देवभूमि न्यूज 24.इन
प्राईमरी कक्षा को पढ़ाते-पढ़ाते मास्टर नन्दलाल जी विद्यार्थियों को समय का सदुपयोग करने की सीख दे रहे थे। विद्यार्थी खुसर-पुसर करने लगे थे कि यह जिंडा,दयालु, चींचला व टोडर कभी सुधरने वाला नहीं है। मास्टर जी की दृष्टि उन पर पड़ चुकी थी। मास्टर नन्दलाल जी ने जब पूछा तो सभी खिलखिलाकर हंसने लगे थे। श्योक राम अग्रिम पंक्ति में बैठा था। वह कहने लगा कि गुरूजी यह जिंडा कोटली को भारत की राजधानी बताता है।कोटली को ही हिमाचल की राजधानी बतलाता रहता है। यह बिल्कुल भी मानता नहीं है। सभी जोर जोर से हंसने लगे थे। मास्टर नन्दलाल जी ने इसके बारे विस्तृत खुलासा करवाना चाहा तो सभी सहपाठियों ने अपनी अपनी समस्याओं का ताना बाना छेड़कर माहौल को बहुचर्चित कर दिया था। जिंडा को लेकर श्योक राम और मंजु ने मास्टर नन्दलाल जी को बतलाया था कि वह अपने गांव रछौड़ा से आकर पटनाल गांव समीप घरवाण स्कूल की टटमोर और दडवे बावड़ी के पीछे बाखली के पुराने सलोटों के पीछे छुपा रहता है। कार्तिक मिस्त्री ने पटनाल में बन रही गौशाला के लिए बड़ा सलोट चक्का मंगवाया तो वहां जिंडा बरामद हो गया था। खैर मास्टर नन्दलाल जी ने जिंडा को उसके वास्तविक नाम जीवनलाल से ही पुकारने की हिदायत दे डाली थी। पहले पहल देहात में नामकरण की अजीबो-गरीब प्रक्रिया अमल में लाई जाती थी। हिन्दू देशी बारह महीनों से नाम रख दिए जाते थे। यही नहीं महीनों के नाम से चैत्रू, वैशाखू,आषाढू ( हाड़ू) श्रावणू के साथ साथ सप्ताह के सोम,मंगल,बुध,वीर,शुक्र,शनि और रवि नामकरण का भी आम रिवाज प्रचलित था। निरक्षरता बहुत ज्यादा थी। हमारे गांव का बुजुर्ग पूर्ण चंद काश्तकार कहता था कि उसकी सारी उम्र काश्तकारी में व्यतीत हो गई, उसने कभी स्कूल जाकर नहीं देखा था। गांव से शहर तक पहुंचना विदेश यात्रा के बराबर था। भारत की आजादी प्राप्त होने पर भी साक्षरता बड़ी मध्यम गति पकड़ रही थी। गांव के पास दो विकल्प उपलब्ध थे। सर्वप्रथम अपनी जमीनों की खेतीबाड़ी करो या फौज में भर्ती हो जाओ का एकमात्र विकल्प था। तल्याड़ से आने वाले नन्दलाल मास्टर जी ने घरवाण प्राईमरी स्कूल में शैक्षणिक ढांचे को सुदृढ करवाने में एक जबरदस्त शैक्षिक सूत्रपात करवाया था। दस मील दूर से पैदल आते गुरूजी नन्दलाल रास्ते में त्रोकड़ा नाल स्थित त्रोकड़ा भगवती परिसर में साफ सफाई करते तदुपरांत कसाण-पटनाल के रास्ते घरवाण प्राईमरी स्कूल के रास्ते बरसात की उगी झाड़ियों को भी साफ करके विद्यार्थियों का रास्ता साफ करते थे। उन दिनों घरवाण प्राईमरी स्कूल के सहपाठी भी प्रेरित होकर झाड़-झफाड़ साफ करने लगे थे। इनमें श्योक राम और मंजु नामक सहपाठी काफी सक्रिय थे।उसी समय मिडल स्कूल कोटली के श्री जिंदू राम
पीईटी आ गए थे। जिंदूराम शारीरिक शिक्षा अध्यापक ही नहीं अपितु बहुत ही ज्ञानवान सख्सियत के स्वामी थे।वह बच्चों में सद्-संस्कारों का आदान-प्रदान भी करवाते थे।
उन्होनें बहुत बार प्राईमरी के विद्यार्थियों को भी खेल क्रीडा सिखलाई थी। हालांकि वह ऐसा करने के बाध्य नहीं थे किंतु कल्याणार्थ वह बहुत कुछ करना चाहते थे।
कालान्तर में पूर्ण चंद का लड़का श्योक राम पुलिस की नौकरी हासिल करने में कामयाब हो गया था। गांव और शहर का फासला पंद्रह मील था जो कि कालान्तर में बस सुविधा से बाईस किलोमीटर बना था। बस के इंतजार में बहुत दशक बीते थे।
श्योक राम को तुंगल घाटी के गांवों की पथरीली पगडंडियों को लांघकर अपनी पुलिस लाईन पड्डल मैदान तक पैदल नगर पहुंचना पड़ता था।यह बड़ा दुर्गम एवं जटिल संघर्ष का दौर था। इस दौरान तुंगल की पैर- घास की घासणियों के बीचो-बीच पगडंडियों में निर्जन स्थानों में हिंसक जंगली जानवर भी प्राय: मिल जाया करते थे। अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस कर्मी श्योक राम अपनी पुश्तैनी टोपीदार बंदूक लेकर चलता था। नगर पहुंच कर अपने जान पहचान के ठिकानों टोंही राम पंडित के घर पलाखा, कुल पुरोहित के घर समखेतर, डागू राम के ढाबे पर,विचित्र सिंह की पड्डल रोड की दुकान पर या कीर्ति नन्द पंडित के पास कालेज के पीछे घर अथवा दुकान में सुरक्षित रखवा देता था। छुट्टी पर पुन: बंदूक थामे तुंगल घाटी का रास्ता तय कर लिया जाता था।
ऐसे में श्योक राम के मिलनसार स्वभाव के चलते तुंगल और शहर में अच्छी खासी पहचान कायम हो चुकी थी। छुट्टी व फुर्सत के समय मित्रों संग जंगली जानवरों के शिकार का भी शौक पलता था। उन दिनों जंगली जानवरों के शिकार की इतनी ज्यादा वंदिश नहीं हुआ करती थी। वन विभाग का कोई भी नामोनिशान तुंगल घाटी में नहीं था। ग्राम पंचायत अपने स्तर पर शहर के पौधारोपण इत्यादि का अभियान चलाती थी। आवागमन में घोड़ों के मार्ग बनने से थोड़ा-बहुत व्यापारिक आदान प्रदान प्रारम्भ हो चुका था।श्योक राम गांव की मिट्टी से जुड़ा हुआ था। ग्रामीण परिवेश की तमाम गतिविधियों में गांववासियों का जबरदस्त एक्का था। तुंगल घाटी में सम्पादित होने वाले जन्म से मरण तक के सोलह संस्कारों में ग्रामीण एक जुट होकर शरीक होते थे। यह एक जबरदस्त इतफाक अनवरत चला आ रहा था। तुंगल घाटी में संक्रांत (साज्जा, मासांत, बाही (संक्रांत का दूसरा दिन) इनका महत्वपूर्ण आयोजन होता था। आषाढ संक्रांत (बकर-याला साज्जा) का त्योहार सचमुच अविस्मरणीय रहता था।
श्योक राम के मन मस्तिष्क पर इन ग्रामीण परिवेश के त्योहारों की स्मृतियां सदैव तरो-ताजा रहती थी। नगर में पुलिस नौकरी के चलते ग्राम्य परिवेश लुप्त होता जा रहा था। ग्राम्य जीवन में श्योक राम को कामरेड धनीराम ठाकुर की स्वतंत्र विचारधारा का खासा प्रभाव पड़ा था। श्योक राम को इल्म था कि ठाकुर धनीराम तुंगल घाटी का विकास चाहते हैं। श्योक राम कामरेड धनीराम का पक्का चेला बनकर उनकी नीतियों का अनुसरण करने लग पड़ा था। पुलिस की सरकारी नौकरी के चलते इस काम में शिथिलता स्वभाविक बन चुकी थी। सत्तारूढ पार्टी को श्योक राम की अप्रत्यक्ष राजनीतिक गतिविधियों की भनक लग चुकी थी। नेतागिरी के चम्मचों ने अपने राजनीतिक आकाओं के कान भरना शुरु कर दिया था। अविवाहित पुलिस कर्मी श्योक राम का वैवाहिक रिश्ता करवाने में भी ओहछी राजनीति के हथकंडों का खलल बाधायें डाल रहा था। यही नहीं श्योक राम की पुश्तैनी जमीन को रिश्तेदारों के साथ गठमेल करके बेच-बिक्री का नया अध्याय भी शुरु हो चुका था। सियासी प्रभाव के चलते चम्मचों ने श्योक राम के हिस्सेदारों से जमीन खरीद कर सारी जमीन पर कब्जा करने का महा- अभियान छेड़कर जबरदस्त षड्यंत्र रचा दिया था। इस षड्यंत्र के चलते पुलिस कर्मी श्योक राम का तबादला दूर दराज लाहौल स्पिति करा दिया गया था। धनीराम ठाकुर ने उस समय के दिग्गज मंत्री कर्म सिंह ठाकुर से श्योक राम का तबादला रुकवाने का भरसक प्रयत्न किया किन्तु सत्तारूढ दल के चम्मचों ने तत्कालीन मुख्य मंत्री डाक्टर
वाई0एस0 परमार से श्योक राम को लाहौल स्पिति को जबरन तबादला करा दिया था।
श्योक राम ने अपनी जमीन पर पोल्ट्री फार्म चलाया हुआ था,उसे बंद करना अब मजबूरी थी। यही नहीं दो भैंसे, चार गायें और बैलों की जोड़ी को बेचना पड़ा था। एक उम्दा नस्ल का घोड़ा बादशाह को भी पड़ोस में दे दिया था।
श्योक राम की मंगेतर मधु अपने भावी जीवन साथी के भविष्य को लेकर चिंतित हो उठी थी। मधु ने अपने पिताजी जोगिंदर सिंह से जिद्द कर डाली थी कि वह श्योक राम से ही विवाह करेगी।
उसने श्योक राम के लाहौल स्पिति में पुलिस नौकरी कार्य भार ग्रहण करने से पहले ही विवाह सम्पन्न करवाने की पुरजोर कोशिश करवा डाली थी।
परिणामस्वरूप श्योक राम और मधु का विवाह सम्पन्न हो गया था।
एक सप्ताह के भीतर ही मधु और श्योक राम लाहौल स्पिति में पहुंच गए थे। यहां पर भी गुरूजी नन्दलाल जी का रास्ता साफ करने का अभियान दोनों श्योक राम और मंजू चला देते थे। यहां का रास्ता बर्फानी था। अपनी कॉलोनी का दोनों रास्ता सुबह शाम काफी हद तक सभी के लिए तैयार कर देते थे। दो साल बाद जब श्योक राम का तबादला राजधानी शिमला में हुआ तो वहां भी रास्ता साफ करो अभियान जारी रहता था। श्योक राम की अधिकांश नौकरी का लगभग सारा कार्यकाल शिमला में ही व्यतीत हो गया था। श्योक राम साधारण पुलिस कर्मी से हवलदार व इंस्पैक्टर बनने की ओर अग्रसर था। स्टाफ के समकालीन श्योक राम का उपहास उड़ाते थे कि वह तो सफाई कर्मचारी है। उसकी धर्म पत्नी मंजु भी स्वीपर है। मंजू और श्योक राम को इन चर्चाओं की कोई परवाह नहीं थी। श्योक राम और मंजु का सम्पर्क तुंगल घाटी से लगातार बना रहा था। शिमला में तीस साल व्यतीत हो चुके थे। मुश्किल से तीन साल की नौकरी शेष रह गई थी। श्योक राम और मंजु के लड़का-लड़की समरहिल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। दोनों बेटा बेटी अभिषेक और कीर्ति अपने माता पिताजी को समरहिल के पास जाने वाले रास्ते को साफ करने से रोक देते थे। श्योक राम और मंजु दोनों समय निकालकर बरसात का झाड़ -झफाड़ साफ कर देते थे ताकि पैदल चलने वालों को कठिनाई आड़े ना आने पाए।
श्योक राम के खिलाफ विभागीय व गांव के षड्यंत्रकारी रिश्तेदारों ने एक सोची समझी साजिश के तहत अफीम- गांजा के झूठे केस में रंगे हाथों गिरफ्तार करा दिया था।
इस घटनाक्रम के चलते श्योक राम को पुलिस विभाग से निलंबित कर दिया गया था।
श्योक राम ने कानून की लम्बी लड़ाई जारी रखी थी।
इस बीच श्योक राम की सेवानिवृत्त होने का समय भी इसी कानूनी कशमकश में निकल चुका था। सभी जगह श्योक राम का ” रास्ता साफ करने वाला चोर” कहकर उपहास उड़ाया जाता था।
श्योक राम को अपने गुरुजी नन्दलाल जी की सभी सीखें अच्छी तरह मानस पटल पर बरकरार थी।
वह सत्यमेव जयते के सिद्धांत पर अडिग था।सालों साल अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते -लड़ते वह उच्च न्यायालय से अपने को निर्दोष साबित करने में कामयाब हो गया था। उसने अपनी धर्म पत्नी मंजु और बेटा बेटी अभिषेक व कीर्ति को संभाल लिया था। सारा परिवार अपने पुश्तैनी गांव तुंगल घाटी पहुंच गया था।
सफेद चमचमाती कार से श्योक राम व मंजू घरवाण स्कूल के पास पहुंच चुके थे। दोनों ने देखा कि घरवाण स्कूल से पटनाल कसाण गांव की ओर रास्ते में काफी झाड़ झफाड़ उग आई
थीं । दोनों ने कार वहीं किनारे खड़ी करके रास्ता साफ करना शुरु कर दिया था। अपने घर तक पहुंचते- पहुंचते सांझ ढलने लगी थी। दड़बे-टटमोर की बावड़ी समीप पीपल ब्रह्म के दर्शन होने के साथ-साथ पुराने सहपाठी नजर आने लगे थे। घरवाण स्कूल की यादें तरो-ताजा होने लगी थ
श्योक राम और मंजु नें एक एनजीओ की स्थापना कर डाली थी।
अभिषेक और कीर्ति दोनों बच्चे शिमला में नौकरी करते है। अभिषेक की पत्नी और उसकी बहन कीर्ति का पति भी आजकल शिमला में ही सरकारी सेवारत है।
राजीव शर्मन
अम्बिकानगर-अम्ब कालोनी
रेलवे स्टेशन रोड़ क्रासिंग ब्रिज समीप समादेशक गृह रक्षा वाहिमी कार्यालय,अम्ब-177203
- + +