देवभूमि न्यूज 24.इन
मारकंडेय पुराण में वर्णित कथानक ही देवी मृतिका मूर्ति पूजा का आधार है। परब्रह्म परमात्मा सर्वविश्व में निहित है। इसलिए मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा कर मूर्ति का प्रचलन अनादि काल से चला आ रहा है। वेदों की ऋचाओं में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि, आकाश में निहित प्राण सत्ता में ईश्वरीय सत्ता की अभिव्यक्ति है।
पौराणिक युग में इसे विग्रह के रूप में स्थापित कर पूजन प्रारंभ हुआ। मारकंडेय पुराण के अनुसार राजा और वैश्य जो महामोह से ग्रसित थे, देवी की मूर्ति बनाकर आराधना करने लगे। राजा को राज्य व वैश्य को ज्ञान की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार वह देवी लौकिक व पारलौकि दोनों अभिष्टों को प्रदान करने वाली मानी गई
मनोवैज्ञानिकों का कहना हैं के आस्था एवं भावना को उभरने के लिए व्यक्ति मूर्ति चित्र प्रतीक के लिए चाहिए, आराधिया की मूर्ती की पूजा करके मनुष्य उसके साथ मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध स्थापित करता हैं।

साधक जब तक मन को वश में कर स्थित नहीं लेता तब तक उसे पूजा का पूर्ण लाभ नहीं मिलता हैं,इसलिए मूर्ति की आवष्यकता पढ़ती हैं, इसमें वह असीम सत्ता के दर्शन करना चाहता हैं और अपनी धार्मिक भावना को विकसित करना चाहता हैं।
भगवान की भव्य मूर्ती के दर्शन कर यजमान ह्रदय में उनके गुणों का स्मरण होता हैं और मन को एकाग्र करने में आसानी होती हैं जब भगवान की मूर्ती ह्रदय में में अंकित होकर विराजमान हो हो जाती हैं,तो फिर किसी मूर्ती की आवष्यकता शेष नहीं रह जाती इस तरह मूर्ति पूजा साकार से निराकार की और ले जाने का एक साधन हैं,
जो व्यक्ति किसी कारण निराकार ईस्वर का चिंतन नहीं क्र पाते हैं, उन साधकों के लिए मूर्ती पूजा उपयोगी हैं, उससे उनकी मानसिक उन्नति भी होती हैं, उनका चिंतन करने से वे दिव्य गुण मनुष्य में अपने -आप विकसित होने लगते हैं, हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने देवी देवताओं की मूर्तियों में ईश्वर की हर गुप्त शक्ति को प्रतीकों के माधियम से प्रकट किया हैं
उल्लेखनीय हैं की भगवान की प्रतिमा में शक्ति का अधिष्ठान किया जाता हैं प्राणप्रतिष्ठा की जाती हैं अथर्ववेद में प्राथना हैं – हे भगवान, आइये और इस पत्थर की बनी मूर्ति हो जाएँ,?
जय श्री राम
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
*नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान