*देवभूमि न्यूज 24.इन*
होली उत्सव के मौके पर बीच बाजार में राधेश्याम को उसके रिश्तेदारों ने घेरकर मुंह पर कालिख और काला रोगन भी पोत दिया था। यह गंदी होली खेलने का बहुत बुरा दौर था।राधेश्याम के कपड़े फाड़कर बीच बाजार में घुमाया गया था। उसका जबरन एक सहपाठिन भारती से जबरन संवन्ध जोड़कर पिटाई कर डाली थी। इस घटनाक्रम ने राधेश्याम को झिंझोड कर रख दिया था। उसने इसके बाद कभी होली नहीं खेली थी। शहर के बस अड्डे से सटा मैदान सबके आकर्षण का केन्द्र बिंदू था। यहां पर सुब्ह चार बजे से ही विभिन्न खेल गतिविधियों में स्पर्धा करने वाले खिलाड़ियों की कठोर तपश्चर्या प्रारम्भ हो जाती थी।

इसके साथ-साथ बाल- वृद्ध सभी अपने अपने समयानुसार आकर मैदान के आकर्षण को चार चांद लगा देते थे। मोटर साईकल, स्कूटर व
साईकिल सीखने वालों की पहली पसन्द भी यही बड़ा मैदान रहा करता था। यह मैदान राजनेताओं के हेलीकॉप्टर उतरने के लिए भी काफी प्रसिद्ध हो चुका था। मित्र राधेश्याम को यहां पर भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हेलीकॉप्टर से उतरने का परिदृश्य चलचित्र की तरह घूमने लगता था। राधेश्याम का मन डांवाडोल हो रहा था। कभी इस चौक पर तो कभी बस स्टैंड के उस चौक के लगातार चक्कर काटता जा रहा था । किसी को उसके निरापद घूमने से कोई फर्क नहीं पड़ता था। सभी अपने अपने क्रिया-क्लापों में संलग्न रहते थे। राधेश्याम पर बारीकी निगरानी रखने वाले उसके निकटतम संबंधी, पड़ौसी व इक्का दुक्का मित्र थे। अनायास चौक पर सहपाठी भुवनेश से राधेश्याम का टाकरा हो गया था। कुशल क्षेम जानने के बाद दोनों सहपाठी स्कूली दिनचर्या उपरांत एक बार अर्सा दराज बाद बस स्टैंड से सटे खुले मैदान के स्टेडियम की पौड़ियों के शिखर पर बैठकर अपनी अपनी राम कहानी सांझा करने लगे थे। दोनों की जुवानी उनकी राम कहानी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एकाएक संत कांतिलाल जी वहां उपस्थित हो गए थे। संत कांतिलाल जी राधेश्याम के खूब परिचित थे। संत कांतिलाल जी श्री सनातन धर्म मंदिर में बहुत सालों तक सेवारत रहे थे। इस दौरान राधेश्याम के पिताजी पंडित रघुनाथ सिंह सनातन धर्म मंदिर में बतौर पुजारी कार्यरत रहे थे।

इस दौरान संत कांतिलाल जी और पुजारी रघुनाथ सिंह में विभिन्न विषयों कर्मकांड, ज्योतिष, आयुर्वेद पर गहन मंथन होता रहता था। संत कांतिलाल जी ने क्राफ्ट आर्ट समेत विभिन्न अर्थकारी विद्या भी बखूबी सिखलाई थी। यही नहीं संत कांतिलाल जी विभिन्न महातीर्थ स्थलों पर तीर्थाटन को जाते तो पुजारी रघुनाथ सिंह की घर गृहस्थी चलाने के लिए शंख,रुद्राक्ष, तुलसी,स्फटिक, सुच्चे मोती माला व ग्रहो के नगों का सफलतापूर्वक व्यापारिक आदान प्रदान का भी मार्ग प्रशस्त करते रहते थे। रघुनाथ सिंह की घर गृहस्थी का अच्छा निर्वहन हो रहा था। यह सब रघुनाथ सिंह के निकटतम शरीक भाईचारे के लोगों को हज्म नहीं हो पा रहा था। उनकी कुटिल दृष्टि रघुनाथ सिंह की पुश्तैनी जमीन व शहर के मकान पर थी। वह हर सम्भव जुगत भिड़ाने में लगे थे ताकि सब कुछ लुढ़क जाये और वह उसकी सारी सम्पति पर काबिज हो जाए? इसी उधेड़बुनतर के चलते सर्वप्रथम रघुनाथ सिंह की धर्मपत्नी राजदुलारी को धोखेबाजी से उल्टा सीधा खिला पिलाकर मानसिक तौर पर विक्षिप्त कर दिया था। पुजारी रघुनाथ सिंह ने माता महाकाली श्री माहुंनाग, भगवती कोयला राजगढ समेत ना जाने कहां कहां ईलाज उपाय करवाये थे। विभिन्न सरकारी अस्पतालों में भी दवा दारु उपचार करवाया किन्तु राजदुलारी को बचाया नहीं जा सका था। इसके बाद रघुनाथ सिंह का संकटकालीन दुविधाग्रस्त जीवन का दौर खत्म होने का नाम नहीं लेता था। जब मुसीबतों का साया सिर पर मंडराता है तो आदमी का अपना साया भी साथ छोड़कर जाने लगता है। इसी घटनाक्रम में संत कांतिलाल ने श्री सनातन धर्म मंदिर में आना बंद कर दिया था। पुजारी रघुनाथ सिंह के खिलाफ उसके रिश्तेदारों ने षड्यंत्र रचाकर पूजा-पाठ से हटकर बेरोजगार बना दिया था। रघुनाथ सिंह को अपने इकलौते बेटे राधेश्याम की गंभीर चिंता सताये जा रही थी। राधेश्याम बी0 ए0 पास करने व विभिन्न स्टेनो/टंकण कला निपुण होने के बावजूद सरकारी नौकरी लेने में कामयाब नहीं हो पा रहा था। सगे रिश्तेदार राजनीतिक प्रभाव के चलते जन प्रतिनिधियों पर दबाव डालने में हर संभव घेराबंदी कर डाली थी ताकि राधेश्याम का कोई भी नौकरी जुगाड फिट ना हो सके। यह अंध भक्ति व राजनीतिक हेराफेरी का जबरदस्त दौर था। एम एल ए , एम पी और मंत्री जो चाहते थे वही घटित होता था। राधेश्याम के बिवाह में भी निजी रिश्तेदारों द्वारा व्यवधान डाले जा रहे थे। राधेश्याम को निजी रिश्तेदारों ने उसे निकम्मा, चरित्रहीन, झूठ मूठ का शूगर मरीज व पागलपन का शिकार घोषित कर रखा था।
इन हालातों के चलते रघुनाथ सिंह की सेहत लगातार बिगड़ती चली जा रही थी।
कुछ महीनों के अंतराल बाद एक सुबह रघुनाथ सिंह को बिस्तर पर मृत पाया गया था।
राधेश्याम की मानसिक स्थिति अब सचमुच बहुत ही दयनीय बन चुकी थी।
एकाएक परिवर्तन के तौर पर आज संत कांतिलाल जी बड़े खेल मैदान में प्रकट होकर राधेश्याम को एक बार पुन: पुरजोर नये सिरे से संघर्षशील बनवाने में सफल सिद्ध हो गए थे। संत कांतिलाल जी ने व्यापार संचालित करने के लिए राधेश्याम की दिल खोलकर आर्थिक मदद करके राधेश्याम को अनाज का थोक का बड़ा व्यापारी बना दिया था।
धीरे धीरे षड्यंत्र रचाने वाले रिश्तेदार चारों खाने चित होकर ध्वस्त हो गए है। उनका झूठा राजनीतिक तिलस्मी साम्राज्य भी समाप्त हो चुका है। आजकल रोटी के लिए भी मोहताज होकर दर दर भटक रहें हैं । उधर राधेश्याम का सहपाठिन भारती से ही विवाह सम्पन्न हो गया था।
अर्सा दराज बाद राधेश्याम ने होली का उत्सव सपत्नीक खेला था।
वर्तमान में पांच दशकों के लम्बे अंतराल में राधेश्याम का लड़का कुलभूषण अपना अस्पताल संचालित कर रहा है। कुलभूषण की धर्मपत्नी भवना सरकारी अस्पताल में कुशल डाक्टर सर्जन है।
राधेश्याम ने अपना कारोबार समेट लिया है। वर्तमान में राधेश्याम अपने पिताजी रघुनाथ सिंह के अधूरे कार्यों को सम्पादित करवानें में पूर्णत: समर्पित है। संत कांतिलाल जी महाप्रयाण कर चुके हैं । भविष्य में डाक्टर कुलभूषण ने संत कांतिलाल के नाम पर बड़ा अस्पताल बनवाया है।
राजीव शर्मन
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