देवभूमि न्यूज 24.इन
सनातन धर्म में कालाष्टमी पर्व का विशेष महत्व है। यह पर हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा की जाती है। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। तंत्र सीखने वाले साधक कालाष्टमी पर काल भैरव देव की कठिन साधना करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर काल भैरव देव साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।
कालाष्टमी शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 मार्च को सुबह 04 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी और 23 मार्च को सुबह 05 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी। काल भैरव देव की निशा काल में पूजा की जाती है।

अत: 22 मार्च को चैत्र माह की कालाष्टमी मनाई जाएगी। वहीं, निशा काल में पूजा का समय देर रात 12 बजकर 04 मिनट से लेकर 12 बजकर 51 मिनट तक है।
कालाष्टमी पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। और व्रत का संकल्प लें। भगवान शिव और काल भैरव की प्रतिमा का गंगाजल से अभिषेक करें। पूजा में दीपक, काले तिल, उड़द, और सरसों के तेल का प्रयोग करें। शाम को शिव, पार्वती और भैरव जी की विशेष पूजा करें। रात में काल भैरव स्तोत्र और श्री कालभैरवाष्टक का पाठ करें। काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
काल भैरव को प्रसन्न करने के उपाय
सरसों के तेल का दीपक जलाकर भगवान भैरव की पूजा करें।
गरीबों को वस्त्र और भोजन का दान करें।
21 बिल्वपत्रों पर “ॐ नम: शिवाय” लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं।
श्री कालभैरवाष्टक का पाठ करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है।

कालाष्टमी के दिन न करें ये गलतियां
शराब और मांसाहारी भोजन का सेवन न करें।
अहंकार न करें, बुजुर्गों और महिलाओं का अनादर न करें।
नुकीली चीजों (चाकू, कैंची आदि) का अधिक प्रयोग न करें।
किसी भी जानवर को परेशान न करें, इससे काल भैरव अप्रसन्न होते हैं।
माता-पिता और गुरु का अपमान करने से बचें।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175