कलाकारों की बारात(कहानी)राजीव शर्मन्,

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अम्बिकानगर-अम्ब,177203 समीप रेलवे स्टेशन,अम्ब-ऊना।
देवभूमि न्यूज 24.इन
अपने लाल कल्याण सिंह को तन्हा पाकर मां ने आज पुन: क्लास लगाई ।” क्यों रे! कहां खोया रहता है ,आजकल “? “सुवह रोटी खाकर नहीं गया आज रे “? ” आधी रात तक तेरे कमरे की लाईट जलती थी! ” तू आजकल किन परियों के शिकंजे में फंसा हुआ है “? ” किस महारानी की बेगारें करता-फिरता है? “तुझे मालूम नही,अब मैं 70 की अवस्था पार कर गई हूँ ” । हमारे सारे रिश्तेदार रस बस गये है, “मैं सिर्फ तेरे लिये जी रही हूं, मेरे जीते-जी कोई ना कोई कुछ तो बरसरो रोजगार की लाईन पकड़ ले,अपने पैरों पर खड़ा हो जा,नहीं तो सारा जमाना तमाशा देखने को बैठा है।”

हर मां की अपने बच्चे को सरसब्ज देखने की भावना के चलते कल्याण सिंह की माता हरिन्द्री की भी यही अन्तिम इच्छा थी कि कल्याण सिंह उसके बैठे -बैठे अपने पैरों पर खड़ा हो जाता। अरे मां! क्यों चिन्ता करती हो ? कल्याण सिंह बहानेबाजी और टालमटोल में सिद्धहस्त है।कल्याण सिंह आधुनिक सदी का छोकरा है,उसकी बड़ी लम्बी उड़ानें है ,वह उनको अमली जामा पहनाने की गर्ज से भी हाथ-पैर मारता रहता है। हरिन्द्री ने फिर डांटा! कल किन लड़कियों को छोड़ने रामनगर गया था? तुझे क्या मालूम पड़ोस में महिलाएं क्या-क्या धागे बुनती रहती है ? अरे! अब तू ही मेरा अकेला रत्न है!! तेरे को ही लड़कियां ले गई, तो मेरा क्या होगा ? लेकिन अबकी हरिन्द्री की आंखों मे प्रसन्नता के भाव भी साफ छलकते थे। कल्याण सिंह लगातार माता को टालता रहा। हरिन्द्री सैनिक विधवा पैंशन भोगी थी। गांव की जमीन और मकान बेचकर कई सालों से जवाहरनगर में नया मकान बनाकर रह रहे थे। कल्याण के पिताजी भारतीय सेना में लांस नायक थे। वह सिक्किम में सेवारत थे। 1962 के भारत-चीन युद्ध में वह शहीद हो गये थे। कल्याण सिंह उस समय एक साल का रहा होगा।उसे अपने सैनिक पिता जी के बारे कुछ भी याद नहीं है। वह लोगों से सुनता आया है कि फौजी रणवीर सिंह बहुत बहादुर थे। वह नदी के विपरीत वेग पर भी नियन्त्रण करते। एक बार गागल-सकरोहा में 1960 के दशक में सुकेती पूरे उफान पर थी।कई कच्चे मकान-मवेशी बाढ़ में बह गये। रणवीर सिंह सुकेती खड्ड से कई लोगों को बचाने में कामयाब रहे थे। कल्याण सिंह में भी पिताजी के जन्मजात संस्कार बहादुरी के है। lएक बार बालकरूपी बाजार का संजय ब्यास नदी मे डूबा तो कल्याण सिंह को देरी से खबर हुई वर्ना वह उसको शायद बचा लेता।

पांच मिन्ट की देरी का मलाल उसे खलता है कि वह उसे ब्यास नदी से जिन्दा नही निकाल पाया था। हरिन्द्री कभी-कभी इन्हीं गतिविधियों से घबराती है किंतु जब वह कल्याण सिंह को लड़कियों की बेगार में तत् -चित देखती है,तो अन्तर्मन से प्रसन्न होती है कि शायद कल्याण सिंह की शादी किसी अच्छी और घर संभालने वाली लड़की से हो जाये। कल्याण सिंह पक्का कामरेड है। वह शहर की वर्ग-भेद की लड़ाई से चिन्तित है। वह इस वर्ग-भेद की खाई को पाटना चाहता है। कल्याण सिंह की कामरेड टोली में अशोक,राकेश,अमरचंद, देशराज,नरेन्द्र,अजय, तरूण भंडारी, लवंग,अरूण, जीवन, सतीश,डी०एन० कपूर की मुस्तैदी से काम करने वाली पूरी टीम है जो कि सर्वहारा वर्ग के लिये समर्पित है। यह टीम सांस्कृतिक और रचनात्मक गतिविधियों का नुक्कड़ नाटक मंचन भी करती रहती है।सारा शहर इस टीम की रचनात्मक गतिविधियों का कायल है। कल्याण सिंह तो कई कदम आगे निकल कर शिमला,चंडीगढ और दिल्ली तक लड़के-लड़कियों के साथ भ्रमण करता है।आज कालेज में सी०एस०ए0 के चुनाव होने जा रहे थे। छात्र गुटों का संघर्ष काफी बढ़ चढ़ कर बोल रहा था। मुख्य मुकावला ए०बी0 वी०पी0 और एस0 एफ0 आई0 के मध्य होता आया था। बाकी के विद्यार्थी संगठनों की हाजिरी नाम मात्र की थी। चुनाव लड़ने वाले छात्र नाम मात्र के मोहरे थे। वास्तविक तौर पर पर्दे के पीछे कोई और ही राजनीतिक बिसात विछाई जाती थी। पर्दे के पीछे पुराने धुरन्धर गुण प्रकाश,प्रियव्रत,अच्छर सिंह,धर्मपाल मुनीन्द्र,राजेन्द्र,साजूराम, मान सिंह,कल्याण सिंह ज्यादा सक्रिय भूमिका में थे। एक गुट रात-रात कालेज पोस्टर लगाता दूसरा गुट सुवह पोस्टर बैनर फाड़ देता था। हर दिन प्राचार्य बी०एस० स्याल, प्रकाश चंद अवस्थी और सांध्यकालीन प्राचार्य डा०नीलमणी को आये दिन छात्र संगठनों को नियन्त्रण करना मुश्किल था। उन दिनों सारे जिला का एक मात्र कालेज एक ही था। बहुत ज्यादा गुट थे। कल्याण सिंह को बल्ह घाटी का ही गिना जाता था। बल्ह बनाम सरकाघाट की लड़ाईंया बहुत ज्यादा थी। कल्याण सिंह का एस०एफ०आई०की पैनल चुनाव जीत गया था। दूसरा गुट थोड़ी देर छटपटा कर शांत हो गया था।कल्याण सिंह के नेतृत्व में मुख्य बाजार से बड़ी भारी रैली निकाली गई। पुराने लीडर छात्रों दिग्विजय,अनिल कुमार, योगेश,जंग बहादुर, बावा-देवीरूप,रवि महाजन,जियालाल आदि को भी बुलाया गया था। कालेज परिसर में पहली बार सभी गिलवे शिकवे दूर कर बड़ा जश्न और पार्टियों का दौर चला। कल्याण सिंह और यतीश पाली बाक्सर का भी समझौता हुआ। वह भी चुनावी चक्कर में भिड़ते रहे थे।
कल्याण सिंह की लोकप्रियता के चलते काफी छात्र-छात्रायें उसकी समर्थक थी। वह सबकी हर सम्भव हर मंच पर सहायता करता था। विश्वविद्यालय राजधानी शिमला के काम भी हाथो-हाथ करवा लाता था। कल्याण सिंह की समर्थक छात्राओं में कमलेश,ऱजनी,प्रतिभा, कल्पना,श्वेता,टीना, ज्योतषणा,लता,हेमनलनी,शालिनी,वनिता,अर्चना, सुनयना आदि चाहती थी कि कल्याण सिंह ही कालेज छात्र संघ का प्रधान होना चाहिए किंतु कल्याण सिंह ने प्रधानगी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।कल्याण सिंह कालेज की सभी गतिविधियों में अग्रणी रहता था। वह अपनी मित्र मंडली का एक बहुत अच्छा गाईड सदैव बना रहता। वह उल-जलूल के संघर्षों व हड़तालों के सख्त खिलाफ था। वह कर्मचारी संघर्ष का हवाला देता कि किस तरह मौका प्रस्त लीडरों ने अपनी लीडरी चमकाने हेतु गोलीकांड की भीषण आग में शहादत के लिये झौंक दिया। इसी तरह वह उदंड और दिशा हीन छात्र-छात्राओं का मार्ग दर्शक बना था । उन दिनों नब्बे के दशक में आरक्षण का आन्दोलन भड़का जिसमें सेरी- चौहट्टा बाजार में श्री नरेश राणा,सरकाघाट ने आत्मदाह करके जान दे दी थी। आरक्षण आन्दोलन के दौरान खूनी गोलीकांड में आधा दर्जन नवयुवक भी मारे गये जिनमें कल्याण सिंह के ननिहाल के दूरपार के मामा बल्ह-भंगरोटू का लड़का भी गोलीकांड में मारा गया था। कल्याण सिंह सनसनीखेज वर्ग संघर्ष के खिलाफ भी आवाज उठाता रहा। वह दूसरों की पीठ पर बंदूक ऱखकर नेतागिरी चमकाने के सदैव विरूद्ध था। यही कारण था कि कल्याण सिंह के चाहने वालों की भी लम्बी फेहरिस्त थी। मंडी के संभ्रांत खतरी परिवार की भवानी कल्याण सिंह की सर्वगुण सम्पन्नता के चलते जी-जान से फिदा थी। लम्बे तगड़े छ:फुट्टे सजीले नौजवान पर कई लड़कियां लाईन में थी। हालांकि इन लड़कियों के चाहने वालों लड़कों की भी कोई कमी नहीं थी। कभी-कभार अपने-अपने प्रेम-संघर्ष में यह सभी बेलगाम प्रेम-प्रेमी दावेदार अपनी-अपनी दावेदारी कालेज परिसर और तत्कालीन प्रोफेसर आर0 के0 हांडा,बृजराज किशोर माथुर, एस0 एस0वर्मा, बी0 डी0 शर्मा,एन0सी0शर्मा,ए0एस0चौहान, कृपाल सिंह ठाकुर, डी0एन0कपूर,एम0एम0 मल्होत्रा,हर्ष कुमार, दिनकर बूराथोकी, डी0 एन0टंडन,सपरू,टी0 एस0परमार ,मान सिंह जमवाल को नियन्त्रित करना बहुत ही दुष्कर कार्य प्रतीत होता था। कल्याण सिंह की टोली रैगिंग भी खिलाफ थी। कुछ दादागिरी करने वाले कर्मू, जोधा,जांगड़ू,वीरू,ढानी, लाभसिंह, सरदारा जब कभी कल्याण सिंह को ग्रिप-चाकू राडों से वार करने का दु:साहस करते तो बहुत बुरी तरह से कल्याण सिंह की टोली से सरेआम लड़कियों के बीच मार खाते थे। हरिन्द्री माता कल्याण सिंह के लिये हमेशा चिन्तित थी। उसे कल्याण सिंह और भवानी के प्रेम प्रसंग का पता चला तो वह भवानी के माता-पिता से मिली।”देखो बहन, मैं खाली पल्ला लेकर आपके घर आपकी बेटी भवानी का हाथ-दान मांगने आई हूँ “। ” मेरा लड़का कल्याण सिंह बी0एस0सी0 कर रहा है, आपकी लड़की भवानी दोनों एक साथ पढ़ते है।
“दोनों एक -दूसरे को बेहद पसंद करते है,दोनों का विवाह हो जाये तो”——— हरिन्द्री की बात पूरी होने से पहले भवानी की मां बोली, ” बहन! मैंने कल्याण सिंह को देखा है। यहां कई बार हमारी भवानी को छोड़ने आया है , किंतु भवानी के विवाह का फैसला भवानी के पिताजी ही करेंगें।” अगर उनकी रजामंदी हुई तो हम खुद चलकर आपके घर आयेगें।अभी दोनों पढ़ रहे है। आज कालेज का सालाना समारोह चल रहा था। कल्याण सिंह और भवानी राधा-कृष्ण की भूमिका में बेहतरीन नृत्य प्रस्तुत कर रहे थे ,जो कि देखते ही बनता था।समारोह के मुख्य अतिथि मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने उन्मुक्त कंठ से राधा-कृष्ण नृत्य की प्रशंसा की ।दोनों कल्याण सिंह और भवानी को कालेज का मिस्टर और मिस के खिताव से नवाजा गया। मुख्य अतिथि ने एक बार पुन: इस आकर्षक अंतरंग नृत्य को सुपर से भी उपर बतलाया।कालेज में बी०एस0 सी0करने उपरान्त भवानी शिमला एम०एस0 सी0 करने चली गई जबकि कल्याण सिंह भी ला (वकालत) करने शिमला गया। यहां पर भी दोनों का मिलना-जुलना जारी बना रहा। कल्याण सिंह वकालत पूरी करने पर अपनी योग्यता के बलबूते शिमला में ही प्रैक्टिस करने लगा। भवानी एम0एस0 सी0 के बाद एम० फिल कर रही थी। दोनों के घर लड़के-लड़कियों के ढेर रिस्ते आ रहे थे। हरिन्द्री का सब्र अब टूटने लगा था। वह अब कल्याण सिंह के रिश्ते को लेकर आर-पार की लड़ाई लड़ने पर आमदा थी। एक बार दोवारा भवानी के घर पर गई फिर वही घिसा-पिटा जबाव मिला। बच्चों का जरा कैरियर ठौर-ठिकाना तो बनने दो ना? हम स्वयं रिश्ता लेकर आयेंगे।हरिन्द्री अब मजवूर और बीमार भी रहने लगी थी। उसने कल्याण सिंह को बुलावा भेजा कि शिमला छोड़ दो। यही अपने घर की सिविल कोर्ट पर ही छोटी-मोटी वकालत चल पड़ेगी। कल्याण सिंह ने मां को वचन दिया कि वह एक महीने के भीतर वापिस घर आने वाला है। कल्याण सिंह की टोली सक्रिय हो गई थी। सारे शहर में कल्याण सिंह और भवानी के विवाह के कार्ड बांटे गये। भवानी के पिताजी ठेकेदार सुर्जन सिंह कई महीनों से तैयारी में जुटे हुये थे। वह कल्याण सिंह की बूढ़ी माता पर कोई बोझ नही डालना चाहते थे। वह दोनों कल्याण सिंह और भवानी का विवाह यथोचित शुभ मुहर्त में ही करना चाहते थे। आज विवाह के एक दिन पहले मां हरिन्द्री को शुभ समाचार दिया गया है कि कल टारना माता मंदिर में कल्याण सिंह और भवानी का शुभ विवाह होगा। हरिन्द्री सख्त नाराज है कि इतने जल्दी बल्ह के रिश्तेदारों को कैसे संदेश भेजेगें। कल्याण सिंह की मित्र-मंडली सभी रिश्तेदारों को भी बुलावा दे आई थी। रिश्तेदार आना शुरू हो गये। आज सारी मंडली ने अपने अजीज मित्र कल्याण सिंह और आयुष्मती भवानी की बारात उम्दा कलाकारी के अन्दाज में निकाली है। कोई कह रहा है, यह फिल्मी कलाकारों की बारात है। महिलाएं घरों से बाहर निकलकर विवाह शादी का तमाशा देखने लगी है। नन्दा हेयर ड्रैसर में काम करने वाले हेयर ड्रैसरों के ग्राहक चिल्ला रहे है। ” सालों पूरे बाल को काट लेते” ? हेयर ड्रैसर की कुर्सियों पर बैठे ग्राहक उठ नहीं पा रहे, किसी की आधी मूंछ कटी है, कोई आधा भोडा बनकर बैठा है।ड्रैसर कारीगर मशहूर नामी ठेकेदार सुर्जन द्वारा लुटाई जा रही रूपयों की थैलियां लूटने भीड़ में सम्मिलित है। जबरदस्त ,लाजबाब बैंड पार्टीयों ने सबको निहाल कर दिया है। चौहट्टा-सेरी में इतनी बड़ी नानक पटाखों वालों की आतिशबाजी इससे पहले कभी नही हुई। शहर के सभी लोग आनान्दित है, इतनी बड़ी धूमधड़ाके की शादी किसी शाही राजा-महाराजा या मंत्री के यहां भी रिकार्ड में दर्ज नहीं की गई। यह सचमुच बड़े कलाकारों की बारात है। कल्याण सिंह और भवानी का विवाह यथाविधि सम्पन्न हो जाता है। बादलों की जोरदार गर्जना के साथ ही कई दिनों से वर्षा के इंतजार में बैठे लोग भी आनन्द के हिलोरे लेने लगते है।

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