भगत सिंह को क्यों कहा जाता है शहीद-ए-आजम

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देवभूमि न्यूज 24.इन

भगत सिंह जी की मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो पंजाब, भारत में है। उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वरण सिंह जेल में थे।

भगत सिंह को शहीद-ए-आजम क्यों कहा जाता है?

उनसे पहले या बाद में कोई उनके कद का चिंतनशील क्रांतिकारी सामने नहीं आया। भगत सिंह को फांसी की सज़ा मिलने के बाद कानपुर से निकलने वाले ‘प्रताप’ और इलाहाबाद से छपने वाले ‘भविष्य’ जैसे अखबारों ने उनके नाम से पहले शहीद-ए-आजम लिखना शुरू कर दिया था। यानी कि जनमानस ने उन्हें अपने स्तर पर ही शहीदे-ए-आजम कहना शुरू कर दिया था।

शहीद-ए-आजम का क्या अर्थ है?

“शहीद-ए-आज़म” शब्द की उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान हुई थी। इसका अंग्रेजी में अर्थ है “राष्ट्र का शहीद”

आज़म शब्द के कई मतलब हो सकते हैं: 
आज़म शब्द का मतलब है, सबसे बड़ा, महान या सबका सरताज। यह अरबी भाषा का शब्द है।
शहीद-ए-आज़म का मतलब है, शहीदों में आज़म। भगत सिंह को भी शहीद-ए-आज़म के नाम से जाना जाता है।
कायदे-आज़म का मतलब है, महान नेता या बड़ा नेता।
अज़ीम शब्द का मतलब है, महान, शानदार या रक्षक. यह इस्लाम में अल्लाह के नामों में से एक है। इसे व्यक्तिगत नाम के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
आजम शब्द का मतलब है, गूंगा, मूक या जो बोल न सके।

वकील कौन था?

भगत सिंह के ख़िलाफ़ केस लड़ने वाले वकील का नाम आसफ़ अली था। आसफ़ अली एक बैरिस्टर थे। उन्होंने भगत सिंह के अलावा बटुकेश्वर दत्त और आज़ाद हिंद फ़ौज के बहादुर ढिल्लन, सहगल, और जनरल शाहनवाज़ के मुकदमे भी लड़े थे। 
आसफ़ अली के बारे में ज़्यादा जानकारीः 
आसफ़ अली ने वकालत की पढ़ाई इंग्लैंड में की थी। उन्होंने 1909 से 1914 तक इंग्लैंड में रहकर बैरिस्टर की।

क्या पाकिस्तान भगत सिंह को मानता है?

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भगत सिंह को आतंकवादी माना जाता है। राज्य सरकार ने लाहौर के शहीद-ए-आजम भगत सिंह चौक का नाम बदलने और उनकी प्रतिमा लगाने की योजना रद्द कर दी है। यह कदम एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी की राय के बाद उठाया गया है। भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को लाहौर के इसी चौक पर फांसी दी गई थी।

भगत सिंह के प्रेरक विचार :

वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते।
वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे। अगर बेहरों को सुनाना है तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए।
मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब।

जब जेल के अधिकारियों ने उन्हें बताया कि उनका फ़ांसी का समय आ गया है, तब उन्होंने कहा था, ‘ठहरिए’ !
भगत सिंह ने फ़ांसी से पहले लिखे अपने आखिरी खत में ये बातें लिखी थीं: 
जीने की इच्छा मुझमें भी है, लेकिन मैं कैद होकर या पाबंद होकर नहीं जी सकता।

क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे इतना ऊपर उठा दिया है, जितना मैं जीवित रहकर भी नहीं कर पाता।

मुझे खुद पर गर्व है।
अंतिम परीक्षा का इंतज़ार बेताबी से है। 
आज मेरी कमज़ोरियां जनता के सामने नहीं हैं।
अगर मैं फ़ांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्दम पड़ जाएगा या संभवत: मिट ही जाए। 
भगत सिंह को लाहौर (तब भारत में) शहर में अधिकारी जेपी सॉन्डर्स की हत्या के लिए फ़ांसी दी गई थी।

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