काशी ज्ञान, संज्ञान और प्रज्ञान की त्रिवेणी है-प्रो हरिकेश सिंह
देवभूमि न्यूज 24.इन
“आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है। आयुर्वेद का प्रादुर्भाव ही काशी से हुआ है। चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट के रूप में आयुर्वेद के सूत्र काशी से ही निकले। 12वीं शताब्दी में नागार्जुन ने पारे का शोधन कर शिवलिंग बनाया। आयुर्वेद, योग, रसायन, वाजीकरण के मूल सिद्धांत बहुत गूढ़ है। धर्म में विज्ञान का मर्म छिपा हुआ है। आध्यात्मिक जीवन शैली ही स्वस्थ रहने का पहला सूत्र है। शरीर स्वयं को स्वस्थ करता है। आयुर्वेद में रोग की चिकित्सा नहीं होती थी बल्कि शरीर की चिकित्सा होती थी। काशी में बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब की आयुर्वेद परम्परा थी; जिसे मालवीय जी ने बीएचयू में स्थापित किया। काशी के वैद्य ने ऐलोपैथी और आयुर्वेद के मिश्रण को समझा और प्रसारित किया। क्षार सूत्र को पहली बार काशी से ही जाना गया और यह तकनीक पूरे विश्व में स्वीकार हुआ। ऐलोपैथी ने एंटीबायोटिक को लाकर इस वैज्ञानिक तरीके को नुकसान किया।” उक्त बातें काशी की आयुर्वेद परम्परा शीर्षक पर पंद्रह दिवसीय काशी केंद्रित कार्यशाला- “काशी:संस्कृति, परम्परा एवं परिवर्तन” के तेरहवें दिन प्रथम सत्र में प्रो यामिनी भूषण त्रिपाठी ने भारत अध्ययन केंद्र, सभागार, बीएचयू में कही।
कार्यशाला के दूसरे सत्र_ ज्ञान की नगरी काशी विषय पर अपना वक्तव्य रखते हुए प्रो हरिकेश सिंह ने कहा कि_ “भारत की ज्ञान परम्परा प्रथमतः ऋषियों की परम्परा है। काशी प्रकाश की रक्षिका नगरी है। यह काश नभ में आकाश तक व क्षैतिज में प्रकाश के रूप में घनीभूत रूप से चेतना को सत् ,चित् ,आनंद प्रदान करता है। भारत में विद्या का पंचामृत कहीं बचा है तो वह काशी है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय तो विश्वविद्यालयों का विश्वविद्यालय है। भारत के ज्ञान परम्परा में पंचकोश को भूल जाते हैं, जो ब्रह्म की अवधारणा है। अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंद ही वह पंचकोश है। बिना किसी पूर्वाग्रह और अनुराग के प्राप्त किया गया ज्ञान ही शुद्ध ज्ञान है। भारतीय ज्ञान वह है जो परिशुद्ध है। गंगोत्री, गंगा, गीता,गाँव और गाय ही भारत है। काशी भौगोलिक, तात्विक व आध्यात्मिक त्रिवेणी है। काशी ज्ञान, संज्ञान, प्रज्ञान की त्रिवेणी है।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो सिद्धनाथ उपाध्याय ने स्लाइड के माध्यम से प्रतिभागियों को प्राचीन ज्ञान परम्परा से किस तरह आधुनिक विज्ञान विकसित हुआ इस तथ्य की व्याख्या की।
कार्यशाला का संचालन डॉ अमित पांडेय व धन्यवाद ज्ञापन डॉ अवधेश दीक्षित ने किया। इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य लोगों में प्रो सिद्धनाथ उपाध्याय, प्रो सदाशिव द्विवेदी, डॉ दयाशंकर त्रिपाठी, डॉ सीमा मिश्रा, डॉ नीलम मिश्रा, उमाशंकर गुप्ता, ज्योत्सना त्रिपाठी, उमाशंकर गुप्ता, डॉ मलय झा, अभिषेक मिश्र, अभिषेक यादव, डॉ सुजीत चौबे, आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे