देवभूमि न्यूज 24.इन
आज कल वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की हिमालय नीति अभियान प्रसंशा करता है। प्रदेश के आदिवासी एवं राजस्व मंत्री श्री जगत सिंह नेगी द्वारा किए जा रहे प्रयासों का सरहाना करते हैं तथा हम सभी सामाजिक कार्यकर्ता वन अधिकार कानून प्रदेश में लागू करने में उन का पूर्ण सहयोग करेंगे।
पत्र की प्रति
पिछले कुछ वर्षों से हिमाचल उच्च न्यायलय में वन/राजस्व भूमि दखल/कब्जे के खिलाफ केस चल रहा है। इस पर कई बार उच्च न्यायलय वेदखली के आदेश दे चुका है। जनवरी 2025 को फिर से ऐसे आदेश हिमाचल उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए।
वन/राजस्व भूमि पर कब्जे के कारण
भौगोलिक कारणों से हिमाचल प्रदेश के किसानों के पास बहुत का कृषि भूमि उपलव्ध रही है। इसीलिए सन् 1968 में उस समय की सरकार ने नई तोड़ ( खेती के लिए नई भूमि खोदना) का प्रावधान लाया, जिस में अधिकतम 20 बीघा तक आवेदक किसानों को भूमि अवंटित की गई।
सन् 1980 में वन संरक्षण कानून लागू किया गया, जिस कारण नई तोड़ के तहत पट्टे देना बंद हो गया। हजारों ही पट्टे देने की प्रक्रिया बीच में रुक गई जबकि किसान उक्त भूमि पर काबिज हो चुके थे। आज इन्हें पहले कब्जा धारी माना जा सकता है।
सन् 2002 में भाजपा सरकार ने नाजायज कब्जा नियमितिकरण के लिए नियम जारी किए जिस के तहत एक लाख 62 हजार नियमितिकरण के आवेदन सरकार को प्राप्त हुए जो नियमिति तो नहीं हो सके, उल्टे सभी आवेदकों पर नाजायज कब्जा के मुकदमे बन गए।
तीसरा कारण गावों में नए घरों का निर्माण बड़े पैमाने पर हुआ जो आवादी देह से बाहर हैं । राजस्व भूमि का बंदोबस्त होने के कारण भी किसानों का वन भूमि पर दखल नाजायज कब्जा घोषित हो गया, जबकि वन संरक्षण कानून 1980 से उक्त दखल पहले नियमित हो जाते रहे हैं।
साठ और सतर् के दशक में भाखडा और पोंग व अन्य बांधों के कारण लाखों एकड़ कृषि भूमि बिलासपुर, सोलन, उना तथा कांगडा जिला में डूब गई। इन विस्थापित परिवारों को हरियाणा तथा राजस्थान में पुनः स्थापित किया गया, परंतु बहुत से विस्थापित वहाँ गर्मी, रेगिस्तान, स्थानीय लोगों के दवाव व दूसरे कारणों से नहींं बस पाए। ये परिवार अधिकतर अपने पुराने गावों के आस पास डुव क्षेत्र से उपर वन भूमि पर बस गए। आज इन्हें भी वन भूमि पर नाजायज कब्जाधारी घोषित कर दिया गया।
आज उक्त हालातों में प्रदेश के लगभग तीन लाख से भी ज्यादा परिवार सरकारी दस्तावेजों में नाजायज कब्जा धारी घोषित हैं। अगर वन और राजस्व भूमि की पूरी पेमाइश हो तो ऐसे में प्रदेश के 80 प्रतिशत किसान व अन्य निवासी कमोवेश नाजायज कब्जा धारी सावित हो जाएंगे।
आज जो स्थिति बनी है उस में किसी भी वन व राजस्व कानून के तहत प्रदेश के निवासियों के उक्त कब्जों को नियमित नहीं किया जा सकता है । वन अधिकार कानून में ही एक मात्र प्रावधान जिस के तहत 13 दिसम्बर 2005 के पहले के कब्जों की मान्यता के अधिकार पत्र आदिवासियों व परंपरागत वन निवासियों को कानून में दिए जा सकते हैं, जो उन का अधिकार भी है
प्रदेश सरकार को चाहिए कि वन अधिकार कानून लागू करने के लिए जन अभियान चलाया जाए। आदिवासी विभाग के मंत्री के नेतृत्व में सभी ऐसे जन संगठनों, जो कई सालों से वनाधिकार कानून को लागू करने के लिए काम कर रहे हैं के साथ मिल कर कानून लागू करने के लिए इन संगठनों के साथ विमर्श करें और एक संयुक्त मंच गठित किया जाए, तभी यह कार्य न्यायपूर्ण तरीके से पुरा किया जा सकता है।
कानूनी प्रावधान
हिमाचल उच्च न्यायलय द्वारा युक्त सरकारी/वन भूमि से कब्जों को हटाने के आदेश HP Public Premises & Land (Eviction & Rent Recovery) Act] 1971 और भू-राजस्व अधिनियम 1954 की धारा 163 के प्रावधानों के तहत दिए जा रहे हैं। ऐसे ही आदेश निचली अदालतों द्वारा भी वन व राजस्व कानूनों के तहत कई बार दिए जा चुके हैं।
उक्त सभी कोर्ट के आदेश वन अधिकार कानून के मुताविक न्याय संगत नहीं हैं क्योंकि वन अधिकार कानून विशेष केंद्रीय कानून है जो प्रादेशिक व अन्य वन कानूनों पर प्रभावी (superspeed) करता है।
सर्वोच न्यायलय ने भी 18 अप्रैल 2013 को Writ Petition Civil No- 180 OF 2011À& Orissa Mining Corporation Ltd& Versus MOEF & Others के फैसले में आदेश दिया है कि जब तक वन अधकारों के दावों के सत्यापन और मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं होती तब तक वन भूमि से वेदखली नहीं की जा सकती। ऐसे में भू-राजस्व तथा वन कानूनों के तहत वन निवासियों की बेदखली और नाजायज कब्जे का मुकदमा तब तक नहीं चलाया जा सकता था, जब तक कि वन अधिकारों के दावों की मान्यता व सत्यापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती।
वन अधिकार कानून की धारा-3 हिमाचल प्रदेश के आदिवासी व अन्य परंपरागत वन निवासियों को 13 दिसम्बर 2005 से पहले अपनी वास्तविक जरूरत जैसे निवास या आजीविका के लिए खेती करने का वन/सरकारी भूमि पर उपभोग का अधिकार प्रदान करता है।
प्रदेश में आदिवासी (SC) हैं और गैर आदिवासी क्षेत्रों के सभी तीन पीढी से यहाँ रहने वाले निवासी अन्य परंपरागत वन निवासी की श्रेणी में शामिल हैं। ऐसे में पूरे हिमाचल के आदिवासी व गैर आदिवासी क्षेत्रों में वन अधिकार कानून अमल में है।
हिमाचल का कुल क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर है जिस का 67 प्रतिशत भू-भाग वन भूमि है। जबकि प्रदेश की 13,90,704 हेक्टर वन भूमि पर परंपरागत रूप से स्थानीय लोगों का दखल/बर्तनदारी रही है, जिसका वन व राजस्व दस्तावेजों व बंदोबस्तों में भी बर्तनदारी अधिकार के रूप में उलेख किया गया है। ऐसे में प्रदेश के इस एक तिहाई भू-भाग पर वन अधिकार कानून लागू होता है, चाहे वन विभाग द्वारा इन्हें नेश्नल पार्क, सेंचुरी, संरक्षित वन, डीएफपी या यू पी एफ घोषित कर रखा हो। इन बर्तनदारी वनों पर क्षेत्र के आदिवासी व अन्य परंपरागत वन निवासियों के वन अधिकार को मान्यता देना कानूनी बाध्यता है। खास कर प्रदेश के सभी किसान परिवार, चाहे वे आदिवासी हों या गैर आदिवासी समुदायों से संबन्धित हों, वन अधिकार कानून के तहत वन निवासी की श्रेणी में आते हैं।
सुझाव:
- सभी वन भूमि पर कब्जाधारी आदिवासी व अन्य परंपरागत वन निवासी को अपनी ग्राम सभा की वन अधिकार समिति को अपने वन भूमि पर 13 दिसम्बर 2005 से पहले के कब्जे के वन अधिकार कानून के नियम के तहत कोई दो साक्ष्यों सहित अधिकार प्रपत्र (क),(ख) भर कर दावा पेश करें। कानून के मुताविक जिन लोगों के दावे वन अधिकार समिति के पास दर्ज हो जाते हैं, उन पर बेदखली तब तक नहीं हो सकती जब तक दावों की मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है।
- हिमाचल सरकार को चाहिए कि न्यायलय में यह दलील पेश की जाए की वन अधिकार कानून के तहत अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया अभी चल रही है इसलिए जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती तब तक वन अधिकार कानून के मुताविक बेदखली नहीं की जा सकती है।
- प्रदेश सरकार वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए विशेष अभियान चलाए तथा वन अधिकार के समुदायिक व निजी वन अधिकार के पट्टे आदिवासी व अन्य वन निवासियों को तुरंत प्रदान करवाए।
- Constitute a Joint FRA implementation team of civil society and government under the leadership of Minister of Tribal dept. HP. प्रदेश सरकार को आदिवासी विभाग के मंत्री के नेतृत्व में ऐसे जन संगठनों, जो कई सालों से वनाधिकार कानून को लागू करने के लिए काम कर रहे हैं के साथ मिल कर कानून लागू करने के लिए एक टीम बनानी चाहिए । इस में हिमालय नीति अभियान, हिम लोक जागृति मंच कनौर, हिम धरा पालमपुर, किसान संगठनों, ज्ञान विज्ञान समिति तथा अन्य वे सभी संगठन, जो वनाधिकार कानून को लागू करने के कार्य में लगे हैं को शामिल किया जाना चाहिए।सरकार को इन संगठनों के साथ विमर्श करना चाहिए और एक संयुक्त मंच गठित किया जाए, तभी यह कार्य न्यायपूर्ण तरीके से पुरा किया जा सकता है।
Guman Singh
coordinater,
Himalya Niti Abhiya,
Village Khundan, PO. Banjar, Kullu, HP.
Phone: 8219728607
31st March, 2025