देवभूमि न्यूज 24.इन
दुनिया में हर रोज बहुत कुछ घटित हो रहा होता है।हम अपने दायरे में देखते हैं।हिमालय में होने वाली प्रत्येक गतिविधि पूरे एशिया के वातावरण को प्रभावित करती है।बाहर से दिखने वाला शांत हिमालय अंदर से बेहद अशांत है।इसकी नदियां घायल हैं और पहाड़ों को फोड़कर उनकी जड़ों को कमजोर किया जा चुका है।स्थानीय आबादी को रोज पानी, वन्य जीवों के आक्रमण, माफियाओं के लालच की वजह से तनाव झेलने की मजबूरी है।
सृजन के नाम पर कई सरकारी और गैर सरकारी कार्यक्रम लगे होते हैं लेकिन परिणाम तो अनुकूल नहीं मिल रहे।
स्थानीय लोगों को जब तक यह दृष्टि नहीं मिलती कि उनको मिलकर अपने प्राकृतिक संसाधनों को सहेजना होगा, तब तक उनका नियंत्रण अपने ही जीने के साधनों पर नहीं होगा।
बेहाल गैर बर्फानी नदियों को लेकर राज और समाज की संवेदना का खत्म होना, चिंताजनक है।नौलों के रूप में सदियों पुरानी विरासतों को संभालने, सुधारने और साफ रखने की कोशिशों में सबसे अधिक बाधा है, सरकारी तंत्र की कार्यशैली..
उनके कागजों की गति इतनी धीमी रहती है कि आग बुझाने का काम बरसात में होने लगता है।
थोड़ी बरसात हुई।यही वक्त है जब लोगों को जल संचय के ढांचों पर तुरंत काम पर लगना चाहिए।लेकिन तुरंत तो सिर्फ आपदा में ही कुछ होता होगा।
हम फिर कहते हैं कि बाकी सब योजना और विचार करते रहिए।अभी संभालने के लिए लोगों को हाथों में खोदने और निर्माण के काम को करने के लिए प्रेरित कीजिए ताकि स्थान स्थान पर बिखरे जल श्रोत संभाले जा सकें…
श्रमदान एक तरह की साधना है।बेतवा नदी में विदिशा के पास श्रमदान दल पिछले कई साल से लगातार बिना किसी प्रचार के कार्यरत है।हमको आश्चर्य हुआ जब उसमें डाक्टर, इंजीनियर, प्रशासक और तमाम विभागों के लोग जुड़ते देखे।
फावड़ा कुदाली लेकर नदी का कचरा साफ करते उन सेवाभावी विनम्र लोगों को देखना बहुत प्रेरणादाई था।
काश हमारे हिमालय के तमाम ग्रामीण किसान बागवानों को यह अंतःप्रेरणा हो और हमारी नदी, जंगल, जलश्रोत प्लास्टिक कचरे, मानव निर्मित गंदगी से मुक्त हो सकें।साथ ही उनके अक्यूफर सुरक्षित किए जा सकें।
खोज है कि ऐसे लोग मिलें, जिनके द्वारा एक नौला सुरक्षित हो, आबाद हो और उसका लाभ पीढ़ियों को मिलता रहे।