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देवभूमि न्यूज 24.इन
🪦वैलेंटाइन्स डे मनाने वाले हर मनुष्य को प्रेम की सही परिभाषा समझने की जरुरत है। भगवान शिव प्रेम के देवता है, लेकिन उन्होंने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया क्योंकि तीसरा नेत्र खुलते ही शिव को कामदेव एक उफनती अस्थायी इच्छा के रूप में नजर आए, जबकि भगवान शिव तो परम सत्य के प्रतीक हैं। पार्वती के लिए शिव का प्रेम एक इच्छा नहीं बल्कि एक अंतिम सत्य है। आइए, वैलेंटाइन्स डे पर जानते हैं भगवान शिव के जीवन से जुड़ा सच्चे प्यार का अर्थ और प्यार के देवता कहे जाने वाले कामदेव को भस्म करने की कहानी।
महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शिव और पार्वती की पूजा करता है, उन्हें जीवन में सच्चा प्रेम जरूर मिलता है। विशेषकर मनचाहे जीवनसाथी को पाने के लिए शिवरात्रि, सोलह सोमवार के व्रत भी रखे जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव का पार्वती के लिए प्रेम सांसरिक परिभाषाओं से कहीं ऊपर है, इसलिए हर स्त्री-पुरुष चाहते हैं कि उन्हें भी भगवान शिव और पार्वती जैसा जीवनसाथी मिले। जो हर जन्म में केवल उनका ही होना चाहता हो। कई बार मन में सवाल आता है कि अगर शिव को प्रेम प्राप्ति के भगवान के रूप में पूजा जाता है, तो फिर उन्होंने प्रेम के देवता कामदेव को जलाकर भस्म क्यों किया? आइए, विस्तार से जानते हैं इसका कारण।
📿कामदेव कौन हैं?
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कामदेव को केवल प्रेम का देवता ही नहीं माना जाता बल्कि कामदेव को प्रेम, इच्छा, वासना और आर्कषण का देवता भी माना जाता है। सृष्टि को चलाने के लिए स्त्री और पुरुष के बीच प्रेम, इच्छा, वासना और आर्कषण की भावनाएं जगाने के लिए कामदेव को ही उत्तरदायी माना जाता है। सोचिए, अगर स्त्री-पुरुष एक-दूसरे को देखकर आर्कषित ही नहीं होंगे, तो उनमें प्रेम और इच्छा जैसी भावनाएं भी जागृत नहीं हो पाएंगी, जिससे किसी मनुष्य की संसार में उत्पत्ति ही नहीं संभव नहीं है। संसार में प्रेम, इच्छा, वासना और आर्कषण जैसी भावनाओं का संचार करना कामदेव की जिम्मेदारी है।
📿भगवान शिव सब कुछ त्यागकर तपस्या में हो गए थे लीन
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शिव पुराण में लिखी कहानी के अनुसार जब देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया था और उन्हें विशाल हवन आयोजन में आमंत्रित नहीं किया, तो देवी सती को इस बात से बहुत दुख पहुंचा। इस कारण देवी सती अपने पति का अपमान सह न सकी और उन्होंने हवनकुंड में आत्मदाह कर लिया। भगवान शिव इस समाचार को पाकर अत्यंत क्रोध और शोक में डूब गए। दक्ष प्रजापति को दंड देने के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए। भगवान शिव दायित्व को छोड़कर तपस्या में इसलिए लीन हुए क्योंकि विरक्ति के लिए प्रसिद्ध शिव पर सांसरिकता हावी हो रही थी। शिव भी जीवन-मृत्यु के उत्सव और शोक से निकलकर विरक्त होना चाहते थे इसलिए तपस्या में यथार्थ को तलाने के लिए सांसरिक आंखों को बंद करके अपनी तीसरी आंख खोल ली। शिव की तीसरी आंख बाहरी संसार से हमें बंद नजर आती थी, लेकिन वास्तव में शिव की तीसरी आंख ज्ञान चक्षु है।
📿कामदेव ने क्यों छोड़ा महादेव पर पुष्प बाण
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शिव के बिना संसार में अस्त-व्यवस्थता बढ़ती जा रही थी क्योंकि महाबली राक्षस तारकासुर ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया था। वरदान पाने के बाद तारकासुर ने पूरी सृष्टि पर हाहाकार मचा दिया। तारकासुर ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो। इस वरदान के पीछे कारण यह था कि तारकासुर जानता था कि भगवान शिव तपस्या में लीन हैं और सांसरिकता से विरक्त हो चुके हैं। ऐसे में पुत्र प्राप्ति असंभव है। अब ऐसे में सभी देवताओं ने महादेव को फिर से सांसरिकता से जोड़ने के लिए कामदेव की सहायता मांगी। कामदेव ने शिव को तपस्या से जगाने का हर प्रयास किया लेकिन असफल रहे। इसके बाद कामदेव ने अपना पुष्प बाण भगवान शिव पर चला दिया, जो शिव के तीसरे नेत्र में जाकर लगा।
📿भगवान शिव ने कामदेव को जलाकर भस्म क्यों किया
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भगवान शिव की तीसरी आंख साधारण आंखों से अलग है। हमारी दो आंखें दुनिया को देखती हैं लेकिन शिव की तीसरी आंख इससे परे है। शिव की तीसरी आंख उनके ‘ज्ञान चक्षु’ है। यह भौतिक दुनिया से परे सत्य को देखती है। यह हमारे अंदर के संसार को दिखाती है। पुष्प बाण लगने पर जब शिव ने तीसरा नेत्र खोला, तो इस तीसरे नेत्र से शिव ने कामदेव को एक मनुष्य के रूप में नहीं बल्कि एक वासना, एक इच्छा के रूप में खुद पर हावी होते हुए देखा। शिव का तीसरा नेत्र केवल सांसरिकता और भौतिकता को भस्म करके केवल ज्ञान और सत्य को देखने वाला नेत्र है, इसलिए भगवान शिव के तीसरे नेत्र ने कामदेव रूपी इच्छाओं को भस्म किया क्योंकि शिव सांसरिक इच्छाओं से ऊपर हैं।
📿वर्तमान में हर प्रेमी को जानना चाहिए शिव का यह रहस्य
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भगवान शिव का प्रेम पार्वती के लिए किसी भी भौतिकता से ऊपर है। तारकासुर के वध के लिए सृष्टि को भगवान शिव के पुत्र की आवश्यकता थी। यह प्रेम नहीं बल्कि इच्छा थी। एक सांसरिक आवश्यकता, एक भौतिकता, जो अस्थायी थी। अस्थायिता कभी भी सत्य नहीं हो सकती। जबकि दूसरी तरफ शिव परम सत्य हैं। शिव का नाम और उनका प्रेम स्थायी है। जो समय के साथ किसी इच्छा की तरह नहीं बदलता। वर्तमान में भी हर प्रेमी-प्रेमिका को शिव की तरह प्रेम करने की आवश्यकता है। प्रेम एक इच्छा नहीं बल्कि एक सत्य, एक स्थायी तत्व है, जो हर परिस्थिति, समय आदि में बना रहना चाहिए।
♿ हरहरमहादेवशिव_शंभू♿