प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है संध्या बंदन करना संध्या वंदन की आवश्यकता क्यों

Share this post


✍️देवभूमि न्यूज 24.इन
〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️
प्रत्येक हिन्दू को संध्या वंदन करना चाहिए।सूर्य और तारों से रहित दिन-रात की संधि को तत्वदर्शी मुनियों ने संध्याकाल माना है।’

वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता और अन्य धर्मग्रंथों में संध्या वंदन की महिमा और महत्व का वर्णन किया गया है। प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है संध्या वंदन करना।

संध्या वंदन प्रकृति और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है। कृतज्ञता से सकारात्मकता का विकास होता है। सकारात्मकता से मनोकामना की पूर्ति होती है और सभी तरह के रोग तथा शोक मिट जाते हैं।

संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि पाँच वक्त (समय) की होती है, लेकिन प्रात: काल और संध्‍या काल- उक्त दो समय की संधि प्रमुख है।

अर्थात सूर्य उदय और अस्त के समय। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है।

यह समय मौन रहने का भी है। इस समय के दर्शन मात्र से ही शरीर और मन के संताप मिट जाते हैं। उक्त काल में भोजन, नींद, यात्रा, वार्तालाप और संभोग आदि का त्याग कर दिया जाता है।

संध्या वंदन में ‘पवित्रता’ का विशेष ध्यान रखा जाता है। यही वेद नियम है। यही सनातन सत्य है। संध्या वंदन के नियम है। संध्‍या वंदन में प्रार्थना ही सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।

वेदज्ञ और ईश्‍वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्‍यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं। पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं। तब सिद्ध हुआ की संध्योपासना के चार प्रकार

(1)प्रार्थना (2)ध्यान (3)कीर्तन और (4)पूजा-आरती।

व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है।

प्रार्थना : –
〰️〰️〰️
प्रार्थना को उपासना और आराधना भी कह सकते हैं। इसमें निराकार ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और समर्पण का भाव व्यक्त किया जाता है।

इसमें भजन या कीर्तन नहीं किया जाता। इसमें पूजा या आरती भी नहीं की जाती। प्रार्थना का असर बहुत जल्द होता है। समूह में की गई प्रार्थना तो और शीघ्र फलित होती है।

सभी तरह की आराधना में श्रेष्ठ है प्रार्थना। प्रार्थना करने के भी नियम है। वेदज्ञ प्रार्थना ही करते हैं। वे‍दों की ऋचाएँ प्रकृति और ईश्वर के प्रति गहरी प्रार्थनाएँ ही तो है। ऋषि जानते थे प्रार्थना का रहस्य।

ध्यान :
〰️〰️
ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। ध्यान का मूलत: अर्थ है जागरूकता। अवेयरनेस। होश। साक्ष‍ी भाव। ध्यान का अर्थ ध्यान देना, हर उस बात पर जो हमारे जीवन से जुड़ी है। शरीर पर, मन पर और आसपास जो भी घटित हो रहा है उस पर। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर। इस ध्यान देने के जारा से प्रयास से ही हम अमृत की ओर एक-एक कदम बढ़ा सकते हैं।

ध्यान को ज्ञानियों ने सर्वश्रेष्ठ माना है। ध्यान से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और ध्यान से मोक्ष का द्वार खुलता है।

कीर्तन :-
〰️〰️〰️
ईश्वर, भगवान या गुरु के प्रति स्वयं के समर्पण या भक्ति के भाव को व्यक्त करने का एक शांति और संगीतमय तरीका है कीर्तन। इसे ही भजन कहते हैं। भजन करने से शांति मिलती है।

भजन करने के भी नियम है। फिल्मीगीतों की तर्ज पर निर्मित भजन, भजन नहीं होते। शास्त्रीय संगीत अनुसार किए गए भजन ही भजन होते हैं। सामवेद में शास्त्रीय सं‍गीत का उल्लेख मिलता है।

पूजा-आरती :-
〰️〰️〰️〰️
पूजा करने के पुराणिकों ने अनेकों तरीके विकसित किए है। पूजा किसी देवता या देवी की मूर्ति के समक्ष की जाती है जिसमें गुड़ और घी की धूप दी जाती है, फिर हल्दी, कंकू, धूम, दीप और अगरबत्ती से पूजा करके उक्त देवता की आरती उतारी जाती है। अत: पूजा-आरती के ‍भी नियम है।

हिंदू कर्तव्यों में सर्वोपरी है संध्या वंदन। संध्या वंदन में सर्वश्रेष्ठ है प्रार्थना। प्रार्थना को वैदिक ऋषिगण स्तुति या वंदना कहते थे। इसे करना प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है।

✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान
आप भी अपना जन्म विवरण भेजकर नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान से अपना वर्तमान, भूतकाल और भविष्य विस्तृत जानकारी ग्रह दोष और निवारण जान सकते है। कुण्डली बेचना हमारा व्यवसाय नही है आप से प्राप्त दक्षिणा पूर्ण रूप से विकलांग ऑपरेशन के सहयतार्थ नारायण सेवा संस्थान उदयपुर में प्रेषित की जाती है।
दक्षिणा 501₹
Paytm no9416770784
Bank account no 06732010001150
IFSC Code PUNB 0067310
Punjab National Bank Palwal
〰️🌼〰️〰️🌼〰️