श्री हरि- चौकीदार।(कहानी)

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-राजीव शर्मन अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी,समीप रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिज अम्ब तहसील अम्ब-177203 जिला ऊना-हिमाचल प्रदेश।

*देवभूमि न्यूज 24.इन*

शहर के वरिष्ठ साहित्यकार पंडित भवानी दत्त शास्त्री जी ने अपने प्रिय शिष्य हरिराम को सुसंस्कृत किया था। पारिवारिक कारणों से हरिराम जयादा पढ़ाई-लिखाई नहीं कर पाया था। हरिराम को जब कभी समय मिलता वह शहर के महाजन बाजार में स्थित माता भुवनेश्वरी देवी जी के मंदिर में पूजा करने वाले पंडित भवानी दत्त शास्त्री जी की सेवा में उपस्थित होकर ज्ञान अर्जित करता रहता था।होल्टा वर्क शाप पालमपुर से सेवानिवृत होने उपरांत श्री हरिराम चौकीदार ने अपने पारिवारिक भरण पोषण हेतु अपना पुश्तैनी कर्मकांड बतौर रसोईया धंधा अपना लिया था। पहाड़ी प्रदेश में सालोंसाल विभिन्न मानवीय संस्कारों में जन्म से मरण तक रसोईया की भूमिका अहम व सराहनीय रहती आई है। जब कभी सरकारी नौकरियां नहीं होती थी तो रसोई पकाने वाले रसोईया बरसरो रोजगार में संलग्न रहते थे। जयसिंह ठेकेदार ने श्री हरिराम पर अनुग्रह करते हुए इंडो जर्मन ऐग्रो कार्पोरेशन में उसको चौकीदार नियुक्त करा पुन्य अर्जित किया था। इससे पूर्व श्री हरिराम के सात पीढ़ी दर पीढ़ी रसोईया का कार्य सम्पादित करती आ रही थी। गांव और शहर के अधिकांश मकान कच्चे सलोटपोश ही हुआ करते थे। शहर में गिने चुने नामी ठेकेदारों के ही मकान पक्के थे।
हरिराम ने सेवानिवृत्त होने के बाद अपने मकान को पक्का बनवाने की जुगत भिड़ाई तो पड़ोसी घमंड चंद ने कानूनी पेचा लड़ाई खड़ी कर दी थी। दरअसल घमंड चंद के सारे मकान की पानी निकासी हरिराम के घर आंगन में होती थी। हरिराम के मकान का पक्का होना घमंड चंद को कतई रास नहीं आ रहा था। एक सोची समझी साजिश एवं रणनीति के अन्तर्गत घमंड चंद ने हरिराम के गांव में रहने वाले चचेरे भाईयों से सम्पर्क साधकर उनका शहर के मकान का आधा हिस्सा रजिस्ट्री के माध्यम से खरीद लिया था। इससे हरिराम की मुसीबत बढ़ने लगी थी। हरिराम ने गांव जाकर अपने चचेरे भाईयों को काफी हद तक मनाने की कोशिश की कि उसकी भी तो गांव में आधी जमीन है। वह शहर की जमीन की एवज में अपने हिस्से की गांव की जमीन के साथ-साथ उनको एक लाख रुपए तक देने के लिए तैयार था किन्तु उसकी पेशकश ठुकरा दी गई थी। हालाकि घमंड चंद ने शहर की जमीन की पच्चीस हजार रुपए की रजिस्ट्री करवाई थी। हरिराम जब अपने कच्चे गिरते मकान के कमरे को पक्का करवाने का निर्माण कार्य शुरु करता तो घमंड चंद तुरन्त कोर्ट का स्टे आर्डर लेकर काम रोक देता था। हरिराम का एक मात्र लड़का कुलभूषण बकील बन चुका था। उसकी शहर में बकालत के माध्यम से कानूनी मामलों में अच्छी पकड़ होने लगी थी। सूझ-बूझ से कुलभूषण ने घमंड चंद का कानूनी स्टे टूट चुका था। कुलभूषण ने एक सप्ताह के भीतर दूसरी मंजिल पर पकका सैलाब डाल कर घमंड चंद को आहत कर दिया था। हरिराम और घमंड चंद का जगह को लेकर दीवानी मुकद्दमा लम्बा खींचता जा रहा था। घमंड चंद का लड़का कन्हैयालाल भी बकील व कुलभूषण का ही सहपाठी था। कुलभूषण ने कन्हैयालाल के माध्यम से पच्चीस हजार की रजिस्ट्री के लिए चार गुणा एक लाख रुपए का आफर दिया किन्तु घमंड चंद इसको मंजूर नहीं करता था। कानूनन तौर पर वह हरिराम के मकान पर कब्जा करना चाहता था। घमंड चंद इसमें सफल नहीं हो पा रहा था। वास्तव में गांव में पच्चीस हजार की रजिस्ट्री में कुछ हिस्सेदारों को रजिस्ट्री का पैसा ना मिलने से मामला गड़बड़ झाला हो गया था। गांव के एक चचेरे भाई लालमण को कुलभूषण ने काबू कर लिया था। इससे शहर की अदालत में जनेश्वर गोयल की अदालत में घमंड चंद का मुकद्दमा खारिज हो गया था। कन्हैयालाल की बहन भारती का कुलभूषण से अच्छा मेल- मिलाप अब बाधा बन चुका था। दोनों कुलभूषण और भारती कालेज समय के अच्छे मित्र थे। दोनों का विवाह करने का इरादा अब स्वप्न बन कर रह गया था। घमंड चंद और हरिराम की कानूनी कशमकश के चलते दोनों ने अलहदगी करके किनाराकसी कर ली थी। दुर्भाग्यवश एक घटनाक्रम में घमंड चंद के इकलौते बेटे कन्हैयालाल की एक सड़क दुर्घटना में दुखद मृत्यु हो गई थी।
इस हृदयविदारक घटना उपरांत सारा मुकद्दमाबाजी परिवेश थम चुका था।घमंड चंद की धर्मपत्नी तारा पुत्र वियोग से ट्रामा में चली गई थी। वह अपने पुराने सुखद समय जो कि उसने हरिराम चौकीदार की धर्मपत्नी अपनी सहेली कृष्णा के साथ साथ व्यतीत किया को याद करके फूट फूट कर विलाप करती थी। स्थानीय कुल पुरोहित पंडित जयकृष्ण जी ने घमंड चंद और कृष्णा को पश्चाताप व उनके दिवंगत पुत्र कन्हैयालाल की आत्मिक सद्गति के लिए श्री हरिराम के पुत्र कुलभूषण से उनकी सुपुत्री भारती का विवाह करके सभी पापों को धोने का सद्परामर्श दे डाला था। इसको सहर्ष स्वीकार करके घमंड चंद ने भारती और कुलभूषण का विवाह सम्पन्न करा दिया था। महा-शिवरात्रि पर्व पर शहर में सैंकड़ो देवी -देवताओं का शुभागमन पर घमंड चंद और कृष्णा ने हजारों देवलुओं को पहाड़ी धाम का आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न करवाया था। सारे मनमुटाव व पाप नष्ट हो चुके थे। गांव व शहर के चचेरे भाईयों में पुन: प्यार का सागर उमड़ आया था।
घमंड चंद और कृष्णा ने सारी चल अचल सम्पति कुलभूषण व भारती के नाम कर दी थी।

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