देवभूमि न्यूज 24.इन
‘ पापमोचनी’ यानी पाप का अर्थ है “अधर्म या बुरे कार्य” और मोचनी का अर्थ है “मुक्ति पाना”।
पापमोचनी एकादशी पापों को नष्ट करने वाली एकादशी है। यह व्रत व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिये मोक्ष के मार्ग दिखाता है इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी का पूजन करने से अतिशुभ फलों की प्राप्ति होती है
विशेष
25 मार्च 2025,मंगलवार व्रत के दिन…अगर आपने व्रत नहीं रखा है तो… खाने में चावल या चावल से बनी हुई किसी भी प्रकार की चीज वस्तुओं का प्रयोग तो बिल्कुल भी ना करें …
व्रत विधि
01 . पापमोचनी एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है
02. व्रत के दिन सूर्योदय काल में उठें, स्नान कर व्रत का संकल्प लें
03. संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए
04. प्रभु श्री विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर श्रीमद भागवत कथा का पाठ या श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ या फिर प्रभु श्री विष्णु के मंत्रों का जाप करें या फिर सुने
05 . एकादशी व्रत की अवधि 24 घंटों की होती है
{ यानी कि व्रत के दिन के सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक}
06 . एकाद्शी व्रत में दिन के समय में श्री विष्णु जी का नाम स्मरण, पूजा पाठ एवं ध्यान करना चाहिए
07 . एकादशी व्रत करने के बाद रात्रि जागरण करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है.इसलिए रात्रि में श्री विष्णुजी का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए
08 .द्वादशी तिथि के दिन प्रात:काल में स्नान कर, भगवान श्री विष्णुजी की फिर से पूजा करें
09 . किसी जरूरतमंद या ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत का समापन करें यह सब कार्य करने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए
एकादशी को चावल खाना वर्जित क्यो… ❓
एकादशी को चावल क्यो नहीं खाना चाहिए❓ वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से रोचक तथ्य…
एकादशी की एक घटना
ऐसा माना गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है ,इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है
चावल खाने से परहेज क्यो ❓
चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं। एक और पौराणिक कथा है कि …माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं
चावल का जल से सम्बन्ध
जहां चावल का संबंध जल से है, वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं
चावल न खाने की सलाह क्यो ❓
वर्ष की चौबीसों/छब्बीसों एकादशियों में चावल न खाने की सलाह दी जाती है। ..ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है… इसीलिए द्वादशी को चावल अवश्य खाना चाहिए
चावल के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं
आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूरत नहीं पड़ती.. केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं… इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णुस्वरुप एकादशी का व्रत संपन्न हो सके
ऐसे हुई चावल की उत्पति
शास्त्रों में एक पौराणिक कथा भी है। इसके अनुसार माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। …वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं। ऐसा माना गया है कि जिस दिन यह घटना हुई। उस दिन एकादशी का दिन था।. यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है।
ओम नमो नारायणाय