*देवभूमि न्यूज 24.इन*
दीनदयाल नामक आढ़ती सेब के सीजन में विभिन्न बगीचों के सेब ढुलाई का ठेकेदार था। सारे पहाड़ी क्षेत्र में वह दीनदयाल उर्फ मंत्री के नाम से सुपरिचित हस्ती बन चुका था। दीनदयाल उर्फ मंत्री की लड़की और स्थानीय निवासी पंडित जगन्नाथ के लड़के प्रद्युम्न का प्रेम प्रसंग जग जाहिर हो चुका था। इस कारण से दीनदयाल उर्फ मंत्री और पंडित जगन्नाथ के बीच शत्रुता पनप चुकी थी। आए दिन दोनों के बीच तकरार तेज हो गई थी।थानेदार चौधरी हाथ में हथकड़ियां संभाले सीधे पंडित जगन्नाथ के घर में प्रवेश कर गये। चौधरी थानेदार को जगन्नाथ के घर जाता देखकर सारे मुहल्ला में शोर मच गया कि आज पंडित जी के घर पुलिस आई है। सभी तमाशबीन पंडित के घर के बाहर खुसर-पुसर कर बार बार इधर से उधर चक्कर मार कर एक दूसरे से निगाहों निगाहों में बाते कर पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि आज किस कारण चौधरी थानेदार चार कांसटेबलों के दल बल सहित प०जगन्नाथ के घर किस प्रयोजन से आये है। प० जगन्नाथ निहायत शरीफ इन्सान थे। किसी प्रकार की कालेबाजारी या सट्टा-समगलिंग का भी सवाल नही उठता था।प० जगन्नाथ शुभकर्मी माने जाते थे। कई सालों तक आयुर्वेद की डाक्टरी कर काफी नाम कमाया था। उनकी गुणकारी औषधियां पाकर मरीज लोग निहाल हो जाते थे। घर पर पुलिस का आना पड़ोसियों-बाजारियों को हज्म नही हो रहा था। सभी लोग बाहर खड़े होकर अपने अपने क्यास लगा रहे थे कि थानेदार चौधरी उनके घर क्यों आया है। एक बाजारी पड़ोसी डा०शंकर ने हिम्मत जुटाते हुये प०जगन्नाथ के घर में प्रवेश किया। अंदर आंगन में चौधरी थानेदार खाट पर बैठे प०जगन्नाथ से सवाल जबाव कर रहे थे। डा०शंकर ने चौधरी थानेदार से मुखातिब होकर बोले!” हजूर, क्या माजरा है?” सब खैरीयत तो है? चौधरी थानेदार ने थोड़ा सा सिर हिलाया था। डा० शंकर बड़े सुलझे हुये थे,उन्होने प०जगन्नाथ को दो टूक पूछा! प० जगन्नाथ जी!! क्या मसला हो गया? थानेदार चौधरी घर पर किस लिये आये है? प० जगन्नाथ ने दबे स्वर कहना शुरू किया……..”क्या बताये डा० साहब,”औलाद न हो तब भी मुश्किल! हो जाये तब भी मुश्किल!!” प० जी, साफ साफ बताओ,माजरा क्या है? प०जगन्नाथ की धर्म पत्नी जानकी भी बाहर चाय लेकर आई। चौधरी थानेदार ने चाय पीने से मना कर दिया।थानेदार बोला!”आपका लड़का प्रद्युमन हमें कहां मिलेगा?” देखो! थानेदार साहब!! जानकी ने कहना शुरू किया……..हमारा प्रद्युमन इटली में पांच साल के कम्पनी एग्रीमैंट पर वहां कार्यरत है! वह तो मुझे भी मालूम है लेकिन वह मंत्री जी की एम०बी०ए०बेटी झूमरी को वहां अगवा कर रह रहा है। हमारे पास उसकी लिखित शिकायत आई है। हम इसी सिलसिले में तहकीकात करने आये है। हमने इटली की कम्पनी से सम्पर्क साधा तो पता चला कि प्रद्युम्न और झूमरी का एग्रीमैंट समाप्त हो चुका है।सच्चाई यही थी कि प्रद्युम्न और झूमरी का प्यार कालेज टाईम से ही परवान चढ़ा था। सारे शहर में बच्चे-बच्चे की जुवान पर झूमरी और प्रद्युम्न की जोड़ी चर्चा में थी। कुल्लू का शरबरी हो या अखाड़ा,सुल्तानपुर हो या दशहरा ग्राऊंड प्रद्युम्न और झूमरी की प्यारी दास्तान से सभी भली-भान्ति वाकिफ थे। मंत्री जी ने बेटी को एम०बी०ए०करवाकर इटली का बीजा लगाकर बाहर भेज दिया ताकि प्रद्युम्न का कांटा निकाला जा सके।मंत्री जी का सिक्का काफी चलता था। वह कुछ भी करवाने में सर्व समर्थ थे।किंतु प्रद्युम्न ने अपनी राम कहानी अपने मामा जो कि इटली की कम्पनी में ही दस साल नौकरी करके ज्वालापुर में रह रहे थे,को सुनवाई और साफ-साफ बता दिया था कि झूमरी ही उसके तन-मन में बचपन से ही बस चुकी है।अगर झूमरी ना मिली तो जीना बेकार व निर्रथक होगा अलबता व्यास की धाराओं में समाना ही आखरी विकल्प होगा। यही हालात झूमरी के भी थे। वह भी प्रद्युम्न को बेहद चाहती थी।एक बार बचपन में झूमरी को सिर पर गहरी चोट लगी थी।प्रद्युम्न उसके साथ-साथ खेला था। यहीं से दोनों का प्यार बढ़ता चला गया था। झूमरी के पिता दीनदयाल यू०पी०से ठेकेदारी करने अपने चाचा के साथ कुल्लू मनाली आये थे। इनके रिश्तेदार यू०पी०सरकार में काबीना मंत्री थे। उनकी निकटता के चलते हिमाचल में भी ठेकेदारी का धंधा खूब जमा। काफी धाक जम चुकी थी।लोग दीनदयाल को मंत्री के उपनाम से ही जानने लगे थे। मौहल-कुल्लू में एक साधारण पहाड़ी किसान से ५५ बीघा जमीन और बगीचा खरीद लिया था। दीनदयाल उर्फ मंत्री ने कई सरकारी इमारतों के ठेके भी ले रखे थे।प्रद्युम्न अपने मामा की मदद से इटली झूमरी के पास जाने में कामयाब हो गया था। इस दौरान दो जवां दिल घुलमिल बैठते रहे व परिणामस्वरूप प्यार का अनूठा उपहार एक पुत्र भी अनचाहे-विन व्याहे ही प्राप्त हो गया। इसकी इजाजत और मान्यता हमारा भारतीय सनातन समाज कदापि नहीं दे सकता। इटली के विदेशी परिवेश में उन्होनें यह सब हासिल कर लिया।झूमरी और प्रद्युम्न इटली में इकट्ठे ही रह रहे थे। झूमरी की एक मात्र प्रिय कालेज सहेली राजप्रिया को झूमरी और प्रद्युम्न के इटली में रहने व उनके ऩये मेहमान की सारी जानकारी थी।राजप्रिया सारी खबरे लगातार प०जगन्नाथ की धर्मपत्नी जानकी को पहुंचाती थी। किसी को शक की कोई गुंजाईश नही थी। दीनदयाल उर्फ मंत्री को यह भनक-भान तो था ही कि प्रद्युम्न उसकी लड़की झूमरी के चक्कर में ही इटली गया है। दीनदयाल ने बहुविधि सारी गतिविधियों को जानने का जाल बिछा रखा था। उसके यहां ठेकेदारी के सहायक,मजदूर नेपाली सभी जगह प०जगन्नाथ और जानकी पर खास नजर रखे हुये थे। एक दिन एक नेपाली नौकर ने दीनदयाल मंत्री को खबर दी कि एक राजप्रिया नामक लड़की प्रद्युम्न के माता पिता के पास अक्सर आती है।कुटिल लोग कुटिलता से सब लोगों पर येन केन प्रकारेण अपना शिकंजा कस ही लेते है।राजप्रिया के पिताजी लोकनिर्माण विभाग में साधारण बेलदार थे।घर की गुजर बसर के लिये अपनी छोटी सी नौकरी का राजधर्म निभा रहे थे। राजप्रिया भी जवान होकर विवाह लायक हो गई थी। दीनदयाल ने पी०डब्लू०डी० के एक्सियन को बोलकर बेलदार जगरूप पर दबाव डाला।एक्सियन ने जगरूप को सख्त हिदायत दी कि अगर आपकी लड़की ने प्रद्युम्न और झूमरी के बीच बिचौलिया बनकर दीनदयाल की पगड़ी उछालने की कोशिश की तो इसका गम्भीर परिणाम भुगतने को तैयार रहे। नौकरी के राजधर्म मे बेलदार जगरूप ने राजप्रिया के पैरों में बेड़िया डालकर सब राज उगलाकर एक्सियन के माध्यम से दीनदयाल तक पहुंचा दिये।अब दीनदयाल उर्फ मंत्री कोई भी मौका चूकना नहीं चाहता था। उधर इटली में प्रद्युम्न और झूमरी ने कम्पनी के सहयोग से अपना पांच साल का एग्रीमैंट आगामी दस सालों तक के लिये बढ़ा दिया था।दीनदयाल आग बबूला होकर मरता क्या ना करता। वह बहुविधि प०जगन्नाथ और जानकी को प्रताड़ित करने की मन्शा से सारे जाल बुन रहा था। वह पुलिस दबाव बना रहा था कि जगन्नाथ और जानकी प्रद्युम्न को घर वापिस बुला ले। यह एक स्वप्न की बात थी।प्रद्युम्न और झूमरी दोनों ही व्यस्क थे। दोनों अपना भला बुरा खुद समझते थे। उधर डा०शंकर ने प०जगन्नाथ और जानकी को काबिल वकील के माध्यम से पक्की घुट्टी पिला दी थी। दीनदयाल उर्फ मंत्री का पक्का कानूनी इलाज ढूंढ निकाला गया था। अब चौधरी थानेदार प०जगन्नाथ व जानकी के घर प्रद्युम्न की तलाश में नही आ सकता था। राजप्रिया के पिताजी जगरूप ने भी गवाही दे डाली कि दीनदयाल साजिश के चलते उसकी छोटी सी नौकरी का राजधर्म खतरे में डाल रहा है। राजप्रिया प्रसन्न थी कि अब दीनदयाल प्रद्युम्न और झूमरी के विवाह की वास्तविकता जानकर भी उनका बाल वांका ना कर सकता था। अर्सा दराज बाद प्रद्युम्न और झूमरी स्वदेश लौटे तो वह कानूनन शादी-शुदा पति-पत्नी थे।युद्ध और प्यार में सब कुछ सत्य-असत्य भी यथोचित व न्यायोचित माना जाता है।शायद उनका यही राजधर्म था।
राजीव शर्मन
अम्बिकानगर-अब कालोनी
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जिला ऊना, हिमाचल प्रदेश