देवभूमि न्यूज 24.इन
⭕गयाजी की कहानी: बिहार में एक शहर है गया जिसका नाम बदलकर गया जी करने का फैसला किया गया है. ऐसे में हम इस कड़ी में इस शहर के धार्मिक महत्व को जानें. गयाजी क्यों हर हिंदू के लिए इतना महत्व रखता है, इस शहर का नाम कैसे गया पड़ा, गयासुर कौन था और क्या है इस शहर की रोचक कथा, इस कड़ी में हम सबकुछ बड़े ही विस्तार से जानेंगे.
⚜️पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान
दरअसल, हिंदू धर्म में अपने मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने का विधान है. ऐसे में साल में एक बार आने वाले पितृपक्ष के समय पितरों का तर्पण करने की परंपरा चली आ रही है. तर्पण को लेकर मान्यता है कि परिवार के पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करने से मृत्यु के बाद उन्हें कोई कष्ट न हो और वे तृप्ति, शांति व मुक्ति पा लें. इसके लिए गयाजी में पिंडदान करने का बहुत महत्व है. फल्गु नदी के तट पर विष्णु पद मंदिर में एक अक्षय वट है जिसके नीचे श्राद्ध कर्म किया जाता है. यहां श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. गया में 54 पिंड वेदी हैं, जहां पर पिंडदान की विधि की जाती है. जिनमें विष्णुपद वेदी, रामशिला वेदी के साथ ही धर्मारण्य वेदी व प्रेतशिला वेदी को प्रमुखता दी जाती है. मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पूर्वज सीधे स्वर्ग जाते हैं.
⚜️गया बसा, गयाजी शहर और क्या है गयासुर की कहानी
कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी से गयासुर की रचना असुर कुल में हो गई. हालांकि किसी असुर पिता के कारण या असुर मां की कोख से गयासुर नहीं जन्मा था ऐसे में उसमें असुरों वाली प्रवृति नहीं थी. गयासुर देवताओं का सम्मान करता और उनकी पूजा भी करता था. गयासुर मन ही मन सोचता था कि चाहे जितना भी व अच्छा व्यवहार करें, भगवान की पूजा करें लेकिन वह असुर कुल में जन्मा इसलिए उसे वो सम्मान समाज में नहीं मिलेगा. ऐसे में गयासुर अपने मन के इस संशय को दूर करने के लिए अच्छे कर्म कर पुण्य कमाने की राह चुनी. उसकी इच्छा मृत्यु के बाद स्वर्ग पाने की थी.

⚜️गया शहर बसाने का वरदान
ऐसे में गयासुर ने हजारों साल कठोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उसके सामने प्रगट हो गए. गयासुर ने विष्णु जी से कहा कि •’हे श्रीहरि मेरे शरीर में आप वास करें ताकि मुझे जो भी देखे उसके सभी पाप नष्ट हो जाए और वह एक पुण्यात्मा हो जाए. इस तरह व स्वर्ग की प्राप्ति कर सके.’ भगवान श्री विष्णु ने गयासुर यही वरदान दे दिया. अब गयासुर पूरी दुनिया में घूमने लगा और सबके पाप काटने लगा.
⚜️पाप-पुण्य का लेखाजोखा
गयासुर तो सबके पाप नष्ट करता जा रहा था लेकिन यमलोक में यमराज की व्यवस्था हिगड़ने लगी. कोई घोर पापी व अपराधी भी पापकर गयासुर के दर्शन कर लेता और यमराज से स्वर्ग मांगने लगता. इस परेशानी को दूर करने के लिए यमराज ब्रह्मा जी के पास जा पहुंचे और गयासुर को रोका के लिए कहा. इसपर गयासुर को ब्रह्मा जी ने अपने पास बुलाकर कहा कि ‘हे गयासुर सबसे ज्यादा पवित्र तुम्हारा शरीर है ऐसे में मैं तुम्हारी पीठ पर बैठकर देवाताओं संग यज्ञ करूंगा.’ फिर क्या था गयासुर यह सुनकर अति प्रसन्न हुआ.
⚜️गयासुर की पीठ पर भगवान विष्णु
इसके बाद गयासुर को ब्रह्मा जी ने एक पत्थर से दबाया और उसकी पीठ पर बैठ गए. इतने भार के बाद भी गयासुर घूमता फिरता रहा. उस पर ब्रह्मा जी के भार का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. अब भगवान विष्णु भी गयासुर की पीठ पर देवताओं के साथ जा बैठे. इस पर गयासुर ने कहा कि- ‘मैं अपने अराध्य श्रीहरि की मर्यादा का ध्यान रखते हुए अचल हो रहा हूं.’ भगवान विष्णु से उसने कहा कि भगवान आप मुझे पत्थर बना दें और सभी देवता भी अप्रत्यक्ष रूप से मेरे शरीर रूपी पत्थर पर ही वास करें. ताकि यह स्थान मृत्यु के बाद के धार्मिक अनुष्ठानों के लिए एक तीर्थ स्थल बन सके.
⚜️पूर्वजों का पिंडदान
इस पर विष्णु जी ने कहा तुम धन्य हो गयासुर, जीवित रहकर तुमने लोगों के कल्याण का वरदान मांगा और अब मृत्यु हो जाने के बाद भी आत्माओं के कल्याण और मोक्ष का वरदान पाना चाहते हो. भगवान विष्णु ने आशीर्वाद दिया कि पितरों के श्राद्ध कर्म आदि गयासुर की पीठ पर बसे गयाजी शहर में करने से मृत आत्माओं को सभी पीड़ाओं से मुक्ति मिलेगी. तभी से लोग यहां आकर अपने पूर्वजों का पिंडदान करने लगे और गयासुर के नाम पर इस शहर का नाम रखा गया.
⚜️पत्थर के रूप में गयासुर
विशेष ये है कि गया में भगवान विष्णु ने अपने पैर के निशान छोड़े हैं जिसके दर्शन करने अनेक श्रद्धालु पहुंचते हैं. यह विष्णुपद मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है जहां ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर भगवान विष्णु के पैरों के चिह्न हैं. दरअसल, गयासुर को स्थिर करने के लिए माता धर्मवत्ता शिला को धर्मपुरी से मंगवाया गया और गयासुर की पीठ पर रखकर स्वयं भगवान विष्णु ने अपने पैर उस पर रखकर दबाया था. जहां पर गयासुर पत्थर के रूप में हैं उस जगह को गयाजी के नाम से जाना जाता है. इसी विष्णुपद मंदिर में आकर माता सीता ने राम जी के पिता और अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया. तब से मंदिर के पास के कुंड को सीताकुंड के नाम से जाना जाता है.
*🚩हरिऊँ🚩*