संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण

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✍️देवभूमि न्यूज 24.इन

वैशाखमास-महात्म्य
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धर्मवर्ण की कथा, कलि की अवस्था का वर्णन, ध र्मवर्ण और पितरों का संवाद एवं वैशाख की अमावास्या की श्रेष्ठता…(भाग 1)

मिथिलापतिने पूछा- ब्रह्मन् ! इस वैशाख मासमें कौन-कौन-सी तिथियाँ पुण्यदायिनी हैं?

श्रुतदेवजी बोले-सूर्यके मेष राशिपर स्थित होनेपर वैशाख मासमें तीसों तिथियाँ पुण्यदायिनी मानी गयी हैं। एकादशीमें किया हुआ पुण्य कोटिगुना होता है। उसमें स्नान, दान, तपस्या, होम, देवपूजा, पुण्यकर्म एवं कथाका श्रवण किया जाय तो वह तत्काल मुक्ति देनेवाला है। जो रोग आदिसे ग्रस्त और दरिद्रतासे पीड़ित हो वह मनुष्य इस पुण्यमयी कथाको सुनकर कृतकृत्य होता है। वैशाख मास मनसे सेवन करने योग्य है; क्योंकि वह समय उत्तम गुणोंसे युक्त है। दरिद्र, धनाढ्य, पंगु, अन्धा, नपुंसक, विधवा, साधारण स्त्री, पुरुष, बालक, युवा, वृद्ध तथा रोगसे पीड़ित मनुष्य ही क्यों न हो, वैशाख मासका धर्म सबके लिये अत्यन्त सुखसाध्य है। परम पुण्यमय वैशाख मासमें जब सूर्य मेष राशिमें स्थित हों, तब पापनाशिनी अमावास्या कोटि गयाके समान फल देनेवाली होती है। राजन् !

जब पृथ्वीपर राजर्षि सावर्णिका शासन था, उस समय तीसवें कलियुगके अन्तमें सभी धर्मोका लोप हो चुका था। उसी समय आनर्त देशमें धर्मवर्ण नामसे विख्यात एक ब्राह्मण थे। मुनिवर धर्मवर्णने उस कलियुगमें ही किसी समय महात्मा मुनियोंके सत्रयागमें सम्मिलित होनेके लिये पुष्कर क्षेत्रकी यात्रा की। वहाँ कुछ व्रतधारी महर्षियोंने कलियुगकी प्रशंसा करते हुए इस प्रकार कहा था- ‘सत्ययुगमें भगवान् विष्णुको संतुष्ट करनेवाला जो पुण्य एक वर्षमें साध्य है, वही त्रेतामें एक मासमें और द्वापरमें पंद्रह दिनोंमें साध्य होता है; परंतु कलियुगमें भगवान् विष्णुका स्मरण कर लेनेसे ही उससे दसगुना पुण्य होता है। कलिमें बहुत थोड़ा पुण्य भी कोटिगुना होता है। जो एक बार भी भगवान्‌का नाम लेकर दयादान करता है और दुर्भिक्षमें अन्न देता है, वह निश्चय ही ऊर्ध्वलोकमें गमन करता है।’ -यह सुनकर देवर्षि नारद हँसते हुए उन्मत्तके समान नृत्य करने लगे। सभासदोंने पूछा-नारदजी! यह क्या बात है?’ तब बुद्धिमान् नारदजीने हँसते हुए उन सबको उत्तर दिया-आपलोगोंका कथन सत्य है। इसमें सन्देह नहीं कि कलियुगमें स्वल्प कर्मसे भी महान् पुण्यका साधन किया जाता है तथा क्लेशोंका नाश करनेवाले भगवान् केशव स्मरणमात्रसे ही प्रसन्न हो जाते हैं। तथापि मैं आपलोगोंसे यह कहता हूँ कि कलियुगमें ये दो बातें दुर्घट हैं-शिश्नेन्द्रियका निग्रह और जिह्नाको वशमें रखना। ये दोनों कार्य जो सिद्ध कर ले, वही नारायणस्वरूप है। अतः कलियुगमें आपको यहाँ नहीं ठहरना चाहिये।

क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान