देवभूमि न्यूज 24.इन
एक पौराणिक कथा के अनुसार शंखचूड़ नाम का महा पराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड़ दैत्यराम दंभ का पुत्र था। जब दैत्य राज दंभ को बहुत समय तक कोई संतान नहीं हुई, तब उसने भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए तब भगवान विष्णु ने दंभ से वर मांगने के लिए कहा। दैत्य राज दंभ ने ऐसे पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखी जो, तीनों लोको में महा पराक्रमी हो। भगवान तथास्तु बोलकर अंतर्ध्यान हो गए। कुछ समय बाद दंभ के यहां पर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया। इसके बाद शंखचूड़ बड़ा हो गया और उसने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा जी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और शंख चूर्ण से वर मांगने के लिए कहा शंख चूर्ण ने वर मांगा कि, वह देवताओं में सबसे ज्यादा अजय हो जाए, ब्रह्मा जी तथास्तु बोलकर और कृष्ण कवच देकर अंतर्ध्यान हो गए, इसी के साथ ब्रह्मा जी ने शंखचूड़ को तुलसी जी से विवाह करने की भी आज्ञा दी।

ब्रह्मा जी की आज्ञा अनुसार तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हो गया। इसके बाद दैत्य राज शंखचूड़ को घमंड होने लगा क्योंकि उसने तीनों लोगों पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया था। जब देवता परेशान हो गए और उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा, तब वह विष्णु के पास मदद मांगने के लिए गए। क्योंकि भगवान विष्णु के वर से ही दंभ का जन्म हुआ था, इसलिए वहां से देवताओं को निराशा मिली, अंत में वह शिव जी के पास गए, शिव जी ने देवताओं का दुख दूर करने का निश्चय किया लेकिन शंखचूड़ के पास श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म था, जिसकी वजह से शिवजी उसका वध नहीं कर पा रहे थे। इसके बाद मदद हेतु विष्णु ने ब्राम्हण का रूप धारण कर दैत्य राज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया और इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। तत्पश्चात शिव जी ने शंख चूर्ण को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। शंखचूड़ विष्णु जी का भक्त था इसीलिए शंख का जल लक्ष्मी विष्णु जी को अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है, परंतु शिव जी ने शंखचूड़ का वध किया था इसीलिए शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है, जिसकी वजह से शिव जी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान