तमें मोक्षको प्राप्त होता है। मुनिश्रेष्ठ ! जो मनुष्य द्वादशी तिथिके इस परम उत्तम पुण्यमय माहात्म्यका पाठ अथवा श्रवण करता है, वह उत्तम गतिको प्राप्त होता है।
अब मैं कार्तिक-व्रतके उद्यापनका वर्णन करता हूँ, जो सब पापोंका नाश करनेवाला है। व्रतका पालन करनेवाला मनुष्य कार्तिक शुक्ला चतुर्दशीको व्रतकी पूर्ति और भगवान् विष्णुकी प्रीतिके लिये उद्यापन करे। तुलसीके ऊपर एक सुन्दर मण्डप बनवावे। उसे केलेके खंभोंसे संयुक्त करके नाना प्रकारकी धातुओंसे उसकी विचित्र शोभा बढ़ावे। मण्डपके चारों ओर दीपकोंकी श्रेणी सुन्दर ढंगसे सजाकर रखे। उस मण्डपमें सुन्दर बंदनवारोंसे सुशोभित चार दरवाजे बनावे और उन्हें फूलों तथा चॅवरसे सुसज्जित करे। द्वारोंपर पृथक् पृथक् मिट्टीके द्वारपाल बनाकर उनकी पूजा करे। उनके नाम इस प्रकार हैं- जय, विजय, चण्ड, प्रचण्ड, नन्द, सुनन्द, कुमुद और कुमुदाक्ष। उन्हें चारों दरवाजोंपर दो-दोके क्रमसे स्थापित कर भक्तिपूर्वक पूजन करे। तुलसीकी जड़के समीप चार रंगोंसे सुशोभित सर्वतोभद्रमण्डल बनावे और उसके ऊपर पूर्णपात्र तथा पंचरत्नसे संयुक्त कलशकी स्थापना करे। कलशके ऊपर शंख-चक्र-गदाधारी भगवान् विष्णुका पूजन करे। भक्तिपूर्वक उस तिथिमें उपवास करे तथा रात्रिमें गीत, वाद्य, कीर्तन आदि मंगलमय आयोजनोंके साथ जागरण करे। जो भगवान् विष्णुके लिये जागरण करते समय भक्तिपूर्वक भगवत्सम्बन्धी पदों का गान करते हैं, वे सैकड़ों जन्मों की पापराशि से मुक्त हो जाते हैं।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
*नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान