विजय हाई स्कूल का असली रिकार्ड।(कहानी)-राजीव शर्मन्

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अम्बिकानगर-अम्ब-177203
ऊना-हिमाचल। दूरभाष: 8219899345

  *देवभूमि न्यूज 24.इन*

विजय हाई स्कूल की काष्ठ नुमा इमारत रियासतकालीन राजाओं की आम जनमानस के लिए बहुत बड़ी ऐतिहासिक सौगात मानी जाती है। तत्कालीन राजा स्वर्गीय जोगिंदर सेन स्वयं इस काष्ठनुमा स्कूली इमारत में पढ़े थे। इस इमारत की कई मधुर स्मृतियां हजारों सहपाठियों से जुड़ी रही है। यहां से पढ़ाई-लिखाई किए हुए छात्रों ने देश-विदेश में अपनी खूब धाक जमाई । इनमें रवि टिक्कू का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। साठ- सत्तर का दशक हेडमास्टर राजेंद्र अरोड़ा के नाम से चलचित्र की तरह घूमता रहता है। यहां विजय हाई स्कूल से टारना माता की पहाड़ी शिखर पर घूमना आज भी अविस्मरणीय है।मानवीय जीवन के कई अविस्मरणीय रिकार्ड होते है। इनमें जीवन के तमाम क्रिया-क्लाप व छोटे बड़े अनगिनत घटनाक्रम बनते बिगड़ते है। यह जीवन की खुली किताब उम्र दर उम्र बुढ़ापे की ओर सरकती रहती है किन्तु मानस पटल पर पुरानी यादें हमेशा-हमेशा के लिये बनी रहती है। हमारे परिवेश में देशकाल, वातावरण ,स्थान परिवर्तन का इन घटनाओं की याद मिटाना असम्भव होता है।

बड़े महानगर में बृजमोहन का बड़ा होटल है। यहां आराम का समय मिलना भी मुश्किल है किंतु बृजमोहन होटल का काम संचालित करते-करते पुरानी इमारती लकड़ी से निर्मित अपने पुराने स्कूल में पहुंच गया है। यहां पुरानी मंडी की टीचर राधा मैडम की प्राईमरी क्लास लगी है। लिखित सालाना इम्तिहानों की समाप्ति है। कल क्राफट व मनोरजंन का मौखिक इम्तिहान होगा। इसी को लेकर अध्यापिका छात्रों को दिशा-निर्देश दे रही है। क्राफट इम्तिहान में मिट्टी के खिलौने ,मालायें,शिवजी गणपति की मूर्तियों को बनाया जाता था। नेताओं का बड़ा चार्ट खरीद कर उनके चित्र काट-काट कर ड्राईंग की कापी में चश्मानित कर देते थे। कभी-कभी तितलियों को पकड़-पकड़ कर उन्हें मार कर रंगविरंगी तितलियों की एलबम भी बनाई जाती थी। बृजमोहन को तितलियों को मार कर एलबम में सजाना बिल्कुल भी पसन्द नहीं था। वह अति संवेदनशील था।वह तितलियों को पकड़-पकड़ कर मारने वालों के प्रति उदंड हो जाता था। वह सभी सहपाठियों पर पूरा नियन्त्रण रखता उसकी गुणवता देखते हुये उसे कंट्रोल मोनीटर नियुक्त किया था। राधा टीचर ने नैतिकता व संघर्षशील रहने की कई सरल कहानियां पाठ्यक्रम से अतिरिक्त बृजमोहन व उसके सहपाठियों को सुनवाई थी। बृजमोहन ने उन्हीं कहानियों की सीख लेकर अपने जीवन का मुकाम हासिल किया। बृजमोहन सभी सहपाठियों पर पैनी नजर रखता था। बृजमोहन को पढाई-लिखाई में ज्यादा रूचि नहीं थी। आगे की क्लासों के प्रभारियों ने दो वर्ग बना लिये थे। एक तरफ बृजमोहन,राजेन्द्र, भारत भूषण,प्रवीन,शेर सिंह,योगराज इत्यादि थे। दूसरी ओर अनिल कुमार,विवेक,किशोरी लाल, शमशेर सिंह, इन्द्रदेव थे। बृजमोहन ने अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल करके अपने बारे में की गई अध्यापक-अध्यापिकाओं की विभिन्न टिप्पणियों को गलत सिद्ध कर दिया था। बृजमोहन को सफलता दिलवाने का प्रमुख श्रेय राधा मैडम का ही था। बृजमोहन उस समय के सुखद अतीत में खो जाता है। वह आज भी छोटी-बड़ी टारना मंदिर में अपने सहपाठियों संग धमाल मचाता है। कभी मंदिर की पौड़ियों वाले मार्ग कभी सड़क वाले लम्बें मार्ग से श्री सिद्ध श्यामाकाली -टारणा माता मंदिर की ओर विचरण करने लगता है। यहां से सारा शहर दृष्टि गोचर होता है। पूर्व में पड्डल मैदान नजर आता है,पश्चिम में श्री सिद्ध गणपति की पहाड़ियों पर हरी-भरी बनस्पति है। उत्तर दिशा में सदियों से अनवरत बहती व्यास -गंगा दरिया की धारा है। दखिण में विहंगम मोतीपुर धार नजर आती है। बड़े शहर की चकाचौंध छोटी काशी मंडी शहर के आगे फीकी पड़ जाती है। बृजमोहन को अपने तमाम सहपाठी याद है। सहपाठियों के साथ-साथ शहर के प्रसिद्ध दुकान दार व्यापारी सरदार जयमल सिंह,सन्तोख सिंह,गुरदेव राम टेकचंद,चौहट्टा बाजार के अमृतलाल,ठाकरदास -मेघ सिंह,नन्द कुमार-निध्धूराम,सिद्धू राम आढ़ती,चंद्रलोक,कृपाराम, शरणदास हलवाई,प्रसिद्ध पानवाड़ी केसर-बेसर,वेदप्रकाश-परमानन्द आदि-आदि भी मानस पटल पर तरो-ताजा है। जब कभी बृजमोहन के बड़े होटल महानगर में कोई मंडी शहर का आदमी गाहे-बगाहे मिल जाता है तो वह अपने पुराने शहर के १३ वार्डों का असली रिकार्ड तलब कर लेता है। पुरानी मंडी के डा० विजय विशाल ,अमृत अकेला,योगराज,मुरारीलाल शर्मा, भूषण कौशल,ब्रजेश बहल,राकेश वैद्य,चन्द्रशेखर,राजेन्द्रमोहन,शमशेर सिंह,विवेक वैद्य,मुनीन्द्रपाल से लेकर नये-पुराने सहपाठी अथवा तत्कालीन,समकालीन सभी का सुख-शांत पूछता है। बृजमोहन के पूर्वज राजस्थान से आकर मंडी में व्यापार करने लगे थे। इसी व्यापार का विभाजन होने से महानगर को पलायन करना पड़ा था।अपने बचपन के बिताये हर लम्हे को याद रखना बृजमोहन की दिनचर्या में सम्मिलित है। जब कभी महानगर से आने वाले मंडी शहर के जान पहचान के लोगों से बृजमोहन की सद्भावना संदेशों के चलते हमारी मित्र-सज्जन टोली ने महानगर जाकर बृजमोहन से मिलने का निर्णय लिया। हम सभी पुराने सहपाठियों ने निर्णय लिया कि हम छद्म वेशधारी बनकर बृजमोहन के होटल महानगर में दस्तक देगें। हमारी मित्र-सज्जन टोली के दस -बारह मित्र महानगर घूमने निकल पड़े। हमने बृजमोहन का होटल तलाश कर लिया था। हमने तो कमरे किराये पर लिये। हमने ठेठ् हिन्दी भाषा का इस्तेमाल किया। होटल का मालिक बृजमोहन व उसके मैनेजर को हमने अपने मंडयाल होने तक की भनक ना होने दी। बृजमोहन सभी दोस्तों के बीच में मेरे पर नजर गड़ाकर देखने लगता मैं अन्जान बन जाता था। हम दो दिनों तक उसके होटल महानगर में ठहरे रहे। तीसरे दिन सुबह हमने बृजमोहन के मैनेजर को होटल का किराया व खाने-पीने का बिल मांगा। वह बिल बना रहा था। हम सभी सहपाठियों को करीब 45 साल बाद वृजमोहन को देखने का मौका मिला था। जैसे ही वृजमोहन बाहर रिसैप्शन में आया। हमारे एक दोस्त भारत भूषण के मुख से निकल पड़ा!”होर बृजू! क्या हाल तेरे!! आरा खूबमोटा हुई कई रा, बड्डी भारी तोंद बधाई लई री” बस फिर क्या था। हम सभी छद्म वेशधारी सहपाठी पकड़े गये। वृजमोहन ने एक एक करके सबको पहचान लिया था। उस दिन वापिस आने का हमारा कार्यक्रम वृजमोहन ने रद्द कर दिया था। हम दसवीं क्लास के विदाई समारोह में जैसे बिछुड़ने पर रोये थे। आज ठीक उसी तरह एक दूसरे को गले लगाकर रोये। सारी रात पुरानी स्कूल की यादें ताजा हो गई थी। सचमुच में यही हम सभी सहपाठियों की सच्ची रिश्तेदारी हुआ करती थी। आज महानगर होटल में वृजमोहन से मिलकर यह पुन: सत्य सिद्ध हो गया था कि सहपाठी होने का असली रिकार्ड ताजीवन बरकरार रहता है। महानगर की भागदौड़ व भगदड़ बचपन के सच्चे रिकार्ड को विचलित नहीं कर सकती है।